Jharkhand: हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता गई, क्या अब जाएगी CM कुर्सी? जानिए, सीएम बने रहने के क्या विकल्प हैं

News Nasha

झारखंड राज्य से बड़ी खबर है। दरअसल केन्द्रीय चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश राज्यपाल को भेज दी है। चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री सोरेन के अवैध खनन मामले से तार जुड़े होने के आरोप में ये कड़ा कदम उठाया है। गौरतलब है कि राज्यपाल रमेश बैस अभी दिल्ली में है और वह गुरुवार यानी आज दोपहर बाद रांची लौटेंगे उसक बाद ही स्थिति स्पष्ट होने की उम्मीद है। ऐसे में बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या हेमंत सोरेन अपने पद पर बने रहेंगे या उनकी कुर्सी जा सकती है।

हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द होने पर क्या हो सकता है?

यदि चुनाव आयोग केवल हेमंत सोरेन की सद्स्यता को ही समाप्त करता है तो यूपीए द्वारा उन्हें एक बार फिर से विधायक दल का नेता चुना जा सकता है। इस आधार पर फिर से हेमंत राज्य के सीएम बन जाएंगे। इतना ही नहीं अगले 6 महीने के भीतर ही दोबारा चुनाव जीतकर विधायक भी बन जाएंगे। हालांकि हेमंत सोरेन की सीएम की कुर्सी जाने पर झामुमो-कांग्रेस गठबंधन को मुख्यमंत्री पद के लिए नए नेता का चुनाव करना पड़ सकता है। इन सबके बीच ये भी चर्चा चल रही है कि सदस्यता जाने के बाद सोरेन अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को झारखंड का नया सीएम बना सकते हैं।

क्या विधानसभा का सदस्य रहे बिना भी सीएम रह सकते हैं?

एक सवाल जेहन में उठता है कि क्या कोई शख्स विधानसभा या विधानपरिषद का सदस्य रहे बिना भी किसी सूबे का सीएम रह सकता है तो इसका जवाब है- हां, सीएम बने रह सकते हैं, लेकिन उसे अगले छह महीने के भीतर किसी न किसी सदन का सदस्य होना लाजिमी होगा। झारखंड में विधानपरिषद नहीं है, ऐसे सीएम बने रहने के लिए छह महीने के भीतर विधानसभा का चुनाव जीतना जरूरी होगा।

क्या है हेमंत सोरेन का पूरा मामला:

दरअसल आरटीआई एक्टिविस्ट शिव शर्मा ने दो PIL दायर की थी और CBI और ED से माइनिंग घोटाले की जांच कराने की मांग की थी। ये मामला सीएम हेमंत सोरेन से जुड़े खनन लीज और शेल कंपनियों में उनके और उनके करीबियों की हिस्सेदारी से जुड़ा है। आरोप है कि सीएम हेमंत ने अपने पद का दुरुपयोग कर स्टोन क्यूएरी माइंस अपने नाम आवंटित करवा ली थी। सोरेन परिवार पर शैल कंपनी में इन्वेस्ट कर अकूत संपत्ति अर्जित करने का आरोप है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग ने भी सुनवाई की थी। दोनों ने जनप्रतिनिधि अधिनियम-1951 की धारा 9A के तहत लाभ का पद से जुड़े नियमों के उल्लंघन को लेकर सुनवाई की थी। अब ये सुनवाई पूरी हो चुकी और फैसला सुरक्षित रख लिया गया है।

 

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