भृष्टाचार की बेदी पर अन्नदाताओं की बली, योगी सरकार में भी नही थम रहा है भृष्टाचार का खेल

  • मुफ़्लिशि के मारे अन्नदाताओं को सरकारी मुलाजिम बना रहे हैं अपना शिकार
  • अनाज तौलने से लगाकर भुगतान देने के एवज में वसूले जातें है किसानों से पैसे
  • काली कमाई का आसान जरिया साबित हो रहें हैं अनाज खरीद केंद्र
  • जनपद में काबिज हुक्मरानों स्थिलता पर खड़े हो रहें हैं सवाल
  • सुविधा शुल्क देने वाले व्यक्ति को जल्द मिल जातीं हैं सरकारी सुविधाए

माया अखिलेश के बाद सत्ता के शिखर पर विराजमान होने वाली योगी सरकार भी भृष्टाचार पर लगाम कसने में नाकाम साबित हो रही है। भृष्टाचार को जड़ से खत्म करने का बीड़ा उठा कर उत्तर प्रदेश में काबिज होने वाली इस सरकार में भी किसानों का शोषण डंके की चोट पर बदस्तूर किया जा रहा है। प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को उनका जायज हक दिलाने के कसीदे तो खूब पढ़े और पढ़ाए जा रहें हैं। तो वहीं दूसरी तरफ खून पसीना बहाकर इकट्टा की जाने वाली अन्नदाताओं की गाढ़ी कमाई पर सरकारी मुलाजिमों द्वारा खुलेआम डाका डाला जा रहा है।

अगर किसानों को देखकर आपको यह लगता है की ये सरकारी सुविधाओं से संतुष्ट हैं तो आपका अनुमान सरासर गलत है। न तो ये अन्नदाता सरकारी नीति से संतुष्ट हैं और न ही इन किसानों की प्रदेश सरकार में कोई सुध ली जा रही है। प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ द्वारा भृष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाने की घोषणा तो काफी पूर्व में की जा चुकी हैं। जिसे अब उन्ही के अफसरों द्वारा खुलेरूप से नकार दिया गया है। उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में बनी रैपुरा किसान मंडी ने भृष्टाचार के खिलाफ चलाई जाने वाली कोरी मुहिम की पोल खोलकर रख दी है। किसानों की अगर मानें तो इस मंडी में अनाज खरीदने के नाम पर जमकर भृष्टाचार का खेल खेला जा रहा है।

दलाली प्रथा को पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिए बुंदेलखंड विशेष पैकेज के तहत जनपद में किसान मंडियों का निर्माण कराया गया था । लेकिन आज यहीं मंडियां किसानों के लिए जी का जंजाल बन बैठीं हैं। भृष्टाचार की बेदी पर गुलाबी नोटों की बली देने के बाद ही रैपुरा की इस मंडी में किसानों की फसल तौली और खरीदी जाती है। किसानों का साफ आरोप है की बिना पैसे दिए इस मंडी में न तो अनाज की तौल की जाती है और न ही फसल का भुगतान किसान तक पहुच पाता है।

तथाकथित राम राज्य में भृष्टाचार की मलाई मंडी कर्मियों द्वारा चट की जा रही है। अगर कोई किसान कुछ बोलना भी चाहे तो डांट फटकार लगाकर और सरकारी रूतबा दिखाकर उसे चुप करा दिया जाता है। देख रेख में लगी सरकारी मशीनरी द्वारा सुविधा शुल्क के नाम पर 30 से लगाकर 40 रूपए प्रति कुंटल तक वसूले जातें हैं तो वहीं बेबस हालातों के मारे मजबूर अन्नदाता को न चाहते हुए भी अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है। किसानों की अगर मानें तो रैपुरा में बनी इस किसान मंडी में अपनी बारी आने के इंतजार में उन्हें कई कई दिनों तक लम्बा वख्त गुजारना पड़ता है। कई मर्तबा बताने के बाउजूद भी न तो उनकी समस्या सुनी जाती है और न ही बिना खर्च लिए उन्हें कोई सरकारी सुविधा का लाभ दिया जाता है।

जनपद महोबा की रैपुरा मंडी में जोरशोर के साथ पढ़ा जाने वाला भृष्टाचार का अध्याय कब खत्म होगा और कब अन्नदाताओं को इससे निजात मिलेगी ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है। हाल फिलहाल जनपद में काबिज हुक्मरानों द्वारा न तो किसानों की सुध ली जा रही है और न ही अन्नदाताओं को दूर दूर तक भृष्टाचार से निजात मिलती दिखाई दे रही है।

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