‘जय श्री राम’ नारे से खफा हुई ‘दीदी’, नुसरत जहां बोलीं- गला दबाकर न लें ‘राम’ का नाम

पश्चिम बंगाल (West Bengal) में चुनावी सरगर्मियों के बीच जब सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) की जयंती के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के सामने जय श्री राम (Jai Sri Ram) के नारे लगे तो वो भड़क गईं और बिना कुछ बोले मंच छोड़ दिया। इस घटना पर अब टीएमसी सांसद नुसरत जहां (Nusrat Jahan) ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी पर हमला बोला है।

नुसरत जहां ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर लिखा है कि राम का नाम गले लगाके बोले ना कि गला दबाके।मैं स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती समारोह की विरासत को मनाने के लिए सरकारी कार्यों में राजनीतिक और धार्मिक नारों की कड़ी निंदा करती हूं।

गुस्से में दीदी ने कार्यक्रम में कह दी ये बात

बता दें कि महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी की 150 वी जयंती मनाने के लिए विक्टोरिया मेमोरियल में आयोजित कार्यक्रम में बनर्जी ने अपना भाषण शुरू नहीं किया था, उसी समय भीड़ में शामिल कुछ लोगों द्वारा नारा लगाया गया।बनर्जी ने कहा कि ऐसा अपमान अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा यह एक सरकारी कार्यक्रम है। कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है। एक गरिमा होनी चाहिए, किसी को लोगों को आमंत्रित करके अपमानित करना शोभा नहीं देता।

देश की बारी-बारी हो चार राजधानियां

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को कहा कि भारत में बारी-बारी से चार राजधानियां होनी चाहिए और संसद सत्र देश के अलग-अलग स्थानों में आयोजित होने चाहिए। बनर्जी ने 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने के फैसले के लिए केंद्र को आड़े हाथ लिया। बनर्जी ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इसकी घोषणा करने से पहले उनसे परामर्श नहीं किया।

उन्होंने नेता जी को उनके 150वीं जयंती पर श्रद्धांजलि देने के लिए भव्य जुलूस में शामिल होने के बाद यहां एक सभा को संबोधित करते हुए बनर्जी ने कहा कि ब्रिटिश काल के दौरान कोलकाता देश की राजधानी थी। मुझे लगता है कि हमारी बारी बारी से चार राजधानियां होनी चाहिए। देश की एक ही राजधानी क्यों हो? संसद सत्र देश में अलग-अलग जगहों पर होने चाहिए। हमें अपने अवधारणा बदलनी होगी।

बोस की जयंती को देशनायक दिवस के रूप में क्यों नहीं मनाया?- ममता

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि बोस की जयंती को देशनायक दिवस के रूप में क्यों नहीं मनाया जाए बनर्जी ने कहा पराक्रम का क्या अर्थ है? वह मुझे राजनीतिक रूप से नापसंद कर सकते हैं, लेकिन मुझसे सलाह ले सकते थे। शब्द का चयन करने को लेकर वह नेता जी के पोते सुगत बोस या सुमंत्र बोस से सलाह ले सकते थे।

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