उम्मीदवारों का ब्योरा सार्वजनिक करना ही होगा, इस बार राजनीतिक दलों पर SC दिखाएगी सख्ती

चुनाव में आपराधिक छवि के उम्मीदवारों का ब्योरा नहीं देने और उसका उचित प्रचार नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट ने आठ राजनीतिक दलों पर जुर्माना लगाया था। इसे देखते हुए पांच राज्यों में होने वाले चुनावों में सियासी पार्टियों को उम्मीदवारों का चयन करना एक चुनौती होगा। यदि वे आपराधिक छवि के उम्मीदवार को चुनते हैं तो उसे क्यों चुना इसका जवाब उन्हें चुनने के 48 घंटों में पर्याप्त कारणों के साथ देना होगा। इस जवाब का प्रचार तीन दिन तक अखबार, टीवी चैनलों और पार्टी की वेबसाइट पर करना होगा। उत्तराखंड, पंजाब, यूपी, गोवा और मणिपुर में अगले वर्ष संभवत: मार्च में विधानसभा चुनाव होने हैं।

पहला मौका था इसलिए रियायत दी
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार चुनावों में कांग्रेस और भाजपा जैसे दलों को एक-एक लाख रुपये का हल्का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया था। हालांकि एनसीपी और सीपीएम पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। अगस्त 2021 में जुर्माना लगाते हुए कोर्ट ने कहा था कि यह पहली बार हो रहा है और दलों को एक मौका देना चाहिए। कोर्ट ने कहा था कि उम्मीद है राजनीतिक दल गहरी नींद से जागेंगे।

चुनाव आयोग अर्जी दायर करेगा
कोर्ट ने आदेश दिया था कि चुनाव आयोग इन निर्देशों को चुनाव अधिसूचना के साथ जारी करेगा और पालन नहीं करने पर चुनाव आयोग ही कोर्ट में अवमानना अर्जी दायर करेगा। आयोग सभी चुनावी क्षेत्रों से रिपोर्ट मंगाएगा और उसके आधार पर अर्जी दायर करेगा। कोर्ट ने आयोग से यह भी कहा था कि वह एक डेडीकेटेड मोबाइल एप बनाएगा जिसमें उम्मीदवारों द्वारा प्रकाशित आपराधिक रिकॉर्ड का ब्योरा होगा। इससे वोटर एक क्लिक पर प्रत्याशी का पूरा ब्योरा जान सकेंगे।

उम्मीदवार को जिताऊ बताना पर्याप्त नहीं
कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि आपराधिक छवि के उम्मीदवार को चुनकर उसके बारे में सिर्फ यह कह देना कि वह जिताऊ है और क्षेत्र में उसकी अच्छी पहचान है, पर्याप्त नहीं होगा। दलों को स्पष्ट करना होगा कि क्या उन्हें साफ छवि का उम्मीदवार नहीं मिला। यदि मिला था तो उसे किस आधार पर अस्वीकृत किया गया।

तीन दिन प्रचार करना होगा
आपराधिक छवि के उम्मीदवार को चुनने के 48 घंटे के अंदर प्रचलित अखबारों, टीवी चैनलों, पार्टी वेबसाइट के होम पेज और अन्य तरीकों से जनता तक यह पहुंचाना होगा कि दागी उम्मीदवार को क्यों चुना गया। बिहार विधानसभा चुनावों में पार्टियों ने छोटे स्थानीय अखबारों में बिल्कुल छोटी सी जगह पर एक विज्ञापन देकर मामला समाप्त कर दिया था। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

क्या था फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 में दिए फैसले में कहा था कि कानून निर्माताओं से बार-बार कहा गया है कि राजनीति में अपराधियों का प्रवेश रोकने के लिए कानून बनाएं लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं हुआ है। ऐसे में हम यह निर्देश देते हैं कि अपराधी उम्मीदवारों का प्रचार उचित तरीके से किया जाए ताकि वोटर को उम्मीदवार के बारे में पूरी जानकारी मिल सके और मतदान के दिन वह उचित निर्णय ले सके।

Related Articles

Back to top button