पोर्टल की ख़बर से जस्टिस पर सवाल कितना सही ??

सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व स्टाफ ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं। पिछले साल जनवरी में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ चार जजों द्वारा मोर्चा खोलने के बाद यह उच्चतम न्यायालय के इतिहास दूसरी अभूतपूर्व घटना है। पिछली बार की तरह ही इस बार भी हर कोई यह जानने के लिए उत्सुक है कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट बतौर संस्था कैसी प्रतिक्रिया देगी। हालांकि, इस बार चीफ जस्टिस पर लगे उत्पीड़न के आरोप के मामले में अदालत के सामने सही दिशा में बढ़ने का एक जरिया है। वह है ‘अदालत की द जेंडर सेंसिटाइजेशन एंड इंटरनल कम्प्लेंट्स कमिटी यानी GSICC’, जिसकी अगुआई जस्टिस इंदु मलहोत्रा करती हैं। इस कमिटी के पास सुप्रीम कोर्ट में हुए यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने की शक्ति है।

सुप्रीम कोर्ट में सेक्सुअल हैरेसमेंट से जुड़े नियम कायदे स्पष्ट रूप से उन प्रक्रियाओं के बारे में व्याख्या नहीं करते, जिन्हें सीजेआई के खिलाफ शिकायत दर्ज होने की स्थिति में अपनाया जाए। हालांकि, नियम यह साफ तौर पर कहते हैं कि ‘सुप्रीम कोर्ट परिसर में होने वाली किसी शिकायत’ के खिलाफ जांच की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट परिसर में सामने आने वाली सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायतों के निपटारे के लिए The Gender Sensitisation and Sexual Harassment of Women at the Supreme of India (Prevention, Prohibition and Redressal), Regulations, 2013 कानून है। वर्तमान में 11 सदस्यीय GSICC के पास यह शक्ति है कि वो ऐसा कोई भी आदेश पास कर सकती है, जिससे किसी भी व्यक्ति या पार्टी को उचित ऐक्शन लेने का निर्देश दिया जा सके।

इस कानून के तहत, ‘GSICC का कोई भी सदस्य किसी भी वक्त 48 घंटे के नोटिस पर चेयरपर्सन को इमर्जेंसी मीटिंग बुलाने की दरख्वास्त कर सकता है।’ हालांकि, कुछ विशेष निर्देशों को लागू कराने की दिशा में कमिटी को सीजेआई की इजाजत की आवश्यकता पड़ती है। आपराधिक शिकायत दर्ज करने और पीड़ित द्वारा GSICC के आदेश को चुनौती देने की स्थिति में सीजेआई की इजाजत चाहिए होती है। शिकायत दर्ज होने के बाद और शिकायत की असलियत से संतुष्ट होने के बाद, GSICC एक इंटरनल सब कमिटी (ISC) बनाती है, जो तथ्यों का पता लगाने की दिशा में जांच करती है। ISC जांच करने के बाद 90 दिन के भीतर एक रिपोर्ट तैयार करती है और अगर आरोप सही साबित होते हैं तो GSICC को उचित कार्रवाई करने का आदेश देती है।

इसके बाद 45 दिन के भीतर GSICC रिपोर्ट को स्वीकार या खारिज करती है और आदेश पास करती है। इसे चेतावनी देने से लेकर शिकायतकर्ता से सभी किस्म के कम्युनिकेशन पर रोक लगाने की शक्ति होती है। GSICC के पास यह अधिकार भी होता है कि वो जरूरी कदम उठाते हुए वो ‘सभी आदेश’ पास करे जिससे शिकायतकर्ता महिला के सेक्सुअल हैरेसमेंट का अंत किया जा सके। GSICC के पास यह भी अधिकार है कि वो सीजेआई को सिफारिश करे कि वह प्रतिवादी के खिलाफ आदेश पास करें। इनमें दोषी के सुप्रीम कोर्ट में एक तयशुदा वक्त से लेकर अधिकतम 1 साल तक की एंट्री पर बैन, आपराधिक शिकायत दर्ज कराने का सुझाव देना भी शामिल है। हालांकि, नियमों में यह नहीं बताया गया है कि अगर प्रतिवादी खुद सीजेआई हों तो कौन सी प्रक्रिया अपनाई जाएगी।

नियम यह भी कहते हैं कि अगर GSICC का आदेश किसी शख्स को मंजूर न हो या फिर आदेश का पालन न हो रहा हो तो ऐसी स्थिति में उसके समक्ष सीजेआई के पास जाने का विकल्प होता है। ‘सीजेआई के पास ऐसे आदेशों को खारिज करने या उनमें बदलाव करने’ की ताकत होती है। सीजेआई के पास यह भी अधिकार है कि वह ‘सेक्सुअल हैरेसमेंट पीड़ित को संपूर्ण न्याय दिलाने के लिए आदेश या निर्देश दे।’ हालांकि, यह भी यह साफ नहीं किया गया है कि अगर प्रतिवादी खुद सीजेआई हो तो क्या विकल्प अपनाया जाए!

बीते 16 महीने में यह दूसरा मौका है, जब सीजेआई से जुड़े ऐसे मामले सामने आए, जैसे न पहले हुए और न ही इनके निपटारे के लिए कोई नियम हैं। जहां तक सरकार का सवाल है, चुनावी प्रचार के मद्देनजर वो इस मामले से दूरी बरतने में ही बेहतरी समझेगी। खुद पर लगे आरोपों पर सीजेआई सफाई दे चुके हैं, हालांकि इस मामले में हुई विशेष सुनवाई के बाद दो जजों जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस संजीव खन्ना ने जो आदेश दिया, उससे भी आगे का रास्ता बहुत कुछ साफ नहीं होता। ऐसे में अब सबका ध्यान सीजेआई को छोड़कर उन 26 जजों पर केंद्रित हो गया है, जिनके पास शिकायतकर्ता महिला की ओर से शिकायत और हलफनामा भेजा गया है। सुप्रीम कोर्ट के सदस्य के तौर पर उनकी प्रतिक्रिया ऐसे संकट से निपटने के लिए आगे की दिशा तय करेगा।

शनिवार को जब यह मामला सामने आया तो सुप्रीम कोर्ट में छुट्टी की वजह से बहुत सारे जज दिल्ली से बाहर थे। जजों के मूड की बेहतर जानकारी सोमवार को मिलेगी, जब वे कॉफी के लिए मिलेंगे  लेकिन इस घटनाक्रम ने एक बार फिर न्याय करने वालों कटघरे में ज़रूर खड़ा कर दिया है । सोमवार को तस्वीर साफ़ होगी साथ ही देखना होगा की जस्टिस गोगोई पर लगे आरोप उन पर भारी पड़ते हैं या जस्टिस गोगोई के भावनात्मक बयान जजों पर भारी पड़ते हैं ।

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