आज भी प्रासंगिक हैं स्वामी विवेकानंद के विचार

कृष्णमोहन झा

यह एक प्रसिद्ध कहावत है कि जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होना चाहिए। यह कहावत भारतीय दर्शन और अध्यात्म के प्रकांड विद्वान और युवा पीढ़ी के अनन्य प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद का के यशस्वी व्यक्तित्व और कृतित्व पर पूरी तरह खरी उतरती है जिनके क्रांतिकारी विचारों ने मात्र 39 वर्ष की अल्पायु में ही उन्हें युवाशक्ति का आदर्श बना दिया और आज भी करोड़ों युवा उनकी बताई राह पर चल कर अपने जीवन को न केवल सफल बना रहे हैं अपितु राष्ट्रनिर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंद का स्पष्ट मत था कि युवा पीढ़ी में ही विषम परस्थितियों को अनुकूल बनाने की क्षमता होती है बस उन्हें उनके अंदर छिपी क्षमता का अहसास कराने की आवश्यकता है। स्वामी विवेकानंद ने यही किया और वे युवा पीढ़ी के प्रेरणास्रोत बनकर उनके आदर्श बन गए। युवा पीढ़ी को संबोधित करते हुए समय समय पर विवेकानंद ने जो ओजस्वी विचार व्यक्त किए उनकी प्रासंगिकता आज पहले से भी अधिक है इसलिए केंद्र सरकार ने विवेकानंद के जन्म दिवस 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में समारोह पूर्वक मनाने का फैसला किया था। 2014 में केंद्र में मोदी सरकार का गठन होने के बाद राष्ट्रीय युवा दिवस के आयोजनों को वृहद स्वरूप प्रदान किया गया । यह सिलसिला निरंतर जारी है। मोदी सरकार ने वर्तमान समय में विवेकानंद के विचारों की बढ़ती हुई प्रासंगिकता को देखते हुए उनके क्रांतिकारी विचारों के व्यापक प्रचार प्रसार हेतु अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रम प्रारंभ किए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत वर्ष विवेकानंद जयंती के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय युवा संसद समारोह को संबोधित करते हुए कहा था- ‘शायद ही भारत का कोई व्यक्ति हो जो स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रेरित न हुआ हो। उन्होंने कहा था कि निडर युवा ही वह नींव है जिस पर राष्ट्र का निर्माण हो सकता है। भारत को न ई ऊंचाई तक ले जाने और देश को आत्मनिर्भर बनाने का काम युवा पीढ़ी ही कर सकती है। जब लक्ष्य स्पष्ट हो और इच्छा शक्ति प्रबल हो तो उम्र कभी बाधा नहीं बनती है।’ उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी के जीवन पर स्वामी विवेकानंद के विचारों का विशेष प्रभाव रहा है और उन्होंने अनेक अवसरों पर कहा है कि वे आज जो कुछ भी हैं उसमें विवेकानंद के विचारों की विशेष भूमिका रही है।
स्वामी विवेकानंद चरित्र निर्माण को सर्वाधिक महत्व देते थे ।उनका मानना था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो नयी पीढी के चरित्र निर्माण, बौद्धिक विकास और उसे संस्कारवान बनाने में योगदान कर सके। उनका मानना था कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास हो सकता है इसलिए उन्होंने एक बार कहा था कि युवाओं की रुचि गीता पाठ के साथ फुटबॉल खेलने में भी होना चाहिए ताकि उनका शारीरिक स्वास्थ्य उत्तम रहे। वे कहते थे कि हर युवा को निर्भय होना चाहिए। युवा की पहचान उसकी निर्भयता से ही होती है। विवेकानंद युवाओं से महत्वाकांक्षी, परिश्रमी और कर्मठ बनने का आह्वान करते हुए था कि युवा वही है जो महत्वाकांक्षी हो ।वे युवाओं से कहते थे कि अपने जीवन का कोई महान लक्ष्य निर्धारित करो और फिर उसकी प्राप्ति के लिए पूरी तरह समर्पित हो जाओ। मन और आत्मा उसमें डाल दो और तब तक न रुको जब तक कि लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।महान लक्ष्य तक पहुंचने का यही मार्ग है। जो इस मार्ग पर चलने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है उसकी सफलता सुनिश्चित है। उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। उनका ईश्वर में अटूट विश्वास था परंतु वे हमेशा कहा करते थे कि अगर किसी व्यक्ति का खुद पर भरोसा नहीं है तो वह ईश्वर पर भी भरोसा नहीं कर सकता।
विवेकानंद के जीवन काल में देश में जो शिक्षा प्रणाली प्रचलित थी वो उससे संतुष्ट नहीं थे । उनका स्पष्ट मत था कि जो शिक्षा बालक का सर्वांगीण विकास करने में सक्षम वह शिक्षा अपर्याप्त है । मात्र कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर लेने और थोड़ा बहुत भाषण दे लेने की योग्यता प्रदान करने वाली शिक्षा से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकता। वे हमेशा कहा करते थे कि’ जो शिक्षा जन साधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं कर सकती , युवा पीढ़ी का चरित्र निर्माण नहीं कर सकती, युवाओं के मन में समाज सेवा की भावना को जन्म नहीं दे सकती और उसके अंदर शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती ऐसी शिक्षा का कोई मूल्य नहीं है। ‘ स्वामी विवेकानंद ने अपना संपूर्ण जीवन देश से अज्ञानता, अशिक्षा , अस्पृश्यता और अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के लिए समर्पित कर दिया था और युवाओं को भी इस अभियान में जुट जाने के लिए प्रेरित किया।। अपने यशस्वी जीवन की आखरी सांस तक वे युवा शक्ति को जागृत करने के अभियान में जुटे रहे। उन्होंने एक बार कहा था कि’ मेरी आशाएं इस नवोदित पीढ़ी- आधुनिक पीढ़ी पीढ़ी में केंद्रित हैं। उसी में से मेरे कार्यकर्ताओं का निर्माण होगा। मैंने अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया है और उसके लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया है।’ उनका यह कथन शब्दशः सही है । त्याग तपस्या की प्रतिमूर्ति और धर्म और अध्यात्म के युग प्रवर्तक अवतारी महापुरुष स्वामी विवेकानंद ने मात्र 39 वर्ष के संक्षिप्त जीवन में भारतीय समाज को जागृत करने में जो उल्लेखनीय योगदान किया वह शताब्दियों तक भी विस्मृत नहीं किया जा सकता।

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