अखिलेश ही नहीं मुलायम से लड़ बैठे थे आज़म, कैसे हुई थी वापसी

अखिलेश को मुख्मंत्री बनाने के पीछे आज़म ने अपना फायदा

लखनऊअक्सर दूसरे के कंधे पर बंदूक चला कर लोग अपना वार करते है लेकिन जब ये षड्यंत्र फेल हो जाते है तब असल राजनीती शुरू हो जाती है। कुछ ऐसा ही प्लान आज़म खान का भी था ! अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने में कुछ सहीयोग आज़म खान का भी था लेकिन आज़म खान की ये चाल उन्हीं पर उलटी पड़ गई।

दरअसल हुआ ये था कि साल 2012 में जब अखिलेश को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी देने का फैसला हुआ उसमे मे सबसे बड़ा हाथ उनके चचेरे चाचा राम गोपाल यादव और आज़म खान का था । आज़म ख़ान और राम गोपाल यादव ने ही नेताजी के सामने अखिलेश को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा था , ये बात सुन ही आप सभी को लग रहा होगा कि आज़म। ने अखिलेश की भलाई के लिए ही ये प्रस्ताव रखा लेकिन वो कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि हाथी के दांत दिखाने के कुछ और , और खाने के कुछ और होते हैं , कुछ ऐसी ही कहानी राजनीत की है यह जों जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है।

अखिलेश को मुख्मंत्री बनाने के पीछे आज़म ने अपना फायदा देखा था, अखिलेश के कंधे पर बंदूक रख के वो वार करना चाह रहे थे,क्यूंकि दोनों शिवपाल को सत्ता से दूर रखना चाहते थे और अखिलेश के द्वारा प्रदेश की कमान वो अपने हिस्से संभालना चाह रहे थे, लेकिन जल्द हीं आज़म के सपने चूर चूर हो गए, आज़म की चाल उन्हीं पर उलटी पड़ गई।
आज़म ने ये सोचा की अखिलेश को राजनीत के दाव पेच पता नहीं होंगे क्युकी अखिलेश को उस राजीनीति मे घुसे ज़्यादा समय नहीं हुआ था ।आज़म ने सोचा कि कुर्सी पर भले ही अखिलेश बैठेंगे लेकिन चाले और फैसले मेरे ही होंगे, परन्तु अखिलेश भी ठहरे नेताजी के बेटे, धीरे धीरे अखिलेश ने अपने सारे पासे फेकना शुरू किए और आज़म की चाल फैल हो गई ! 2022 के चुनाव के नतीजे देखते ही आज़म खान को मौका मिल गया अखिलेश को घेरने का क्यूंकि अल्पसंखयक वोट सारा स्पा को गया और आज़म इसे अपने हिस्से करना चाहते हैं और आज भी जब आज़म की सारी चाल जानते हुए भी अखिलेश अब तक चुप्पी साधे हुए है, अखिलेश ने ना केवल आज़म बल्कि आज़म के परिवार को भी खूब सहायता की, आज़म के वकील को भी फीस अखिलेश ही दिया करते थे।

साथ ही अखिलेश कानून का साथ भी देना चाहते हैं क्यूंकि ये भी सच है की आज़म ने भी उन तमाम लोगो पर स्पा सरकार में मुक्कदमे दर्ज कराये थे जिन्होंने आज आज़म पर पलट कर केस दर्ज करा दिए हैं खैर आज़म और अखिलेश के रिश्ते में अगर कोई खटास है भी तो ये न्य नहीं है एक वक़्त वो भी जब आज़म और मुलायम के रिश्तो में भी दरार आयी थी
प्रोमो मुलायम और आजम की फोटो के साथ

एसपी के 27 साल के इतिहास में सिर्फ एक बार दोनों के बीच तनातनी

आजम के लिए 2009 का लोकसभा चुनाव एक बुरे सपने की तरह था’कभी खुशी से खुशी की तरफ नहीं देखा, तुम्हारे बाद किसी की तरफ नहीं देखा, ये सोचकर कि तेरा इंतजार लाजिम है, तमाम उम्र घड़ी की तरफ नहीं देखा।’ समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और पार्टी के संस्थापक सदस्य आजम खान के बीच गाढ़े रिश्तों का अंदाजा इस शेर से लगाया जा सकता है। एसपी से रुखसती के एक साल बाद दिसंबर 2010 में जब आजम की दोबारा पार्टी में वापसी हुई थी तो आजम ने मुनव्वर राना का यह शेर नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव से अपने रिश्तों की दुहाई देते हुए कहा था।

तकरीबन तीन दशक पुरानी एसपी के लिए आजम और मुलायम की जुगलबंदी ने खूब सियासी गुल खिलाए। करीब 33 साल पुरानी दोनों की दोस्ती एक पहेली की तरह है। हालांकि कभी अमर सिंह तो कभी कल्याण सिंह की वजह से आजम खान के लिए पार्टी में स्थिति असहज हुई लेकिन आजम ने कभी मुलायम के लिए तीखे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। यहां तक कि जब 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद मुलायम ने अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना तब भी आजम ने खुलकर उनके फैसले का समर्थन किया। रामपुर में जब अमर सिंह ने जया प्रदा को आगे किया, उस दौरान आजम की नाराजगी थी लेकिन मुलायम ने कभी आजम के प्रति सख्ती नहीं बरती।

2009 के लोकसभा चुनाव के बाद टूटा रिश्ता

एसपी के 27 साल के इतिहास में सिर्फ एक बार ऐसा हुआ जब आजम और मुलायम के बीच तनातनी देखने को मिली और इसकी परिणति आजम के पार्टी छोड़ने के साथ हुई। यूपी में मुस्लिम वोटरों पर अच्छी पकड़ रखने वाले आजम खान के लिए 2009 का लोकसभा चुनाव एक बुरे सपने की तरह था। विश्लेषकों के मुताबिक इस चुनाव से ठीक पहले अमर सिंह के कहने पर मुलायम ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम कल्याण सिंह को अपनी पार्टी में ले लिया। इस चुनाव में आजम ने खुलकर जया प्रदा का विरोध किया, इसके बावजूद वह रामपुर से चुनाव जीतने में कामयाब रहीं।

अमर बाहर और आजम अंदर

चुनाव के बाद उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में एसपी से निष्कासित कर दिया गया। पार्टी से निकाले जाने के बावजूद आजम की मुलायम के प्रति कभी तल्खी देखने को नहीं मिली। फरवरी 2010 में अमर सिंह को एसपी से निकाल दिया गया। इसी के साथ आजम की घरवापसी का रास्ता साफ हो गया। 4 दिसंबर 2010 को आजम खान की एसपी में वापसी हो गई।

मुलायम के ‘साहब’ और आजम के ‘नेताजी’

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से तालीम पाने वाले आजम ने 1974 में कानून की डिग्री हासिल की। यहीं से छात्र राजनीति परवान पर चढ़ी और उन्होंने सियासत में एंट्री की। 1976 में जनता पार्टी से जुड़ने के बाद 1980 में आजम ने पहली बार विधानसभा का चुनाव जीता। इसके बाद वह 9 बार विधायक बने। आजम-मुलायम की गहरी दोस्ती का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1989 में पहली बार सीएम बनने पर मुलायम सिंह ने आजम को कैबिनेट मंत्री बनाया था। वहीं, 4 अक्टूबर 1992 को जब एसपी का गठन हुआ तो मुलायम की अगुआई में आजम इसके संस्थापक सदस्य बने। यही नहीं पार्टी का संविधान लिखने में भी उनकी अहम भूमिका रही।

आपसी बोलचाल में भी दोनों नेताओं की अलग केमिस्ट्री दिखती है। मुलायम जहां आजम के लिए आजम साहब शब्द का इस्तेमाल करते हैं, वहीं आजम ने कभी अपने प्यारे नेताजी का नाम नहीं लिया। शेरो-शायरी के शौकीन आजम ने एक बार मुलायम पर शेर कहा था, ‘इस सादगी पर कौन न मर जाए ऐ खुदा, करते हैं कत्ल और हाथ में तलवार तक नहीं।’

Related Articles

Back to top button