बांग्लादेशी महिलाओं से सीधी बात:हम हिंदू-मुस्लिम भूलकर साथ में त्योहार मनाती हैं,

लेकिन दंगे भड़कते हैं तो सब बदल जाता है

बांग्लादेश में हिंदू-मुस्लिम महिलाएं आपस में मिलकर रहती हैंपूजा पंडाल में कुरान के अपमान की अफवाह से भड़का दंगा

हफ्तेभर पहले जब बांग्लादेश के कई जिले धू-धूकर जल रहे थे, राजधानी ढाका में जीवन नन्हें बच्चे की तरह मीठी-हल्की सांसें ले रहा था। ढाका यूनिवर्सिटी के लेक्चर रूम में काबुल और अमेरिका पर बहस हो रही थी। दिनभर के थके हुए स्टूडेंट्स पार्कों में सुस्ता रहे थे, या फिर कैंटीन में चाय की चुस्कियां ले रहे थे। कुछ युवतियां इसकी भी प्लानिंग कर रही थीं कि पूजा पंडाल में कैसे सबसे खूबसूरत और अलग लगा जाए।

‘दंगों का तूफान चाहे जितना भयंकर हो, दोस्ती और बहनापे के पुल को गिरा नहीं पाता।’ ये कहना है ढाका की शरमीन सुल्ताना का, जो बात करते हुए एक सांस में सारे हिंदू त्योहारों के नाम गिना डालती हैं। दुर्गा पूजा और शिबरात्रि (शिवरात्रि) शरमीन के पसंदीदा त्योहार हैं, जहां लाल साड़ी और चमकीली बिंदी के साथ पाड़-भर सिंदूर लगाकर वे अपनी सहेलियों के साथ हिंदू बंगालन ही नजर आती हैं।

बांग्लादेश में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों के साथ हुई तोड़फोड़

बांग्लादेश की राजधानी ढाका से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित कुमिल्ला शहर में नवरात्रि पर हिंदुओं पर हिंसा हुई। पड़ताल अब भी चल रही है। लगातार हिंदू समुदाय की सिसकियां मीडिया में सुनाई दे रही हैं। बांग्लादेश के सबसे बड़े एनजीओ हीड (HEED) में ऑपरेशन्स मैनेजर शरमीन सुल्ताना ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत में ‘भीतर के हालात’ साझा किए।

वो सप्तमी का दिन था। हम सारे लोग पूजा मंडप में जाने की तैयारी कर रहे थे, जब कुमिल्ला में कुरान के अपमान की अफवाह उड़ी। कुछ घंटों के भीतर ही मंदिरों पर हमले की खबरें आने लगीं। हमने अपने नातेदारों को फोन खड़काया, खैरियत ली। सब ठीक जानकर हम वापस अपने रुटीन में लग गए।

तब शहर में पूजा की रौनक थी। हिंदू महिलाएं खूब सज-संवरकर पंडालों में जा चुकी थीं। हम जैसे मुस्लिम दोस्त भी ऑफिस से हाफ-डे लेकर उनकी खुशियों में शामिल हो रहे थे पूजा मंडपों से शुरू हुआ मेला मेन सड़क तक आ रहा था। फुचके के ठेलों पर हंसते हुए लोग दनादन फुचके खाने का कॉम्पिटिशन कर रहे थे। हम भी खिलखिलाती हुई उस भीड़ का हिस्सा थे दूसरी ओर ढाका से लगभग 100 किलोमीटर दूर फैली धार्मिक अफवाह, किशोरगंज, चांदपुर समेत पीरगंज, कॉक्स बाजार और गाजीपुर तक कहर बरपा रही थी।

शरमीन सुल्ताना सोशल वर्कर हैं और दुनिया घूमती रहती हैं

राजधानी ढाका के हालात बाकी देश से अलग
ढाका और देश के बाकी जिलों में ये फर्क आम है। राजधानी में हिंदू आबादी अच्छी-खासी है। ज्यादातर लोग पढ़े-लिखे हैं और धर्म को अपने घर से बाहर नहीं आने देते। मैं खुद भी ऐसी ही हूं। जब भी मौका मिले, अपने हिंदू दोस्तों के साथ शिब (शिव) और कृष्ण मंदिर जाती हूं। ढाका से लगभग 10 घंटे की दूरी पर एक मंदिर है, कांताज्यू। कृष्ण का ये मंदिर काफी पुराना है। यहां जाकर हम पूरा दिन बिताकर आते हैं। काम के सिलसिले में नेपाल जाना हुआ तो वहां भी काठमांडू के मंदिर-मंदिर घूमे।

शरमीन दो बार भारत भी आ चुकी हैं। वे कहती हैं- कोलकाता तो बिल्कुल हमारे ढाका जैसा है। गलियों में वैसी ही भीड़। मछली की गंध और छेना की मिठाइयां। हमारे यहां भी एक से बढ़कर एक छेना मिठाई मिलती है। लोग खाने के भारी शौकीन हैं और खाने में मजहब का कोई फर्क नहीं। ‘जीभ और नींद हिंदू-मुस्लिम नहीं जानती। चटपटा सबको अच्छा लगता है, और नींद भी जब आती है, सबको अपने आगोश में ले लेती है’।

ढाका में हिंदुओं के त्योहार काफी धूमधाम से मनाए जाते हैं

ये तो हुआ एक पक्ष लेकिन क्या दूसरा कोना भी इतना ही उजला है!
इस बात को समझने के लिए हमने बांग्लादेशी हिंदुओं को टटोला। काफी भरोसा दिलाने के बाद एक हिंदू युवती इस शर्त पर बोलने को तैयार हुई कि हम उसका पूरा नाम नहीं देंगे। होरिता (हरिता) 37 साल की हैं और ढाका केआईटी सेक्टर में काम कर रही हैं।

हमसे बात करते हुए ऑनरिकॉर्ड होरिता का पहला शब्द था- डर!
फोन पर ही फुसफुसाते हुए वे कहती हैं- हिंदू यहां डरे हुए हैं, जैसे अपने ही देश में शरणार्थी हों। खासकर हिंदू लड़कियों और बाकी माइनोरिटी की हालत खराब रहती है कभी उन्हें प्यार के नाम पर किडनैप कर लिया जाता है तो कभी बदले के नाम पर। मेरे ही पड़ोस में एक लड़की थी, जिसे मेजोरिटी (होरिता कम्युनिटी का नाम लेते से भी झिझक रही थीं) का एक लड़का परेशान कर रहा था।

कुछ दिनों तक जब मेरी दोस्त ने कोई जवाब नहीं दिया तो लड़का क्लासरूम तक जाने लगा एक रात कई लड़कों के साथ मिलकर उस शोहदे ने लड़की के भाई को बुरी तरह से पीट दिया। उसकी जिद थी कि लड़की उससे शादी कर ले। हालात इतने बिगड़े कि सहेली को कॉलेज जाना बंद करना पड़ा और अचानक वो फैमिली के साथ रातोंरात शहर से भी गायब हो गई। अब वो मेरे कॉन्टैक्ट में नहीं है।

हिंदू दुकानदार वीकेंड पर अक्सर सहमे हुए रहते हैं

ढाका के भीतर सब ठीक है। यहां आबादी घनी है। लोग पढ़े-लिखे हैं। पुलिस सख्त है। ऐसे में दंगा-फसाद की खास गुंजाइश नहीं बनती, लेकिन जैसे ही शहर का बॉर्डर लांघा, मुश्किलें शुरू हो जाती हैं।

सबसे खराब तो वीकेंड होता है!
वजह पूछने पर होरिता बस एक लाइन कहती हैं- इस वक्त लोग खाली रहते हैं। जब कोई काम नहीं होता, तो एक बड़ा काम ये भी रहता है कि माइनोरिटी को धमका दिया जाए। तो वीकेंड पर कई जिलों में यही हाल रहता है। लोग दुकान पर आते हैं और बिना पैसे दिए ताजा मछलियां, साग, राशन सब ले जाते हैं। हालत ये है कि अगर हिंदू दुकानदार शॉप बंद करके घर बैठें तो दरवाजा तोड़कर सामान उठा लिया जाता है।

होरिता खुद को नास्तिक बताती हैं। इसकी वजह थी, साल 2001 में हुए दंगे। वे बताती हैं- BNP की जीत के बाद मेजोरिटी ने हिंदुओं को चुन-चुनकर मारा। हिंदू औरतों से रेप हुए छोटी बच्चियों से लेकर कब्र में जाने का इंतजार कर रही दादियों तक को नहीं बख्शा गया। हमें हिंदू होने की सजा मिली। तब से धर्म को लेकर मन खट्टा हो गया। मैंने सारे त्योहार मनाने छोड़ दिए। दुर्गा पूजा भी। जब पूजा होती है, मैं घर पर अकेली बैठी भात-माछ खा रही होती हूं।

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