यूपी के मदरसों को जो कानून दिलाता था पैसा, वो कानून ‘असंवैधानिक’ क्यों घोषित हुआ?

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने आज यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया। जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने कहा कि यह धर्म निरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया गया है कि मदरसों में पढ़ रहे छात्रों की आगे की शिक्षा पर योजना बनाई जाए।

इलाहाबाद के इस फैसले से उत्तर प्रदेश के करीब 15 हज़ार मदरसे प्रभावित होंगे, इसलिए यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा के चेयरमैन डॉ. इफ्तिखार अहमद ने कहा है कि वह आदेश की कॉपी पढ़ेंगे और इस फैसले से करीब 2 लाख बच्चे प्रभावित होंगे और रोज़गार भी चला जाएगा। इसलिए इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे।

क्या है मामला?

अंशुमान सिंह राठौड़ और कुछ लोगों ने कोर्ट में याचिका दाखिल करके भारत सरकार, राज्य सरकार और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा मदरसों की व्यवस्था पर आपत्ति जताई थी।

उच्च न्यायालय ने 2019 में मदरसा बोर्ड के कामकाज और संरचना से संबंधित कुछ सवाल बड़ी पीठ को भेजे थे, जिसमें कहा गया था कि क्या बोर्ड का उद्देश्य सिर्फ धार्मिक शिक्षा देना है। क्या भारत के धर्म निरपेक्ष संविधान में किसी धर्म विशेष के लोगों से संबंधित शिक्षा के लिए बोर्ड में नियुक्त/नामांकित किया जा सकता है? अधिनियम में बोर्ड को राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के तहत काम करने का भी प्रावधान है। जबकि जैन, सिख, ईसाई आदि जैसे अन्य अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित सभी अन्य शिक्षा संस्थान शिक्षा मंत्रालय के तहत चलाए जा रहे है।

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