मौनम् लक्षणम् स्वीकृति की परिपाटी पर क्या है समाजवाद का भविष्य–स्वामी प्रसाद मौर्य

स्वामी प्रसाद मौर्या के राम चरित मानस पर बयान देने के बाद अब समाजवादी पार्टी के पूर्व कैबिनेट मंत्री मनोज पाण्डेय ने स्वामी प्रसाद मौर्य पर सीधे तौर पर निशाना नहीं साधा बल्कि वह पार्टी की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए इतना ज़रूर कहा की रामचरितमानस ना सिर्फ देश के बल्कि विदेशों में भी हिंदुस्तानियों के लिए आधार है। और उनके लिए अकाट है यही रामचरितमानस क्या है यह हिंदुस्तानी को पता है जहां तक रामचरितमानस का सवाल है

हिंदुस्तान में रहने वाले अधिकांश लोग उसका पाठ करते हैं यही नहीं समाजवादी विचारधारा है लोगों के अलग-अलग हो सकते हैं। समाजवाद सबसे बड़े लोहिया भी राम चरित मानस का पाठ करते थे यही नहीं रामचरितमानस अकाट सत्य है। लेकिन इन सभी बयानों को कटाक्ष करते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा जिसकी जितनी बड़ी सोच है उतना ही बड़ा उसका बयान होगा उतनी ही उसकी ओछी सोच होगी इसलिए ऐसे लोगों पर मुझे तरस आता है जिनको पढ़ने लिखने का मौका नहीं मिला और खुद तो खुद तो ज्ञान करते नहीं दूसरों को भी अल्प ज्ञानी कहने में थोड़ा भी शर्म नहीं आती है यहां पर राजनीति और वोट का कोई मामला ही नहीं है हम तो सीधे सीधे उन अंशों पर आपत्ति है जो हमारे लिए आपत्तिजनक है अ गाली है अपमान है हर आदमी को अपने अपमान किसी को भी यदि किसी को अपमान बुरा लगता है यदि यही गाली देने वाले लोगों को गाली दी जाए तो क्या वह हमारी आरती उतारेंगे इसलिए गाली गाली है

गाली धर्म नहीं हो सकता है कोई भी धर्म इंसानियत के लिए है इंसानियत कत्लेआम इंसानियत को अपमानित करने के लिए नहीं है नेताजी मुलायम सिंह यादव जी एक बहुत बड़ा व्यक्तित्व था विशाल व्यक्तित्व था लंबा संघर्ष था देश के रक्षा मंत्री के रूप में रक्षा मंत्रालय एक नई दिशा दिया उनके विचार और व्यक्तित्व देखते हुए उनके महान नेतृत्व ध्यान में रखते हुए अगर उनका सम्मान करना ही था तो भारत सरकार को भारत रत्न देकर सम्मानित करना चाहिए पदम विभूषण नेताजी के व्यक्तित्व के सामने बहुत ही बौना सम्मान है इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने जानबूझकर 2024 देखते हुए यह दांव जो फेंका है यह हम समझते हैं सरकार की ओछी सोच है की किसी बहुत बड़े नेता के कद को छोटा करना हो तो उसे छोटा पुरस्कार दे देना चाहिए किसी पार्टी का मेंबर होना मतलब नहीं होता की जुबान पर ताला लगा रहे हम अपने व्यक्ति और विचार रख सकते हैं हमने पार्टी फोरम के नाम से अपना आपत्ति दर्ज नहीं किया था जब पार्टी फोरम से मेरा बयान नहीं दिया गया तो पार्टी का बयान हो ही नहीं सकता तो स्वामी प्रसाद मौर्या ने बयान देते वक्त कहा था यह मेरा निजी बयान है यह मेरा व्यक्तिगत बयान है

अगर मगर कहीं दूर दूर तक ऐसा अंदेशा नहीं है और क्योंकि पार्टी का बयान नहीं है इसलिए पार्टी को कोई इस पर एतराज भी नहीं है और होना भी नहीं चाहिए ऐसा है पागल दूसरों को भी पागल ही समझता है हो सकता उनका विशेषाधिकार हो तुलसी बाबा ने उनको अधिकार दिया हो पूजहि विप्र सकल गुण हीना यानी समस्त गुणों से चोर हो लंपट हो दुराचारी हो देशद्रोही हो फिर भी उसका सम्मान करिए वह उस कैटेगरी में आते हैं इसलिए मैं उन पर टिप्पणी नहीं करता जिसकी जितनी बड़ी सोच है उतना ही बड़ा उसका बयान होगा उसकी उतनी ही ओछी सोच होगी।

हम तो सीधे सीधे उन अंशों पर आपत्ति है जो जो आपत्तिजनक है। लेकिन अगर इन दोनों पक्षों को यानी कि समाजवादी पार्टी के दो बड़े नेता मनोज पांडे और स्वामी प्रसाद मौर्य के जो बोल हैं उससे एक बात का तो अंदाजा लगाया जा सकता है कहीं ना कहीं पार्टी के अंदर भितरघात जरूर हो रही है और हो भी क्यों ना क्योंकि दोनों नेताओं की राजनीतिक कर्मभूमि रायबरेली रही है तो गाहे-बगाहे वर्चस्व की लड़ाई को लेकर अब यह लड़ाई पार्टीगत बनती जा रही है लेकिन इन सभी बयानबाजी पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री यानी अखिलेश यादव का चुप रहना भी किस ओर इशारा करता है लिहाजा आने वाला वक्त ही बताएगा कि कौन पार्टी के अंदर जयचंद की भूमिका मैं रोल अदा कर रहा है ।

या यूं कह लें की पार्टी आलाकमान अब एक नए समाजवाद की परिपाटी की ओर अग्रसर हैं और उस पर परिपाटी का नाम है मौनम् लक्षणम् स्वीकृति।

और इस टिप्पणी करने की वजह से इन दिनों के स्वामी प्रसाद मौर्य काफी सुर्खियां बटोर रहे हैं। इस बीच खबर ये आ रही है कि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव रामचरितमानस पर टिप्पणी को लेकर अपने पार्टी सहयोगी स्वामी प्रसाद मौर्य से नाखुश हैं।सूत्रों के मुताबिक अखिलेश यादव मौर्य से काफी नाराज हैं और पार्टी की तरफ से इस मसले पर जल्द ही प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करेंगे है।

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