स्वस्थ लोकतंत्र के लिए राजनेतिक दलों का होना बहुत जरुरी है , बिना विपक्ष के लोकतंत्र स्वस्थ नहीं

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए राजनेतिक दलों का होना बहुत जरुरी है , बिना विपक्ष के लोकतंत्र स्वस्थ नहीं

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए राजनेतिक दलों का होना बहुत जरुरी है , बिना विपक्ष के लोकतंत्र स्वस्थ नहीं रहे सकता। राजनेतिक दलों का एक दूसरे का नामो निशान मिटाना राजनीत के लिए बिलकुल गलत होगा । छेत्रिक दल को भाजपा नहीं वो खुद अपने आप को खत्म कर रहे है। छेत्रिक दल जनता के बीच न जाकर संघर्ष नहीं कर रही गई जिसकी कारण वो समाप्त होती नजर आ रही है । राजनीत में तमाम सलाहकारों की, राजनेतिक विचार धाराओं वाले के साथ की जरूरत होती है जिससे नीति चलती है ।

यूपी और बिहार में बिना जातिगत आंकड़ों के राजनीत संभव नहीं है और जातिगत मामलों में समाजवादी पार्टी बहुत ही मजबूती से खड़ी उतरती है । रामपुर और आजमगढ़ में सपा के बहुत मतदाता थे लेकिन उन्होंने मत दान नहीं किया क्योंकि उनके कार्यकर्ताओं में जोश की कमी थी जिस पर काम नहीं किया जा रहा है । अपने दलों के कार्यकर्ताओं में उत्साह भरना उसके नेता का काम होता है जो की अखिलेश यादव नहीं भर पा रहे है ।  राजनेतिक दलों का संघर्ष ही उन्हें आगे लेकर जाता है और संघर्ष जनता के बीच जाकर होता है । भाजपा अपनी रणनीति में बहुत कुशल है उनका एक एक कदम उन्हें प्रगति की ओर लेकर जाता है , सपा को उनसे मुकाबला करने के लिए अपनी राजनीत की ओर खास ध्यान देना होगा ताकि वो भी प्रगति की ओर अपना कदम बड़ा सके।
सपा की मजबूती तो सबने जातिगत मामलों में खुद को समर्थ दिखाने में देखी ही है तो भाजपा उन्हें समाप्त तो नहीं कर पाएगी लेकिन अगर उन्होंने अपनी रणनीति ठीक नहीं की तो खुद का समाप्त होने का कारण सपा खुद होगी।

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