PM मोदी ने कहा स्थानीय भाषा में हो अदालती कार्यवाही, सामान्य नागरिकों न्याय प्रणाली में बढ़ेगा भरोसा

PM मोदी ने मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया

नई दिल्ली: पीएम मोदी ने शनिवार को राजधानी दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। पीएम मोदी ने कहा, ‘राज्य के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की ये संयुक्त सम्मेलन हमारी संवैधानिक खूबसूरती का सजीव चित्रण है। मुझे खुशी है कि इस मौके पर मुझे भी आप सभी के बीच कुछ पल बिताने का अवसर मिला है।’इस सम्मेलन में केंद्रीय कानून व न्याय मंत्री किरेन रिजिजू और भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण भी मौजूद रहे।

इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि हमारे देश में जहां एक ओर न्यायपालिका की भूमिका संविधान संरक्षक की है, वहीं विधायिका नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का यह संगम, यह संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा। पीएम मोदी ने कहा कि आजादी के इन 75 वर्षों ने न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों की ही भूमिका और जिम्मेदारियों को निरंतर स्पष्ट किया है। जहां जब भी जरूरी हुआ, देश को दिशा देने के लिए दोनों संस्थाओं के बीच का यह संबंध लगातार विकसित हुआ है।

ज्यूडिशियल सिस्टम में टेक्नोलॉजी डिजिटल इंडिया मिशन का जरूरी हिस्सा

पीएम ने कहा, 2047 में जब देश अपनी आजादी के 100 साल पूरे करेगा, तब हम देश में कैसी न्याय व्यवस्था देखना चाहेंगे? हम किस तरह अपनी न्यायिक व्यवस्था को इतना समर्थ बनाएं कि वह 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके, उन पर खरा उतर सके, इस प्रश्न का जवाब ढूंढना आज हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत सरकार भी ज्यूडिशियल सिस्टम में टेक्नोलॉजी की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है। उदाहरण के तौर पर, ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट को आज मिशन मोड में इम्प्लीमेंट किया जा रहा है। हम न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। हम न्यायिक व्यवस्था के बुनियादी ढांचे में सुधार और उन्नयन के लिए भी काम कर रहे हैं।

स्थानीय भाषा में हो अदालती कार्यवाही

पीएम मोदी ने कहा कि हमें कोर्ट में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा, वे जुड़ाव महसूस करेंगे। हमारे देश में आज भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की सारी कार्यवाही अंग्रेजी में होती है। एक बड़ी आबादी को न्यायिक प्रक्रिया से लेकर फैसलों तक को समझना मुश्किल होता है, हमें व्यवस्था को आम जनता के लिए सरल बनाने की जरूरत है। एक गंभीर विषय आम आदमी के लिए कानून की पेंचीदगियों का भी है। 2015 में हमने करीब 1800 ऐसे कानूनों को चिन्हित किया था जो अप्रासंगिक हो चुके थे। इनमें से जो केंद्र के कानून थे, ऐसे 1450 कानूनों को हमने खत्म किया. लेकिन, राज्यों की तरफ से केवल 75 कानून ही खत्म किए गए हैं।

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