एक बार फिर भाषाओँ पर मचा बवाल, जानिए कितने लोग बोलते हैं हिंदी

भाषाओं पर मचा फिर से हंगामा, समझिए कितने लोग बोलते हैं हिंदी  

लखनऊ: पिछले कुछ दिनों से हिंदी भाषा को लेकर बवाल मचा हुआ है. इसकी शुरुआत तब हुई जब गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यों से अपील की कि इंग्लिश के बजाए हिंदी में एक-दूसरे के साथ बातचीत किया. हालंकि उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी को स्थानीय भाषाओं का विकल्प नहीं होना चाहिए. तो आइए जानते हैं कि देश में हिंदी का क्या गणित है?

भारत में कितने लोग बोलते हैं हिंदी?

2011 की भाषाई जनगणना में 121 मातृभाषाएं हैं. इन 121 भाषाओं में से संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल हैं. इन 22 भाषाओं में से हिंदी सबसे अधिक बोली जानी वाली भाषा हैं. 52.8 करोड़ लोगों ने अपनी मातृभाषा हिंदी बताई थी जो कि 43.63 फीसदी आबादी थी. इसका मतलब यह है कि 56.4 फीसदी लोगों की मातृभाषा हिंदी नहीं थी. हालांकि देश के लगभग 57 फीसदी लोग हिंदी भाषा को समझते हैं.

हिंदी के बाद बंगाली (8.03%), मराठी (6.86%), तेलुगु (6.7%), तमिल (5.7%), गुजराती (4.58%), उर्दू (4.19%), कन्नड़ (3.61%), ओडिया (3.1%), मलयालम (2.88%), पंजाबी (2.74%), असमिया (1.26%) और मैथिली (1.12%) जैसी संविधान की सूची में शामिल बड़ी भाषाएं हैं.

क्या शुरू से ही इतनी बड़ी आबादी की मातृभाषा रही है? हिंदी

हिंदी दशकों से भारत की प्रमुख भाषाओं में से रही है.1971 की जनगणना में 37 फीसदी लोगों ने अपनी मातृभाषा हिंदी बताई थी जो 1981 में बढ़कर 38.7 फीसदी, 1991 में 39.2 फीसदी, 2001 में 41 फीसदी व 2011 में 43.6 फीसदी पहुंच गई है.

हिंदी की हिस्सेदारी बढ़ी तो बंगाली, मलयालम व उर्दू जैसी भाषाओं में गिरावट आई है, लेकिन अगर आप आबादी के लिहाज से देखें तो 1971 में 20.2 करोड़ लोगों ने अपनी मातृभाषा हिंदी बताई थी जो 2011 में 2.6 गुना बढ़कर 52.8 करोड़ तक पहुंच गई. इसके साथ ही पंजाबी, मैथिली, बंगाली, गुजराती व कन्नड़ जैसी भाषाओं को मातृभाषा बताने वाले लोगों की संख्या भी दोगुनी से अधिक हो गई.

क्या हिंदी के नाम पर कई भाषाओं को गया है जोड़ा?

जनगणना 2011 के मुताबिक यूपी, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश व  छतीसगढ़ आदि प्रदेश में बड़े स्तर पर बोली जाती है. भाषाई विशेषज्ञों का मानना है कि कुमाउनी, गढ़वाली, छतीसगढ़ी, राजस्थानी, भोजपुरी, मगही आदि भाषाओं को बोलने वाले लोग लाखों-करोड़ों में हैं लेकिन इन भाषाओं को हिंदी की उपभाषा या बोली बताकर हिंदी में ही जोड़ दिया जाता है.

भोजपुरी व राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए लगातार करने की मांग उठती रहती है तो ऐसे में दलील दी जाती है कि भोजपुरी और राजस्थानी भाषाओं को जबरन हिंदी के साथ जोड़ा गया है. 2011 जनगणना की एक रिपोर्ट बताती है कि 26.6 फीसदी लोगों ने माने लगभग 32.2 करोड़ लोगों ने हिंदी को अपनी मातृभाषा बताई थी और बाकी के लोगों ने अपनी मातृभाषा भोजपुरी, राजस्थानी, छतीसगढ़ी, मगही आदि बताई थी जिसे हिंदी में ही जोड़ा गया है.

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