महाभारत का एकमात्र साक्षी: अक्षय वैट

अक्षय वट की कहानी; कुरुक्षेत्र के ज्योतिसर का वह बरगद जिसके नीचे श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था गीता का उपदेश

ज्योतिसर स्थित वट वृक्ष पर लोग परांदे बांध देते थे। संगमरमर के पत्थर लगने से ऑक्सीजन नहीं पहुंच पा रही थी। इसके बाद फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देहरादून ने इस वृक्ष की स्थिति में सुधार के लिए काम किया।

हरियाणा के कुरुक्षेत्र (ज्योतिसर) में जिस वट वृक्ष के नीचे श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, वह आज भी मौजूद है। ज्योतिसर के इस बरगद को महाभारत का एकमात्र साक्षी माना जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर वट वृक्ष की कहानी, उसी की जुबानी…

मैं अक्षय वट हूं…! महाभारत के युद्ध का एकमात्र साक्षी…। मैं वही बरगद हूं, जिसकी छांव में धनुर्धारी अर्जुन ने प्रियजनों के खिलाफ शस्त्र उठाने से इनकार कर दिया तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें आत्मा और शरीर का परम ज्ञान दिया। गीता उपदेश के 18 अध्यायों के हर शब्द को… हर नाद को मैंने सार सहित सुना है। मैंने… नर को कर्म और फल का रहस्य समझाते नारायण के विशाल रूप का दर्शन भी किया है। हरियाणा में कुरुक्षेत्र से आठ किलोमीटर दूर पेहोवा रोड पर ज्योतिसर में मैं आज भी गीता के उस अजर… अमर… ज्ञान की तरह चिरंजीव हूं। चिर युगों से… बिना ऐतिहासिक प्रमाण के चली आ रही इस जीवनगाथा की सबसे बड़ी विडंबना ये रही कि किसी भी ग्रंथ में मुझे स्थान नहीं मिला। बस परम्पराओं पर एक विश्वास ने मेरी कहानी को आगे बढ़ाया। एक समय ये परम्पराएं और आस्था ही मेरे जीवन के लिए विपदा बन गईं। इनके भार से मुझे गहरे घाव मिले… और युगों की इस यात्रा पर संकट खड़ा हो गया। मेरी स्थिति को देख मुझे नया जीवनदान देने के लिए कुछ प्रयास शुरू हुए। ये प्रयास फलीभूत भी हुए। इन प्रयासों ने मेरे अनुभवों के फेहरिस्त में एक नया अध्याय जोड़ दिया। मैं आज भी वही अक्षय वट हूं… चिरंजीव…!

आस्था के परांदों से सूखने लगी थीं शाखाएं
ज्योतिसर स्थित महाभारत के साक्षी अक्षय वट वृक्ष के प्रति लोगों की आस्था ही इसके जीवन के लिए खतरा बन गई थी। यहां आने वाले श्रद्धालु भारी संख्या में वट वृक्ष पर परांदे बांध देते थे। इससे गहरे निशान होने के कारण पेड़ की शाखाएं सूखने लगी थीं। परिक्रमा मार्ग पर चारों ओर संगमरमर का पत्थर लगाने से पेड़ की जड़ों तक ऑक्सीजन ठीक से नहीं पहुंच पा रही थी। ऑक्सीजन की कमी के कारण यह पेड़ धीरे-धीरे कमजोर हो रहा था।

बड़े-बड़े निशान होने से कम हो रही थी नमी
इस अक्षय वट वृक्ष पर लाइट एंड साउंड शो के लिए लेजर लाइट लगाई गईं थीं। गर्मी बढ़ जाने से पत्ते व टहनियों पर असर दिखने लगा था। धीरे-धीरे सूखने लग गए थे। पक्षियों से बचाव के लिए भी पेड़ पर एक जाल लगा दिया गया था। जाल को टांगने के लिए यहां-वहां कीलें लगाई गईं। जाल जहां-जहां बंधा था, वहां भी पेड़ पर गहरे निशान बन गए। इनके कारण पेड़ की नमी सूखने लगी थी।

2015 में शुरू हुए बदलने के प्रयास
पेड़ की खराब हालत को देखते हुए कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड ने फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देहरादून (FRI) के विशेषज्ञों से संपर्क किया। इंस्टीट्यूट के पैथोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. एनएसके हर्ष की टीम ने ज्योतिसर का दौरा किया। 2012 से 2014 तक पेड़ पर नजर रखी। तय किया गया कि कई बदलाव करने पड़ेंगे। यह सिफारिश की गई कि संगमरमर के पत्थरों को हटाया जाए। साथ ही, जाल, लेजर लाइट और परांदे आदि दूसरी चीजें पेड़ से अलग कर दी जाएं।

ज्योतिसर धाम स्थित अक्षय वट वृक्ष की स्थिति सुधारने के लिए कुरुक्षेत्र विकास प्राधिकरण ने अगस्त, 2014 में FRI को प्रस्ताव दिया। संस्थान के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2015 से इस पर काम शुरू किया। पेड़ के चारों ओर 10 मिलीमीटर के छेद बनाए गए। इस दौरान वट वृक्ष की लटों को ट्रेंड करके जमीन में दबाया गया। इससे ये तने का रूप धारण कर लेंगी और वृक्ष में मजबूती आ जाएगी।

हम परम्पराओं पर विश्वास करते हैं : सिन्हा
कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के दर्शनशास्त्र विभाग के पूर्व चेयरमैन और कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी कोर्ट के पूर्व सदस्य डॉ. एचएस सिन्हा (MA, PhD, आयुर्वेद रत्न और विद्या भारती शिक्षा संस्कृति संस्थान के रिचर्स डॉयरेक्टर) ने बताया कि श्रीकृष्ण ने गीता कहां कही, इसका किसी ग्रंथ में वर्णन नहीं है। परम्पराओं से ये माना जाता है कि गीता का उपदेश यहां इस अक्षय वट के नीचे दिया गया था। ऐतिहासिक प्रमाण कोई नहीं है। हम परम्पराओं पर ही विश्वास करते हैं।

93 साल के सिन्हा ने कुरुक्षेत्र यूर्निवसिटी में इतिहास विभाग के हेड रहे और हरियाणा इतिहास अकादमी के डायरेक्टर महेंद्र सिंह तंवर का हवाला देते हुए बताया कि आदिगुरु शंकराचार्य ने यहां से ही गीता का महत्व लिखना शुरू किया था। तंवर के अनुसार, 777 ई. पूर्व में यहां आए जगत् गुरु शंकराचार्य ने अपनी कल्पना से ये देखा था कि श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश यहां दिया था। उसके बाद इस जगह को ये मान्यता प्राप्त हो गई। वट वृक्षों के बारे में ये मान्यता है कि ये 5 हजार साल पुराने वृक्ष हैं। ऐसा माना जाता है कि उसी पेड़ की शाखाएं हैं, जो अब पूरी तरह से फैल चुकी हैं।

वैज्ञानिकों की पहल से जीवनदान
कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के मानद सचिव मदन मोहन छाबड़ा ने बताया कि ज्योतिसर वह स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता का अमर संदेश सुनाया। अक्षय वट वृक्ष इस बात का साक्षी है। यह वट वृक्ष अपने एरियल द्वारा अपना अस्तित्व बनाए हुए है। हवा में इसकी जड़ें आगे-आगे बढ़ती जा रही हैं। इसकी देखभाल पिछले कुछ वर्षों से देहरादून का फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट कर रहा है। इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक समय-समय पर यहां का दौरा करते हैं। वैज्ञानिक जैसे दिशा-निर्देश देते हैं उसके अनुसार व्यवस्था करते हैं। पहले प्लेटफार्म कम चौड़ा था, उसे और चौड़ा कर विस्तारित करने के बाद अक्षय वट वृक्ष को काफी फायदा हुआ है।

वट वृक्ष का उपचार
देहरादून स्थित FRI के महानिदेशक अरुण सिंह रावत ने बताया कि संस्थान के वैज्ञानिक पैथोलॉजी डिवीजन के प्रमुख डॉ. एनएसके हर्ष की देखरेख में ज्योतिसर के वट वृक्ष का उपचार किया गया। डॉ. हर्ष ने रिपोर्ट दी थी कि पेड़ फाइकस बेंगालेसिस प्रजाति का है। एक मुख्य पेड़ है और दो इसकी शाखाएं हैं। इस पेड़ को समय-समय पर देखरेख की जरूरत पड़ती है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने सूख चुकी पेड़ की जड़ों का भी उपचार कर इसे नया जीवन दिया है।

सरोवर पर बने हैं मंदिर
सरोवर पर पहुंचते ही वट वृक्ष के बीच में प्राचीन शिव मंदिर है। इससे आगे बढ़ने पर माता काली मंदिर, शिव मंदिर, हनुमान मंदिर बने हैं। इससे आगे महाभारत की झांकियां बनी हुईं हैं। इनके बीच में नारायण का विशाल रूप विराजमान है। इससे आगे लक्ष्मी नारायण मंदिर, गीता मंदिर, सरस्वती मंदिर के आगे गुरु भवन बना है। वट वृक्ष के पास आदि गुरु शंकराचार्य मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, वेदव्यास व गणेश जी के मंदिर निर्मित हैं।

पांच स्तंभों पर टिका है अक्षय वट
इस समय ज्योतिसर में तालाब के किनारे 5 वटवृक्ष हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि ये पांचों महाभारत के साक्षी रहे अक्षय वट की बरोह, या प्रॉप जड़ों से विकसित हुए हैं। वनस्पति-शास्त्र के विशेषज्ञों के अनुसार, वट वृक्ष (बरगद) की शाखाओं से निकली जड़ें; जिन्हें बरोह, या प्रॉप जड़ कहते हैं, धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ती हैं और जमीन के अंदर घुस जाती हैं। समय के साथ ये प्रॉप जड़ें पेड़ का मुख्य तना बन जाती हैं और पेड़ का उसी से भरण-पोषण होने लगता है। जैसे-जैसे प्रॉप जड़े मजबूत होती जाती हैं, पेड़ का पहले वाला मुख्य तना सूखता चला जाता है। ज्योतिसर में इस समय प्रॉप जड़ों के सहारे अक्षय वट के पांच वशंज खड़े हैं।

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