मस्जिदों की पंचायत का बड़ा फैसला: शादी में DJ बजा तो नहीं पढ़ाया जाएगा निकाह, जानिए क्यों उठाना पड़ा ये कदम ?

उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले से एक बड़ी और चर्चा में आई खबर सामने आई है। यहां मस्जिदों की पंचायत में यह निर्णय लिया गया है कि शादी समारोहों में अगर डीजे बजाया गया, तो उस निकाह को पढ़ा नहीं जाएगा। यह फैसला इस आधार पर लिया गया है कि डीजे का शोर-शराबा समाज में अशांति फैला रहा है और युवाओं को गलत दिशा में ले जा रहा है।

पंचायत का सख्त फरमान: डीजे बजा, तो निकाह नहीं होगा

कासगंज की मुस्लिम समुदाय से जुड़ी सात मस्जिदों के मौलवियों और जिम्मेदार लोगों की एक संयुक्त पंचायत हुई। इस बैठक में समुदाय में बढ़ रही शादियों में दिखावे और तेज डीजे संगीत की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताई गई। मौलानाओं ने कहा कि यह चलन इस्लामी संस्कृति के खिलाफ है और युवाओं को पथभ्रष्ट कर रहा है।

सात मस्जिदों की बैठक में लिया गया सामूहिक निर्णय

इस पंचायत में कासगंज शहर की सात प्रमुख मस्जिदों के इमाम और अन्य वरिष्ठ धार्मिक पदाधिकारी शामिल हुए। उन्होंने सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास किया कि अगर किसी भी शादी में डीजे बजाया गया, तो उस विवाह में निकाह न तो पढ़ा जाएगा और न ही मौलाना को उस निकाह में शामिल होने की अनुमति दी जाएगी।

मौलवियों का तर्क: शोर-शराबा इस्लामिक परंपरा के विरुद्ध

बैठक में मौलानाओं ने कहा कि इस्लाम में सादगी से शादी करने की सलाह दी गई है। डीजे का अत्यधिक शोर धार्मिक दृष्टिकोण से अनुचित माना जाता है। इसके अलावा, कई मामलों में डीजे की वजह से झगड़े, अश्लीलता और माहौल खराब होने की घटनाएं सामने आई हैं। यही कारण है कि इस पर रोक लगाने का निर्णय लिया गया।

समाज में फैसले को लेकर बनी बहस की स्थिति

जहां एक तरफ इस फैसले को लेकर कुछ लोगों ने समर्थन जताया है, वहीं कुछ ने इसे अत्यधिक कठोर बताया है। स्थानीय युवाओं और कुछ अभिभावकों का कहना है कि यह निर्णय उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में दखल है। हालांकि, मस्जिद प्रबंधन कमेटियों का कहना है कि इस तरह के फैसले समाज में सुधार लाने के लिए जरूरी हैं।

पहले भी आ चुके हैं ऐसे फैसले

यह पहली बार नहीं है जब किसी मुस्लिम पंचायत ने शादी के कार्यक्रम में डीजे बजाने को लेकर सख्त निर्णय लिया हो। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश और बिहार के कई जिलों में इस तरह के सामाजिक आदेश सामने आ चुके हैं। लेकिन कासगंज में एक साथ सात मस्जिदों द्वारा लिया गया यह निर्णय विशेष ध्यान आकर्षित कर रहा है।

 

 

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