आतंकियों के डर से जम्मू आए तो पुलिस वाले पीट रहे, वीडियो बनाने पर मोबाइल तोड़े

जम्मू स्टेशन के बाहर बड़ी संख्या में बिहार के लोग हैं। वह बिहार आने के लिए ट्रेन की टिकट मिलने का इंतजार कर रहे हैं।

दो वक्त की रोटी की तलाश में बिहार से कश्मीर गए मजदूरों की दुश्वारियां कम नहीं हो रही हैं। वे कश्मीर से आतंकियों के खौफ के कारण जान बचाकर जम्मू तो आ गए। लेकिन यहां भी दहशत में ही हैं। जम्मू रेलवे स्टेशन के बाहर जमा बिहारियों को पुलिस के जवान आए दिन पीट देते हैं। इकट्‌ठा बैठने पर, मोबाइल से वीडियो बनाने पर जवानों द्वारा उन पर लाठियां बरसाईं जाती हैं। वीडियो कॉल करने पर मोबाइल तोड़ दिया जाता है। जम्मू पुलिस नहीं चाहती कि कोई भी वीडियो क्लिप शेयर हो। दैनिक भास्कर की पड़ताल में बिहारियों का दर्द सामने आया है।

दशहतगर्दों के बाद अब पुलिस का आतंक
जम्मू में स्टेशन के बाहर बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग अलग-अलग ग्रुप में पेड़ों के नीचे प्लास्टिक बिछाकर दिन काट रहे हैं। किसी के पास पैसा नहीं तो किसी को टिकट नहीं मिल रहा है। बांका के राजन साह तो इतना डर गए हैं कि वह दैनिक भास्कर रिपोर्टर से मोबाइल पर बात करने तक को तैयार नहीं हुए। वह किसी भी तरह से पत्नी और दोनों बच्चों के साथ बिहार पहुंचना चाहते हैं।

झारखंड के गोड्डा के रहने वाले कुंदन मंडल ने दैनिक भास्कर से बातचीत में जम्मू के कुछ वीडियो चोरी से बनाकर भेजे। लेकिन, जैसे ही पुलिस की नजर पड़ी, उनका मोबाइल फॉरमेट करा दिया गया। आतंकी घटना में दहशतगर्दों की गोली का शिकार हुए अरविंद के भाई मिथिलेश ने बताया कि पुलिस एक साथ लोगों को रहने नहीं दे रही है। वह भीड़ को हटा रही है। जम्मू में उन्हें कहीं रहने की व्यवस्था भी नहीं दी जा रही है।

खुले आसमान के नीचे बच्चे और महिलाएं
कश्मीर में गोलगप्पा और खाने-पीने का सामान बेचने वाले बिहार के मजदूर परिवार के साथ रह रहे थे। आतंकी वारदात के बाद वह बच्चों के साथ जम्मू भाग आए। बिहारियों का कहना है कि जो सामान हाथ में आया, वे उसे लेकर आ गए। समय नहीं था कि वह घर में रखी गृहस्थी के सभी सामान लेकर आएं। बिस्तर और कपड़ा भी लेकर नहीं चले हैं। अब जम्मू स्टेशन पर वह फर्श पर सो रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चों के पास भी कोई व्यवस्था नहीं है। बिहारी ट्रेन के इंतजार में हैं। टिकट मिलते ही वह बिहार की तरफ बढ़ रहे हैं।

हर साल उत्साह से जाते थे घर, इस बार डरकर जा रहे
कश्मीर में मजदूरी करने वालों का कहना है कि हर साल दीवाली में वह घर जाते थे। हर बार तैयारी से जाते थे। लेकिन, अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि जान बचाना मुश्किल हो गया है। बांका के मंटू का कहना है कि इस साल कोरोना के बाद अब आतंकियों का हमले भारी पड़ रहे हैं। बांका के मिथिलेश ने बताया कि वह समझ नहीं पा रहे हैं कि अब आगे क्या होगा। घर का खर्च कैसे चलेगा। कश्मीर में कारोबार ठीक था और काम की संभावना भी थी। अब ऐसा माहौल हो गया है कि कश्मीर के नाम से डर लग रहा है।

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