पहली बार समलैंगिक को हाईकोर्ट जज बनाने की सिफारिश

जानिए समलैंगिकता पर कोर्ट और सरकार का क्या रहा है रुख

देश को जल्द पहला समलैंगिक जज मिल सकता है। सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने सीनियर वकील सौरभ कृपाल को दिल्ली हाई कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की है। चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम की 11 नवंबर की बैठक में यह सिफारिश की गई है। हालांकि, अभी ये साफ नहीं है कि कृपाल की नियुक्ति कब तक हो पाएगी, लेकिन अगर उनकी नियुक्ति होती है तो समलैंगिकता को लेकर भारत में ये बड़ा कदम होगा।

समझते हैं, सौरभ कृपाल कौन हैं? भारत सरकार और कोर्ट्स का समलैंगिकता पर क्या रुख रहा है? सौरभ को पहले कब-कब जज बनाने की सिफारिश हुई है और उसे क्यों रिजेक्ट कर दिया गया? उनके पार्टनर को लेकर क्या विवाद है? और सौरभ का इस मसले पर क्या कहना है?…

सबसे पहले जानिए कौन हैं सौरभ कृपाल?

सौरभ कृपाल सीनियर वकील और पूर्व चीफ जस्टिस बीएन कृपाल के बेटे हैं। वे पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के साथ बतौर जूनियर काम भी कर चुके हैं। सौरभ कृपाल ने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है। उनके पास ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से लॉ की ड्रिगी है।

वे सुप्रीम कोर्ट में करीब 2 दशक से प्रैक्टिस कर रहे हैं। भारत लौटने से पहले वे जेनेवा में यूनाइटेड नेशंस के साथ भी काम कर चुके हैं। वे समलैंगिक हैं और LGBTQ के अधिकारों के लिए मुखर रहे हैं। सितंबर 2018 में जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अवैध बताने वाली IPC की धारा 377 पर अहम फैसला दिया था, तब सौरभ कृपाल ने ही पिटीशनर की तरफ से पैरवी की थी।

अब जानते हैं, समलैंगिक अधिकारों को लेकर भारतीय कोर्ट्स का क्या रुख रहा है?

भारत में ब्रिटिशर्स के बनाए एक कानून के तहत समलैंगिकता अपराध थी। इसके लिए कानून में सजा और जुर्माने का प्रावधान था। दशकों से एक्टिविस्ट्स इस धारा को रद्द किए जाने की मांग कर रहे थे।

सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध करार देने वाली धारा 377 को रद्द कर दिया था। इसके बाद भारत में समलैंगिकता अपराध नहीं रही। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पहले 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया था। दिल्ली हाई कोर्ट की बेंच ने समलैंगिक संबंधों को गैर-आपराधिक करार दिया था। चीफ जस्टिस एपी शाह और जस्टिस एस मुरलीधर की बेंच ने कहा था कि धारा-377 संविधान के आर्टिकल 21, 14 और 15 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन करती है। हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले को 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने बदल दिया था।

समलैंगिक अधिकारों पर सरकार का क्या रुख रहा है?

समलैंगिकता को लेकर कोर्ट के विपरीत सरकार का रवैया परंपरावादी रहा है। 2013 में जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलटा था, तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून में बदलाव करने का काम संसद का है। इस बारे में संसद में विधेयक भी पेश किए गए, लेकिन उन्हें स्वीकार नहीं किया गया।

साथ ही समलैंगिकता गैर-आपराधिक होने के बाद भी सरकार ने अभी तक IPC में इस लेकर कोई बदलाव नहीं किए गए हैं। भारत में अभी भी लिव-इन-रिलेशनशिप और समलैंगिकता को सामाजिक और कानूनी दोनों तरह की औपचारिक मान्यता मिलना बाकी है।

भारत में सेम सेक्स मैरिज भी गैरकानूनी

भारतीय कानून सेम सेक्स मैरिज को भी मान्यता नहीं देता है। इसी साल फरवरी में दिल्ली हाई कोर्ट में स्पेशल मैरिज एक्ट, हिंदू मैरिज एक्ट और फॉरेन मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के लिए याचिकाएं दायर की गई थीं। इन याचिकाओं पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को अपना रुख बताने के लिए नोटिस दिया था।

नोटिस का जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने कहा था कि “हमारे देश में शादी आवश्यक तौर पर सदियों पुरानी परंपराओं, प्रथाओं, सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों पर टिकी है। धारा 377 को गैर-आपराधिक किए जाने के बाद भी याचिकाकर्ता आर्टिकल-21 के तहत समलैंगिक शादी को लेकर मूलभूत अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं। केवल महिला और पुरुष की शादी को ही कानूनी मान्यता है।”

यानी भारत में अभी भी सेम सेक्स मैरिज गैरकानूनी है। हालांकि, अभी समलैंगिक शादियां हो सकती है, लेकिन उन्हें कानूनी मान्यता नहीं मिलेगी।

सौरभ कृपाल को जज नियुक्त करने को लेकर क्या विवाद रहे हैं वो भी जान लीजिए

दरअसल, इससे पहले भी हाई कोर्ट के जज को लेकर सौरभ कृपाल का नाम कॉलेजियम की ओर से पेश किया गया था, लेकिन केंद्र सरकार ने उनके नाम पर आपत्ति जताई थी। 2017 से अब तक 4 बार कॉलेजियम ने सौरभ का नाम आगे बढ़ाया गया, लेकिन नियुक्ति पर सहमति नहीं बन सकी। अक्टूबर 2017 में पहली बार कॉलेजियम ने उनके नाम की सिफारिश की थी, तब मेरिट का हवाला देते हुए सौरभ का नाम आगे नहीं बढ़ पाया था। इसके बाद सितंबर 2018, जनवरी और अप्रैल 2019 में भी सौरभ के नाम पर सहमति नहीं बन पाई।

कहा जाता है कि इंटेलीजेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट सौरभ के पक्ष में नहीं थी। दरअसल, सौरभ के पार्टनर यूरोप से हैं और स्विस दूतावास के साथ काम करते हैं। उनके विदेशी पार्टनर की वजह से सुरक्षा के लिहाज से उनका नाम रिजेक्ट कर दिया गया था।

हालांकि, टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में सौरभ ने कहा है कि अभी तक जज नहीं बनने की वजह कहीं न कहीं मेरा सैक्सुअल ओरिएंटेशन भी है। सरकार अभी तक इसकी जांच नहीं कर पाई है कि मेरा विदेशी पार्टनर नेशनल सिक्योरिटी के लिए खतरा हो सकता है या नहीं।

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