संस्कृत के बाद बीएचयू में आयुर्वेद पढ़ाएंगे फ़िरोज़ खान !

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत धर्म संकाय में मुस्लिम प्रोफेसर डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर चल रहा विरोध प्रदर्शन बंद हो चुका है। इसके बाद शुक्रवार को प्रोफेसर डॉ फ़िरोज़ खान का आयुर्वेद विभाग में इंटरव्यू है। छात्रों के विरोध ख़त्म होने के बाद फिरोज खान शुक्रवार को पहली बार बीएचयू कैंपस में नजर आए। आयुर्वेद संकाय में उनके इंटरव्यू होने की पुष्टि संकाय के प्रमुख यामिनी भूषण तिवारी ने की।

बता दें कि फिरोज खान ने बीएचयू के दो विभागों में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर आवेदन किया था। एक संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय और दूसरा आयुर्वेद विभाग में। इसको लेकर बीएचयू के जनसूचना अधिकारी डॉ. राजेश सिंह ने बताया कि फिरोज खान ने यूनिवर्सिटी के आयुर्वेद विभाग में पहले से ही आवेदन कर रखा था। वहीँ इंटरव्यू के बाद विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय प्रमुख डॉक्टर यामिनी भूषण त्रिपाठी ने बताया कि 29 तारीख को सुबह 8:00 बजे से शुरू हुई प्रक्रिया में 10 अभ्यर्थियों को बुलाया गया था। उसमें 8 बच्चे आए जिनमे से एक फिरोज खान भी थे। प्रक्रिया पूरी हो गई है। रिजल्ट आने पर सूचित किया जाएगा कि उनका क्या होगा।

दरअसल बीएचयू की वेबसाइट के मुताबिक, मई 2019 विज्ञापन निकाला गया था। इसमें आवेदन की अंतिम तारीख 26 जून थी। इस वैकेंसी में संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के साहित्य विभाग के अलावा आईएमएस के आयुर्वेद संकाय के संहिता और संस्कृत विभाग में असिस्‍टेंट प्रोफेसर, कला संकाय के संस्कृत विभाग, शिक्षा संकाय के शिक्षा विभाग, म्यूजिकोलॉजी विभाग और राजीव गांधी साउथ कैंपस बरकछा (मिर्जापुर) में संस्कृत से संबंधित असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर आवेदन निकला था। ऐसे में फ़िरोज़ खान ने संस्कृत और आयुर्वेद विभाग में आवेदन दिया था।

हालाँकि संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान विभाग में फिरोज खान की नियुक्ति के बाद यूनिवर्सिटी के छात्रों का विरोध शुरू हो गया था। धरने का नेतृत्व कर रहे छात्र चक्रपाणि ओझा ने कहा कि वे प्रोफेसर फिरोज खान का विरोध नहीं कर रहे, बल्कि उनका विरोध नियुक्ति प्रक्रिया में अनियमितता के खिलाफ है। वहीं, छात्रों ने कहा कि हमारा विरोध नियुक्त प्रोफेसर द्वारा संस्कृत पढ़ाने को लेकर नही हैं। हमारा विरोध बस इतना है कि जो हमारी रीत, संस्कार को जानता ही नहीं वो शिक्षा कैसे देगा।

हालाँकि कई दिनों के विरोध के बाद यूनिवर्सिटी कुलपति के यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा इस मामले में उचित कदम उठाए जाने के बाद प्रदर्शन बंद कर दिया गया। बता दें कि इस मामले में आरएसएस ने भी प्रोफेसर के समर्थन में कहा था कि एक भाषा को पढ़ाने के लिए शिक्षक का धर्म देखना सही नहीं है।

अश्विनी त्रिपाठी की रिपोर्ट

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