कहीं मैं ही तो गुनाहगार नहीं ?

जनवादी महिला समिति की पूर्व  अध्यक्ष जगमति सांगवान ने पी टी उषा को चिट्ठी लिखकर महिला कोच के मामले का संज्ञान लेने का आह्वान किया है तो हरियाणा महिला हाॅकी संगठन की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष श्रीमती कृष्णा सम्पत भी इस पूरे प्रकरण से बहुत व्यथित हैं और महिला कोच के मामले को जल्द से जल्द सम्मानपूर्वक हल किये जाने की मांग उठा रही हैं ।

नई दिल्ली। एक फिल्म आई थी ‘इंसाफ का तराजू’ जिसमें राज बब्बर , जीनत अमान और पल्लवी जोशी मुख्य किरदार थे । इसमें इज्जत लुटने पर चले केस में पीड़िता से विपक्षी वकील इतने सवाल जवाब करता है कि नायिका हैरान परेशान हो जाती है । इसी तरह एक अन्य फिल्म है -दामिनी । इसमें भी वकील के किरदार में अमरीश पुरी नायिका मीनाक्षी शेषाद्रि से इतने बुरे बुरे सवाल करते हैं कि दामिनी बेबस नजर आती है । ये तो फिल्मों की बातें हैं । पर फिल्में क्या हमारे समाज का आइना नहीं हैं ?

यदि हरियाणा की महिला कोच और खेलमंत्री के मामले में चल रही कार्रवाई को देखा जाये तो ये फिल्में और यह कड़वी सच्चाई सामने आ जाती है । पीड़िता कह रही है कि मैं पांच बार बयान दे चुकी हूं । और अब ऐसा लग रहा है जैसे मैं ही दोषी हूं । सारा कसूर मेरा ही है । जैसे मैं ही आरोपी हूं । मंत्री की कोठी पर ले जाकर फिर से सीन रिक्रेएट किया गया । फोन तक जब्त किया गया तो महिला कोच का न कि खेलमंत्री का ! यह सब क्या है और जांच का कैसा तरीका ? किस ओर झुक रहा है इंसाफ का तराजू ?  सिर्फ आरोपी से ही पूछताछ ? उसे साढ़े आठ घंटे थाने में बिठाया गया । क्यों ? यह अहसास दिलाने के लिए कि बहुत बड़ी गलती की है खेलमंत्री की शिकायत करके और सच ही किसी ने पहले ही सलाह दी थी कि मंत्री है , पंगा मत लो ।

क्या यह बात सच साबित हो रही है ? एक अकेली लड़की व्यवस्था और पुरुष समाज के चक्रव्यूह में किसी हिरणी की तरह फंसी महसूस कर रही है । मंत्री के बयान तो कोठी पर जाकर लिये गये और महिला कोच को थाने में बुलाया गया । है न भेदभाव की इंतहा ! क्या ऐसे न्याय दिया जायेगा या न्याय की उम्मीद की जा सकती है ? एकतरफा ही सब कुछ हो रहा दिख रहा है । महिला कोच को प्रलोभन भी दिये जाने की बातें आ रही हैं ।

इसके बावजूद यह मामला प्रदेश में लगातार सुलगता जा रहा है और यह बात भी सामने आ रही है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण में कल छह जनवरी को पानीपत में कहीं राहुल गांधी भी इस मुद्दे को न उठा लें क्योंकि यह वही पानीपत है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े गर्व से बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ का नारा दिया था । यह वही पानीपत है जहां इस सामाजिक बुराई के खिलाफ चौथी लड़ाई तक कहा गया । यह वही पानीपत है जिसका जिक्र मन की बात में भी बड़े गर्व व गौरव से किया गया । आज कौन किसको बचा रहा है , यह सब लोग समझ रहे हैं ।

महिला कोच के वकिव कह रहे हैं कि यदि तीन दिन में मंत्री को गिरफ्तार नहीं किया गया तो कोर्ट का दरवाजा खटखटायेंगे ! अभी किस बात का इंतजार है ? खाप समर्थन में आ चुकी हैं और सरकार को चेतावनी दे रही हैं । आप पार्टी थाली बजा चुकी । महिला कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष सुधा भारद्वाज महिला आयोग को जगाने गयीं पर बेकार रही कोशिश । अभी महिला आयोग की नींद टूटी नहीं । फिर इसकी जरूरत क्या है ? सिर्फ कुर्सी देने के लिए ?

यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि अग्निपरीक्षा नारी को ही देनी पड़ती है और चीरहरण भी भरे दरबार में उसी का होता है । कौन आयेगा न्याय  दिलाने या सम्मान की रक्षा करने ? बहुत बड़ा सवाल है । एक अकेली लड़की कब तक न्याय की जंग लड़ेगी ? सोचने की बात है । अभी तक खिलाड़ी खासतौर पर महिला खिलाड़ी खामोशी से इस तरह की जिल्लत झेलती आ रही होंगीं और यह पहली बार किसी ने आवाज उठाई तो सुनिये तो सही , न्याय तो दीजिए , परेशान तो न कीजिए ! एक खिलाड़ी रह चुके मंत्री को तो खिलाड़ियों की मुश्किलें हल करनी थीं न कि बढ़ानी थीं ?
-कमलेश भारतीय 

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