अखिलेश यादव ने कहा- बीजेपी को नहीं मिलने वाली मदद, जानिए क्यो कहा ऐसा

केशवप्रसाद मौर्य के एक ट्वीट ने सियासत में मचाई हलचल

लखनऊ: यूपी में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दलों ने कमर कस लिया है। इसी क्रम में बुधवार को प्रदेश के उप मुख्यमंत्रीc के एक ट्वीट ने सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है। मौर्य ने लिखा है- अयोध्या, काशी में भव्य मंदिर निर्माण जारी है। मथुरा की तैयारी है। जयश्रीराम, जय शिवशंभू, जय राधेकृष्ण। वहीं इसके बाद से ही विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया आनी शुरु हो गई है।  अब ट्वीट को सभी दल हमलावर हो रहे हैं। सपा अध्‍यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि बीजेपी को किसी भी नारे या मंत्र से मदद नहीं मिलेगी। वहीं हिन्दुत्व के मुद्दे को हवा देने के आरोप के साथ सवाल भी पूछा है कि चुनाव से पहले ही भाजपा को भगवान क्यों याद आते हैं?

ट्वीट में बड़ा संदेश देने की कोशिश

केशव मौर्य के इस ट्वीट ने सियासत में हलचल मचा दिया है। उनके इस दो लाइन के ट्वीट ने बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। भाजपा का संगठन या सत्ता से जुड़ा कोई और नेता इस मुद्दे पर सामने नहीं आया है। हालांकि यूपी सरकार में ही कैबिनेट मंत्री स्वामीप्रसाद मौर्य ने अलग सुर अलापा है। उन्होंने कहा- अयोध्या, काशी व मथुरा न कभी चुनाव का मुद्दा था, न आज है और न ही भविष्य में रहेगा। प्रधानमंत्री हमेशा विकास के मुद्दे की बात करते हैं। कौशांबी में बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने मौर्य को आड़े हाथ लेते हुए कहा- जनता उनका असली चेहरा पहचान चुकी है। मौर्य अगर यह सोचते हैं कि वह ध्रुवीकरण कर लेंगे, तो यह सबसे बड़ी भूल है। सपा प्रवक्ता आशुतोष वर्मा ने कहा कि चुनाव में हिन्दुत्व की लाचारी है। कुछ दिन में आचार संहिता लगने वाली है, इससे पहले ही इस तरह का दांव खेला जा रहा है।

योगी की सरकार का मथुरा पर विशेष फोकस

आपको बता दे सीएम योगी की सरकार का मथुरा पर विशेष फोकस रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यात बरसाने की लठामार होली को राजकीय मेले का दर्जा ही नहीं किया बल्कि जन्माष्टमी के आयोजनों में भी भव्य स्वरूप प्रदान किया। हिन्दु महासभा, श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्तिदल, नारायणी सेना समेत कुछ अन्य संगठनों ने छह दिसंबर को श्रीकृष्ण जन्मस्थली के विवादित स्थल तक संकल्प यात्रा निकालने और जलाभिषेक का भी सोशल मीडिया पर आह्वान किया था।श्रीकृष्ण जन्मभूमि की मुक्ति के लिए वर्ष 1996 में विश्व हिंदु परिषद ने मथुरा में विष्णु महायज्ञ का आयोजन कर आंदोलन की घोषणा की थी। तत्कालीन केंद्र सरकार ने जन्मभूमि की सुरक्षा के लिए जमीन से आसमान तक कड़ी सुरक्षा की थी। कोई आंदोलनकारी नहीं पहुंच सका। इसके बाद सुरक्षा घेरा बढ़ा दिया गया।

जन्मभूमि प्रकरण में एक साल में दायर हुए 10 वाद

श्रीकृष्ण जन्मस्थान और ईदगाह प्रकरण को लेकर अदालत में अब तक कुल 10 वाद दायर हो चुके हैं। इनमें 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और ईदगाह ट्रस्ट के मध्य हुए समझौते (डिक्री) को रद करने और 13.37 एकड़ जमीन से ईदगाह का अवैध कब्जा हटाना, जिओ रेडियोलॉजी सिस्टम और जीपीआर सिस्टम से खुदाई कराने की मांग शामिल है। इन्हें लेकर सबसे पहला वाद 25 सितंबर 2020 को मथुरा कोर्ट में दायर किया गया, जिस पर सुनवाई जारी है।

अब कोर्ट के फैसले का इंतजार

डिप्टी सीएम के ट्वीट के बाद सियासत भले ही बुधवार को गरमाई हो लेकिन सबकी निगाहें मथुरा जिला कोर्ट में चल रहे दस विभिन्न वादों और उनके आने वाले फैसलों पर ही टिकी हैं। श्रीकृष्ण विराजमान मामले और 13.37 एकड़ जमीन से कब्जा हटाए जाने को लेकर सबसे पहला वाद 25 सितंबर 2020 को रंजना अग्निहोत्री, प्रवेश कुमार, राजेश मणि त्रिपाठी, करुणेश कुमार शुक्ला ने यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, कमेटी ऑफ मेनेजमेंट ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट व श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को पक्षकार बनाते हुए सिविल जज सीनियर डिविजन की कोर्ट में दायर किया था। इसे लिंक कोर्ट एडीजे एफटीसी प्रथम की अदालत ने सुना और 30 सितंबर 2020 को इसे खारिज कर दिया था। उक्त आदेश के खिलाफ रंजना अग्निहोत्री आदि ने 12 अक्तूबर 2020 को जिलाजज की अदालत में चुनौती दी थी, जिसे अब प्रकीर्ण वाद में तब्दील कर उसकी सुनवाई जारी है। अखिल भारत हिन्दू महासभा द्वारा छह दिसंबर को लड्डू गोपाल का जलाभिषेक करने की घोषणा से माहौल गरम होना शुरू हुआ। महासभा की जिलाध्यक्ष छाया गौतम ने भी वीडियो डालकर लोगों से इसकी अनुमति न मिलने पर घरों पर ही जलाभिषेक करने की अपील की थी। श्रीकृष्ण जन्मसाथान के सदस्य और हिन्दूवादी नेता गोपेश्वर चतुर्वेदी का कहना है कि भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर तोड़कर ईदगाह का निर्माण किया गया है। अदालत में हम हर बार जीते हैं।

भगवान श्री कृष्ण का मंदिर तोड़कर यहां से भगवान कृष्ण की मूर्ति ले जाकर आगरा की नगीना मस्जिद में सीढ़ियों पर लगाई गई है। कृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट ने कोई समझौता नहीं किया। यदि यह समझौता लागू होता तो नगर निगम में रेवेन्यू रिकॉर्डों में ईदगाह का नाम आ चुका होता। लेकिन आज तक ईदगाह का नाम रिकॉर्ड में नहीं है। ईदगाह के अलावा उस स्थान पर जो 30 घोसी रह रहे हैं, उनके मालिक के कॉलम में जन्मभूमि ट्रस्ट का नाम है।

15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में तोड़ दिया

श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाथ ने अपने पूर्वज की याद में बनवाया था। इसके बाद महाराजा विक्रमादित्य ने चौथी सदी में यहां भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर बनवाया। 1016 में महमूद गजनवी यहां आया और उसने इस भव्य मंदिर को तोड़ा। 21 दिन तक मंदूर को लूटा गया।गजनवी के मीर मुंशी अल उलवी ने अपनी पुस्तक तारीखे यामनी में इसका उल्लेख किया है। 1250 के आसपास महाराजा विजयपाल सिंह के बनाए मंदिर को सिकंदर लोधी ने 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में तोड़ दिया। ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने 1610 में भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर बनवाना चालू किया।

1618 में औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ा। पटनीमल के प्रपौत्र ने 13.37 एकड़ (ईदगाह सहित) जमीन का बैनामा मदन मोहन मालवीय, प्रो. अत्रे और गणेश दत्त बाजपेयी के नाम 1944 में किया। जुगल किशोर बिड़ला ने 1950 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया। सारे अधिकार ट्रस्ट में निहित हो गए। तब से ट्रस्ट ही मालिक है। 1953 में यहां कारसेवा शुरू हुई। हनुमान प्रसाद पोद्दार ने 1957 में मंदिर का शिलान्यास किया। 1958 में केशवदेव मंदिर तैयार हुआ। इसी मंदिर पर जन्माष्टमी उत्सव हर साल मनाया जाता है।

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