चुनाव जीतने की भाजपा की प्लानिंग, UP से अलग होगी उत्तराखंड-गोवा के लिए रणनीति

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा अपनी सरकारों वाले चार राज्यों में विभिन्न मुद्दों के साथ सत्ता विरोधी माहौल की स्थितियों को खत्म करने के लिए अलग-अलग रणनीति पर काम कर रही है। छोटे राज्यों में इसका असर काफी प्रभाव डालता है। ऐसे में गोवा-उत्तराखंड व मणिपुर में उसकी प्रचार रणनीति अलग होगी। यहां पर प्रचार अभियान में केंद्रीय नेतृत्व को आगे रखा जा सकता है।

भाजपा के पास उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बड़ा व प्रभावी चेहरा है, लेकिन अन्य सत्ता वाले राज्यों में वह सामूहिक नेतृत्व को आगे रखकर चुनावी रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा को उत्तराखंड में अपनी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में तीन मुख्यमंत्री बदलने पड़े हैं। गोवा में भी पार्टी को पूर्व मुख्यमंत्री स्व. मनोहर पर्रीकर जैसे कद वाला नेता नहीं मिल सका है। ऐसे में दोनों राज्यों में पार्टी का प्रचार अभियान राज्यों के नेतृत्व से ज्यादा केंद्रीय नेतृत्व के इर्द-गिर्द रहेगा। पार्टी इन राज्यों के विकास व डबल इंजन की सरकार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को भुना सकती है।

उत्तराखंड को लेकर पार्टी में काफी विचार विमर्श हुए हैं। भाजपा के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी नए हैं। विधायक से बिना मंत्री बने सीधे मुख्यमंत्री बनने वाले धामी की छवि साफ है, लेकिन कांग्रेस नेता हरीश रावत के मुकाबले अनुभव कम है। ऐसे में पार्टी की रणनीति चुनाव प्रचार में सामूहिक नेतृत्व, कमल निशान, केंद्र सरकार के काम, डबल इंजन की सरकार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर रहेगी।

गोवा में ढुलमुल राजनीति में माहौल साफ नहीं रहता है। 40 सीटों वाली विधानसभा में छोटे दलों को मिलने वाली दो-चार सीटें भी सत्ता समीकरणों को प्रभावित करती हैं। वहां पर मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत पार्टी के युवा नेता हैं। सूत्रों के अनुसार, वहां के लोग पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर से हर मुख्यमंत्री की तुलना करते हैं। ऐसे में सावंत के नए होने से थोड़ी दिक्कत हो सकती है। उत्तराखंड की तरह यहां पर भी पार्टी प्रचार अभियान में मुख्यमंत्री के चेहरे पर सीधे दांव लगाने के बजाय सामूहिक नेतृत्व को आगे रखेगी।

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