अदिति सिंह के बीजेपी में आने से क्या बदलेगी रायबरेली की तस्वीर, जानें

लखनऊ. रायबरेली सदर से कांग्रेस की विधायक अदिति सिंह  बीजेपी में शामिल हो गई है. लंबे समय से वे कांग्रेस से दूर और बीजेपी के पास थीं. उनकी शामिल होने के बाद से ही ये चर्चा चर्चा हो रही है कि अदिति ने पार्टी तो बदल ली लेकिन, क्या अब वे अपनी सीट भी बदलेंगी. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस रायबरेली सीट से वे विधायक हैं उस सीट पर बीजेपी ने कभी जीत हासिल नहीं की. और तो और एक दो चुनावों को छोड़कर बीजेपी इस सीट पर हमेशा चौथी या पाचवीं पोजिशन पर रही. यानी पार्टी रायबरेली में बहुत कमजोर है. ऐसे में 2022 के चुनाव में अदिति सिंह या तो एक नया इतिहास रचेंगी या फिर अगले पांच साल के लिए इतिहास बनकर रह जायेंगी.

अब तक बीजेपी का प्रदर्शन

इसके पीछे एक गहरी और सोची समझी राजनीतिक चाल थी. रायबरेली की सीट कभी भी बीजेपी ने नहीं जीती. पार्टी की हालत इस सीट पर इतनी खस्ता रही है कि वो ज्यादातर चुनावों में पांचवें और छठे स्थान पर रही. 2017 की प्रचण्ड लहर में भी इस सीट पर बीजेपी खुद अदिति के सामने तीसरे स्थान पर थी. पार्टी को इस सीट पर 28572 वोट मिले थे. 2012 में 3909, 2007 में 3159, 1996 में 25105 और 1993 में 31226 वोट बीजेपी को यहां से मिले. अब साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोटरों वाली सीट पर इतने वोट से फतह नहीं मिल सकती. यही कारण था कि अदिति सिंह के पिता अखिलेश सिंह ने कभी भी बीजेपी की तरफ नहीं देखा और न ही अपनी बेटी को देखने दिया. उनके गुजरने के बाद तेजी से सियासी समीकरण बदलते चले गये. कहते हैं कि अदिति सिंह की प्रियंका गांधी से बनी नहीं. वो कांग्रेस से दूर और बीजेपी के करीब होती गयीं.

रायबरेली सीट का जातीय समीकरण 

रायबरेली सीट का जातीय समीकरण इसे बीजेपी विरोधी किले में बदल देता है. रायबरेली सीट पर यादव, ब्राह्मण और मुस्लिम वोटरों का दबदबा है. 50 हजार तक यादव और ब्राह्मण वोटर हैं. मुस्लिम वोटरों की संख्या 40 हजार के करीब बताई जाती है. 18-20 हजार ठाकुर वोटर हैं. कायस्थ और मौर्या जाति के वोटर भी अच्छी संख्या में हैं. अखिलेश सिंह का ऐसा आभामण्डल था कि सभी जातियों के वोट लेकर वे जीतते रहे. अपने दबदबे और पब्लिक कनेक्ट के कारण भले ही वे किसी पार्टी सिम्बल के मोंहताज नहीं थे लेकिन बीजेपी के करीब कभी नहीं दिखे. लाख कोशिशों के बावजूद बीजेपी अभी तक यहां के वोटरों को लुभा नहीं पायी है. इसीलिए उसे लगातार मुंह की खानी पड़ी है.

रायबरेली से ही चुनाव लड़ेंगी अदिति

अब सवाल उठता है कि ये जानते हुए भी अदिति सिंह ने बीजेपी क्यों ज्वाइन कर लिया. अब जातीय समीकरण तो उनके पक्ष में दिखाई नहीं दे रहे तो क्या वे जीत को पक्का करने के लिए अपनी सीट बदलेंगी? इसका भी अदिति ने खण्डन कर दिया है.

जातीय समीकरणों की सियासत

रायबरेली की सीट अदिति सिंह के परिवार के पास 1989 से रही है. इनके ताऊ अशोक कुमार सिंह 1989 और 1991 में जनता दल से विधायक थे. फिर इनके पिता अखिलेश कुमार सिंह साल 1993 से 2012 तक लगातार पांच बार विधायक रहे. 1993 से 2002 तक वे कांग्रेस से जीतते रहे लेकिन, 2007 में निर्दलीय और 2012 में पीस पार्टी से वे जीते. कांग्रेस ने उनकी दबंग छवि के कारण उन्हें निकाल दिया था. कमजोर सेहत के चलते उन्होंने अदिति को 2017 में मैदान में उतारा. ये उनकी राजनीतिक समझ ही थी कि कांग्रेस से खटपट के बावजूद उन्होंने अदिति को कांग्रेस से ही लड़ाया. पार्टी की पतली हालत होने के बावजूद उन्होंने दामन नहीं छोड़ा. वे जातीय समीकरणों की सियासत को बखूबी समझते थे. वे बीजेपी की तरफ देखे भी नहीं.

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