जादू-टोना, शिवसेना और सरकार का क्या है कनेक्शन ?

शिंदे-फडणवीस की जादू-टोना वाली सरकार, शिवसेना का हमला

मुंबई। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में महाराष्ट्र की शिंदे फडणवीस सरकार पर तीखा हमला बोला है। राज्य में विपक्षी नेताओं की हुई दुर्घटनाओं का हवाला देते हुए शिंद-फडणवीस सरकार को जादू-टोना वाली सरकार करार दिया गया है।

सामना ने अपने संपादकीय में लिखा है कि महाराष्ट्र नै अंधश्रद्धा के खिलाफ हमेशा लड़ाई लड़ी है। जादू -टोना इत्यादि पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने कानून बनाया है। लेकिन महाराष्ट्र में मिंधे- फडणवीस की खोके सरकार आने के बाद से जादू टोना, काला जादू, पिन, सुई, लिंबू मिरची आदि अंधश्रद्धा को बढ़ावा मिलता दिखाई दे रहा है। मुख्यमंत्री शिंदे और उनके गुट के चालीस विधायक गुवाहाटी के कामाख्या देवी मंदिर गए। वहां उन्होंने जादू टोना की विधि की। कहा जाता है कि भैंसे की बलि दी गई। यह बली कहते हैं मुख्यमंत्री पद की स्थिरता के लिए दी गई। ये लोग फिर उसी मंदिर में मन्नत पूरी करने गए। महाराष्ट्र प्रगतिशील विचारधारा वाला राज्य है। इस राज्य में जादू टोना, सरकारी बंगले पर मिर्ची यज्ञ जैसी अघोरी प्रथा के लिए स्थान नहीं है। लेकिन जब से शिंदे की जादू-टोना सरकार सत्ता में आई है, राजनीतिक विरोधियों की दुर्घटना व घातआघात की संख्या अचानक बढ़ने लगी है। राकांपा सांसद सुप्रिया सुले की साड़ी में लगी आग, नेता प्रतिपक्ष अजीत पवार की लिफ्ट दुर्घटना, कांग्रेस नेता बालासाहेब थोरात की दुर्घटना, राकांपा नेता धनंजय मुंडे का एक्सीडेंट, विनायक मेटे की दुर्घटना में मृत्यु, पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सर्जरी आदि का हवाला दिया गया है। सामना ने लिखा है कि इस अघोरी प्रयोग की मार महाराष्ट्र के जनमानस पर पड़ रही है। हालांकि यह एक तरह से अंधविश्वास है, लेकिन ये अंधविश्वास लोगों के मन में जड़ पकड़ रहा है, ये अच्छी बात नहीं है। महाविकास आघाड़ी के सभी प्रमुख लोगों पर दुर्घटना, घातआघात और जांच का संकट एक के बाद एक गिर रहा है। इसके पीछे मुख्यमंत्री का ”जादू टोना” प्रेम है, ऐसा लोगों को लग रहा है तो संत गाडगे महाराज, प्रबोधनकार ठाकरे जैसे अंधश्रद्धा के विरुद्ध लड़नेवाले समाज सुधारकों की यह पराजय मानी जाएगी। नरेंद्र दाभोलकर जीवनभर अंधश्रद्धा के खिलाफ लड़े और आखिर में उनकी निर्मम तरीके से बलि ले ली गई। आज महाराष्ट्र में कहीं कुछ घटित होता है, तो लोग सोचते हैं, ”अरे बाप रे, यह तो एक प्रकार का जादू-टोना है!” क्या इसे लोगों का आत्मविश्वास डगमगाने का संकेत माना जाए? राज्य के मुख्यमंत्री कहीं दौरे पर जाते हैं, तो किसी एक ज्योतिषी या तंत्र विद्या के जानकार से विशेष मुलाकात करते हैं, यह छिपा नहीं है। यह महाराष्ट्र की प्रगति नहीं बल्कि अधोगति है।

सामना ने लिखा है कि कामाख्या देवी को भैंसे की बलि चढ़ाकर सरकार लाई गई, यह धारणा चालीस बागी विधायकों की है। भैंसे की बलि नहीं दी गई, यह मुख्यमंत्री और उनके लोग कामाख्या देवी की शपथ लेकर बताएं। महाराष्ट्र में विपक्षी दलों के नेता दुर्घटनाओं और घातआघात के शिकार हो रहे हैं। क्या उसका संबंध भैंसे की बलि से है, यह भी लोगों के सामने आने दो। बीते दिनों मुख्यमंत्री महोदय नागपुर के रेशीम बाग स्थित संघ मुख्यालय में गए। उस समय लोगों ने उनकी हंसी उड़ाई थी। ”सरसंघचालक सावधानी बरतें। मुख्यमंत्री आकर गए हैं। संघ मुख्यालय के कोनों में कहीं सुई, नींबू आदि तो नहीं गिरा है, इसकी जांच कर लें!” महाराष्ट्र में राजनीतिक विरोधियों की जिस तरह से दुर्घटनाएं हो रही हैं, इसने अघोरी मुद्दों की चर्चाओं को हवा दे दी है। विपक्ष के लोगों की जान की रक्षा के लिए कम से कम उपमुख्यमंत्री पांडुरंग से कामना करें।

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