क्या है नासा का लूसी मिशन जिससे वैज्ञानिक सौरमंडल के रहस्य सुलझाने की तैयारी में ह

जनिए कैसे काम करेगा मिशन

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने शनिवार को लूसी मिशन लॉन्च किया। इस मिशन के जरिए नासा के वैज्ञानिक बृहस्पति ग्रह में ट्रोजन एस्टेरॉड्स की पड़ताल करेंगे। इसकी पड़ताल के लिए नासा का विशेष रॉकेट बृहस्पति गृह के लिए रवाना हो चुका है।

वैज्ञानिकों का कहना है, इस मिशन के जरिए सौरमंडल के बारे में ऐसी कई नई बातें पता चल सकेंगी जो अब तक सामने नहीं आ पाई हैं।

लूसी मिशन की शुरुआत कैसे हुई, इसका यह नाम कैसे पड़ा और क्या काम करेगा, जानिए इन सवालों के जवाब…

लूसी मिशन की शुरुआत कैसे हुई?

लूसी मिशन के लिए शनिवार शाम 3.04 बजे फ्लोरिडा के केप-कैनावेरल स्पेस फोर्स स्टेशन से एटलस-वी रॉकेट ने उड़ान भरी। यह मिशन 12 साल तक चलेगा। इसके लिए 7,360 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। यह रॉकेट सात ट्रोजन एस्टेरॉयड्स के पास पहुंचकर उनकी स्टडी करेगा। यह अंतरिक्षयान ट्रोजन के समूह के पास साल 2027-28 तक पहुंचेगा।

क्या और कैसे काम करेगा यह मिशन?
नासा वैज्ञानिकों का कहना है, मिशन के जरिए सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति की कक्षा में झुंड के रूप में मौजूद एस्टेरॉयड्स का अध्ययन किया जाएगा। इन एस्टेरॉयड्स के ही ट्रोजन कहते हैं।

अब ये समझिए कि एस्टेरॉयड्स आखिर होते क्या हैं? एस्टेरॉयड्स को आमभाषा में उल्कापिंड या झुद्रग्रह भी कहते हैं। यह पत्थर या धातु के टुकड़े के रूप में मिलते हैं। जब कोई ग्रह या तारे का कोई हिस्सा टूट जाता तो वो उल्कापिंड कहलाता है। आसान भाषा में समझें तो ग्रह का एक टुकड़ा। यह कई आकार में मौजूद होते हैं। ये छोटे पत्थर से लेकर मीलों लम्बी चट्टान के रूप में भी हो सकते हैं।

नासा के मिशन का इन उल्का पिंडों से क्या कनेक्शन है, अब इसे जानिए। दरअसल नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि बृहस्पति ग्रह के निर्माण के दौरान ये ट्रोजन एस्टेरॉयड्स अलग हो गए थे। इनके जांच करके सौरमंडल की उत्पत्ति के बारे में अहम जानकारियों और रहस्यों पता लगाया जा सकता है।

नासा का यह भी कहना है कि इस मिशन से जानकारी मिलेगी की सौरमंडल में ग्रहों की वर्तमान स्थिति के पीछे क्या वजह है। रिसर्च के दौरान इन्हीं एस्टेरॉयड्स की जांच करने पर नई जानकारियां सामने आ सकती हैं।

यह तस्वीर 16 अक्टूबर, 2021 की है, जब फ्लोरिडा के केप-कैनावेरल स्पेस फोर्स स्टेशन से एटलस-वी रॉकेट ने उड़ान भरी थी।

इस मिशन का नाम लूसी क्यों रखा गया?
लूसी नाम कनेक्शन एक इंसानी कंकाल से है जो 1974 में इथियोपिया में हदान नाम की जगह पर मिला था। काफी समय तक रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों ने उसे दुनिया का सबसे पुराना मानव कंकाल बताते हुए लूसी नाम दिया था। नासा के वैज्ञानिकों ने उसी मानव कंकाल के नाम पर अपने मिशन का नाम ‘लूसी’ रखा।

लूसी मिशन के प्रमुख शोधकर्ता हैल लेविसन का कहना है, ट्रोजन एस्टेरॉयड अपनी कक्षा में 60 डिग्री तक या तो बृहस्पति के साथ चलते हैं या फिर उसके आगे चलते हैं। ये एस्टेरॉयड्स गुरुत्वाकर्षण के कारण सूर्य और बृहस्पति के बीच चक्कर काटते रहते हैं। हमारा लक्ष्य उसके आकार, संरचना, सतह की खासियत और तापमान की जांच करना है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर यह ट्रोजन उन्हीं चीजों से बना है जिससे बृहस्पति और चंद्रमा बने हैं तो इससे कई बातें पता चल सकेंगी।

खबरें और भी हैं…

Related Articles

Back to top button