क्या है hiv वैक्सीन?

जिस एड्स का अब तक इलाज नहीं उसके HIV वायरस को रोकने वाली वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल जल्द, जानिए इसके आने से क्या बदलेगा

अमेरिकी बायोटेक्नोलॉजी कंपनी मॉडर्ना को HIV की वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल की मंजूरी मिल गई है। कंपनी जल्द ही ट्रायल शुरू कर सकती है। 40 साल पुरानी ये बीमारी आज भी लाइलाज है। अब तक इस बीमारी के लिए 30 से ज्यादा वैक्सीन बनाने की कोशिश हो चुकी है, लेकिन एक भी सफल नहीं रही है। मॉडर्ना की वैक्सीन में इस्तेमाल हो रही तकनीक के चलते इसके सफल होने की काफी उम्मीद जताई जा रही है।

आखिर ये वैक्सीन क्या है, इसमें किस तकनीक का इस्तेमाल होता है? इसका ह्यूमन ट्रायल कैसे होगा? ये वैक्सीन काम कैसे करेगी? अगर वैक्सीन बाजार में आती है तो चुनौतियां क्या होंगी? एड्स का इतिहास क्या कहता है? आइए जानते हैं…

ये वैक्सीन है क्या और इसमें किस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है?
HIV की इस वैक्सीन को बनाने के लिए m-RNA तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। मॉडर्ना ने कोरोना की वैक्सीन बनाने के लिए भी इसी प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया है। सितंबर के शुरुआत में इसका ह्यूमन ट्रायल शुरू हो सकता है।

अब तक HIV की वैक्सीन बनाने की कई कोशिशें हो चुकी हैं या हो रही हैं। इनमें से कई क्लिनिकल ट्रायल के अलग-अलग स्टेज में हैं, लेकिन अब तक कोई भी वैक्सीन इफेक्टिव नहीं रही है।

ह्यूमन ट्रायल कैसे होगा?
मॉडर्ना की वैक्सीन mRNA-1644 का 56 लोगों पर ट्रायल होगा। ये लोग पूरी तरह से स्वस्थ होंगे, इन्हें HIV नहीं होगा। ट्रायल के जरिए वैक्सीन की सेफ्टी और इम्यून रिस्पॉन्स में होने वाले बदलावों की जांच की जाएगी। इस वैक्सीन के डेवलपमेंट के लिए फंडिंग बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन कर रहा है।

वैक्सीन काम कैसे करेगी?
औपचारिक रूप से इसे mRNA-1644 कहा जाता है। इसे हमारे इम्यून सिस्टम की B सेल्स को उत्तेजित करने के लिए बनाया जाता है। ये एक तरह की व्हाइट ब्लड सेल्स होती हैं। जो एंटीबॉडी बनाती हैं। ये एंटीबॉडी हमलावर बैक्टीरिया और वायरस को रोकती हैं। ये B सेल्स ही न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी बनाती हैं। जो एक तरह की स्पेशलाइज्ड ब्लड प्रोटीन होते हैं, जो HIV के सर्फेस प्रोटीन्स को निष्क्रिय करती हैं। इससे वायरस का असर घटने लगता है।

किसलिए अहम है ये वैक्सीन?
एड्स की बीमारी पिछले 40 साल से हमारे समाज में है। अब तक इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाले ART ट्रीटमेंट में काफी प्रगति हुई है। इसकी वजह से एड्स से पीड़ित लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं, लेकिन ये जिंदगी भर चलने वाला ट्रीटमेंट है। WHO के मुताबिक 2020 में दुनियाभर में 3.77 करोड़ लोग HIV से संक्रमित थे।

आम वैक्सीन की तरह HIV की वैक्सीन नहीं बनाई जा सकती है। RNA बेस्ड इम्यूनाइजेशन को एक बेहतर वैक्सीन विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि इस तकनीक में लाइव वायरस का इस्तेमाल नहीं होता है। बाकी वैक्सीन की तुलना में इसे आसानी से बनाया जा सकता है। इसे तेजी से डेवलप भी किया जा सकता है। फाइजर और मॉडर्ना ने कोरोना की वैक्सीन बनाने में इस तकनीक का इस्तेमाल किया है। कोरोना वैक्सीन की सफलता के बाद HIV वैक्सीन के सफल होने की उम्मीद बढ़ गई है।

कितना अहम है ये ट्रायल?
1987 से अब तक 30 से ज्यादा HIV वैक्सीन के ट्रायल हो चुके हैं। करीब 60 फेज-1 और 2 ट्रायल्स हुए हैं। इस दौरान 10 हजार से ज्यादा वॉलंटियर्स इन ट्रायल्स का हिस्सा रहे। इनमें से ज्यादातर ट्रायल अमेरिका और यूरोप में किए गए। कई ट्रायल ब्राजील, चीन, क्यूबा, हैती, केन्या, पेरू, थाईलैंड, त्रिनिदाद और यूगांडा जैसे देशों में भी हुए हैं।

इससे पहले अब तक केवल दो वैक्सीन फेज-3 के ट्रायल तक पंहुची हैं। पहली का ट्रायल 1998 में अमेरिका में शुरू हुआ था। इसके लिए 5 हजार 400 वॉलंटियर्स का एनरोलमेंट हुआ था। इनमें से ज्यादातर समलैंगिक थे। दूसरी वैक्सीन का फेज-3 ट्रायल 1999 में थाईलैंड में शुरू हुआ था। दोनों ट्रायल के नतीजे 2003 में आए, लेकिन दोनों के नतीजे उत्साहजनक नहीं रहे। अब तक HIV की एक भी वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी है।

ऐसी HIV वैक्सीन जो सेफ और इफेक्टिव होने के साथ आसानी से लोगों की पहुंच में हो, तो इस वायरस का प्रसार रोकने में बड़ी कामयाबी मिल सकती है। अगर ये ट्रायल सफल रहते हैं तो HIV को रोकने में बड़ी मदद मिलेगी। अभी एंटीरेंट्रोवायरल थेरेपी (ART) का इस्तेमाल HIV संक्रमितों के इलाज में होता है। वैक्सीन आने से इसके इलाज में होने वाला खर्च भी कम होगा। वैक्सीन के साथ ART का इस्तेमाल होने से लॉन्ग टर्म इफेक्टिवनेस भी बढ़ेगी।

ART होता क्या है?
HIV के इलाज के दौरान दवा के जरिए शरीर में मौजूद HIV वायरस के अमाउंट को कम किया जाता है। इसके लिए जिन दवाओं का इस्तेमाल होता है उन्हें ART कहते हैं। अब तक HIV का कोई प्रभावी इलाज नहीं है, लेकिन सही तरीके की मेडिकल केयर से HIV को कंट्रोल किया जा सकता है। ज्यादातर मरीजों में छह महीने के इलाज के बाद HIV वायरस कंट्रोल में आ जाते हैं। इसके बाद ये मरीज दवा के सहारे लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं। हालांकि HIV की ये दवाएं संक्रमित से HIV का प्रसार नहीं रोकती हैं।

चुनौतियां क्या हैं?
दुनिया के कुल HIV संक्रमितों में दो तिहाई अफ्रीका में रहते हैं। HIV महामारी की रोकथाम में किसी भी तरह की सफलता तभी होगी जब इस इलाके में संक्रमितों की संख्या कम हो। हालांकि, फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन के लिए इन इलाकों में वैक्सीन लगाना बहुत बड़ी चुनौती होगी।

इस तरह की वैक्सीन का स्टोरेज भी बड़ी चुनौती होती है। mRNA बेस्ड वैक्सीन को एक निश्चित तापमान पर रखना होता है। इसकी वजह से विकासशील देशों में इन वैक्सीन का रखरखाव भी बड़ी चुनौती हो सकता है।

HIV वायरस पिछले कई सालों से दुनिया में है। अब तक ये म्यूटेड होकर कई वैरिएंट बना चुका है। ऐसे में mRNA बेस्ड वैक्सीन के जरिए इसे निष्क्रिय करने में कई साल लग सकते हैं।

कितना पुराना है HIV और एड्स का इतिहास
5 जून 1981 को सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने एक आर्टिकल छापा था। आर्टिकल मोर्बिडिटी एंड मोर्टालिटी वीकली में छपा था। इसमें नए तरह के न्यूमोसिस्टिस निमोनिया होने के बारे में बताया गया। ये 5 समलैंगिक लोगों के अंदर मिला था। इन मरीजों की इम्यूनिटी अचानक कम हो गई थी। कुछ महीने बाद पांचों की मौत हो गई। इसी बीमारी को आगे चलकर वैज्ञानिकों ने AIDS नाम दिया। ये बीमारी HIV वायरस की वजह से होती है।

शुरुआत में ये बीमारी केवल समलैंगिक लोगों में ही होती थी, इस वजह से इसे गे-रिलेटेड इम्यून डेफिशिएंसी, गे कैंसर या गे मेंस निमोनिया नाम दिया गया। अगस्त 1981 तक पूरे अमेरिका में इस बीमारी के 108 मामले सामने आए, इनमें से केवल एक महिला थी। इन 108 मरीजों में 94% समलैंगिक थे और कुछ ही महीनों में इनमें से 40% मरीजों की मौत हो गई।

10 दिसंबर 1981 को बॉबी कैंपबेल ने सार्वजनिक तौर पर खुद को इस बीमारी से संक्रमित होने की पुष्टि की। ऐसा करने वाले वे पहले शख्स थे। इसी के साथ वे इस बीमारी से लड़ने के लिए पोस्टर बॉय बन गए।

भारत में कैसे हैं एड्स के हालात?
भारत में HIV संक्रमितों का 2019 तक का डेटा मौजूद है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक 2019 में देश में कुल 23.49 लाख HIV संक्रमित थे। पिछले 19 साल से संक्रमितों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। 2010 के मुकाबले 2019 में संक्रमितों की संख्या 37% कम हो गई थी। देश में HIV होने की बड़ी वजह हाई रिस्क बिहेवियर होता है। इसमें असुरक्षित होमोसेक्शुअल और हेट्रोसेक्शुअल व्यवहार, सीरिंज से ड्रग्स लेना आदि शामिल है।

1986 में देश में पहली बार एड्स का मरीज मिला था। इस बीमारी को देश में आए 35 साल हो चुके हैं, लेकिन इसके बाद भी देश में एक भी अस्पताल ऐसा नहीं है जो सिर्फ एड्स के इलाज के लिए हो। हालांकि, सरकार के नेशनल एड्स कंट्रोल प्रोग्राम (NACP) के तहत जुलाई 2020 तक देश में 570 एंटी-रेट्रोवायरल ट्रीटमेंट (ART) सेंटर और 1264 लिंक ART सेंटर चल रहे थे।

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