हिन्दू से ईसाई बने तो राजद्रोह का केस चला और गोली मारकर हत्या हुई;

277 साल बाद मिलेगी संत की उपाधि

एक आम भारतीय को वेटिकन संत की उपाधि देने जा रहा है। 15 मई 2022 को ये उपाधि दी जाएगी। 18वीं सदी में तमिलनाडु में जन्मे इस आम हिंदू ने ईसाई धर्म अपनाया था। कन्याकुमारी जिले के देवसहायम पिल्लई ने 1745 में धर्म बदलकर अपना नाम लाजरेस कर लिया था। देवसहायम को फरवरी 2020 में संत की उपाधि दिए जाने की घोषणा हुई थी।

कौन थे देवसहायम पिल्लई? उन्हें संत की उपाधि क्यों दी जा रही है? उनके नाम की घोषणा से क्या कोई विवाद भी है? आइए जानते हैं…

कौन थे देवसहायम पिल्लई?
देवसहायम पिल्लई का जन्म 23 अप्रैल 1712 में कन्याकुमारी के नट्टालम जिले में हिन्दू नायर परिवार में हुआ था। उन्होंने त्रावणकोर के महाराजा मरेंद्र वर्मा की कोर्ट में नौकरी की। यहीं उनकी मुलाकात एक डच नौसैनिक कमांडर से हुई, जिन्होंने उन्हें कैथोलिक धर्म के बारे में सिखाया।

1745 में धर्म परिवर्तन के बाद उन्होंने अपना नाम लाजरेस कर लिया। जिसका मतलब होता है ईश्वर ही मेरी मदद है। धर्म परिवर्तन करते ही उन्हें त्रावणकोर राज्य के प्रकोप का सामना करना पड़ा। राज्य उनके धर्म परिवर्तन के खिलाफ था।

फरवरी 2020 में जब देवसहायम को संत की उपाधि देने का ऐलान हुआ उस वक्त वेटिकन ने एक नोट जारी किया था। इसमें कहा गया, “उनका धर्म परिवर्तन उनके राज्य के प्रमुखों को अच्छा नहीं लगा। जो खुद हिन्दू थे। धर्म बदलने की वजह से उनके ऊपर जासूसी और राजद्रोह के झूठे आरोप लगाए गए। उन्हें राज्य सरकार की नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा। उन्हें जेल में डाल दिया गया और कठोर यातनाएं दी गईं।’’

वेटिकन के नोट में कहा गया, “धर्म परिवर्तन के बाद उन्होंने ईसाई धर्म का प्रचार शुरू किया। इस दौरान वो समाज में फैले जातिगत मतभेद के बाद भी लोगों में समानता की बात करते थे। उनकी बातों से ऊंची जातियों के लोगों में उनके खिलाफ गुस्सा और घृणा भर गई। धर्म परिवर्तन के चार साल बाद 1749 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 14 जनवरी 1752 को देवसहायम की अरालवीमोझी के जंगल में गोली मारकर हत्या कर दी गई। तब से दक्षिण भारत के ईसाई समुदाय में उन्हें शहीद के तौर पर याद किया जाता है। उनका पार्थिव शरीर अब कोट्टार के सेंट फ्रांसिस जेवियर कैथेड्रल में रखा हुआ है।

देवसहायम को क्यों दी जा रही संत की उपाधि?
2004 में कन्याकुमारी के कोट्टार के साथ ही तमिलनाडु बिशप काउंसिल और कॉन्फ्रेंस ऑफ कैथोलिक बिशप ऑफ इंडिया ने देवसहायम के बिएटिफिकेशन की सिफारिश की। 2012 में उनकी 300 जयंती पर देवसहायम का बेटिफिकेशन हुआ। बेटिफिकेशन के वक्त पोप बेनेटिक्ट XVI ने देवसहायम को फेथफुल लेमैन के रूप में याद किया था। वेटिकन ने अपने नोट में उस वक्त दुनियाभर के ईसाई समुदाय से अपील की थी कि वो भारत में चर्च की खुशी में शामिल हों। फरवरी 2020 में वेटिकन ने देवसहायम को संत की उपाधि दिए जाने की मंजूरी दी।

जब संत बनाए जाने का ऐलान 2020 में हो चुका है तो अभी क्या नया हुआ है?
फरवरी 2020 में केवल देवसहायम को संत की उपाधि दिए जाने की मंजूरी दी गई थी। उपाधि कब दी जाएगी इसका ऐलान अभी हुआ है। बीते बुधवार को चर्च ने इसकी घोषणा की। 15 मई 2022 को पोप फ्रांसिस देवसहायम समेत 6 लोगों को संत की उपाधि से नवाजेंगे। सभी को वेटिकन में सेंट पीटर्स बेसिलिका में एक कैननाइजेशन मास के दौरान ये उपाधि मिलेगी। संत की उपाधि पाने वाले देवसहायम पहले आम भारतीय नागरिक होंगे।

उनके नाम को लेकर क्या कोई विवाद भी है?
देवसहायम के सरनेम की वजह से उनका नाम विवादों में रहा था। 2017 में, दो पूर्व आईएएस अधिकारियों ने कार्डिनल एंजेलो अमातो को पत्र लिखा थे। अमातो तब वेटिकन की कांग्रेगेशन के प्रमुख थे। इन दोनों अधिकारियों ने आग्रह किया था कि देवसहायम के सर नेम ‘पिल्लई’ को हटाया जाए। क्योंकि यह एक जाति का टाइटल है। उस वक्त वेटिकन ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया था। हालांकि, फरवरी 2020 में जब वेटिकन ने उन्हें संत बनाए जाने की घोषणा की, तब उनके नाम से पिल्लई सरनेम को हटा दिया गया।

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