PM Modi के क्षेत्र में टूटेंगी 6 ऐतिहासिक मस्जिदें, रंगीले शाह मस्जिद से लेकर संगमरमर मस्जिद पर संकट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में दालमंडी की सड़क चौड़ीकरण योजना के चलते 6 ऐतिहासिक मस्जिदों पर संकट मंडरा रहा है। इनमें से कई मस्जिदें 100 से लेकर 400 साल पुरानी हैं। इनमें सबसे प्रमुख है औरंगजेब काल की रंगीले शाह मस्जिद, जो अपने स्थापत्य और धार्मिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है।

ऐतिहासिक विरासत पर संकट

दालमंडी की तंग गलियों को चौड़ा करने के लिए PWD ने नपाई का काम पूरा कर लिया है। इसमें जो क्षेत्र योजना के अंतर्गत आएगा, उसमें कई मस्जिदों के हिस्से भी शामिल हैं। लेकिन स्थानीय लोगों और मुतवल्लियों का आरोप है कि न तो कोई सरकारी नोटिस आया है और न ही कोई स्पष्ट नक्शा जारी किया गया है।

रंगीले शाह मस्जिद: 400 साल पुराना धार्मिक स्थल खतरे में

शाही मस्जिद रंगीले शाह, जिसे औरंगजेब के शासनकाल में हैदराबाद के सूफी रंगीले शाह ने बनवाया था, अब सड़क चौड़ीकरण की योजना की जद में है। मुतवल्ली बेलाल अहमद ने बताया कि मस्जिद 60-65 फीट चौड़ी और 70 फीट गहरी है। अगर 17.5 मीटर तक सड़क चौड़ी होती है, तो मस्जिद का 30% हिस्सा टूट सकता है।

“हमारी खरीदी हुई ज़मीन है, कोई सरकारी जमीन नहीं”

लंगड़े हाफिज मस्जिद के मुतवल्ली एसएम यासीन ने बताया कि मस्जिद की ज़मीन कमेटी द्वारा खरीदी गई थी और यह आजादी से पहले की बनी हुई है। इसमें एक साथ 5,000 से ज्यादा लोग इबादत कर सकते हैं। इसके अलावा यह ज्ञानवापी की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के अधीन है।

1826 में बनी निसारन की मस्जिद, 250 नमाजियों की क्षमता

निसारन की मस्जिद, जो लंगड़े हाफिज मस्जिद से महज़ 100 मीटर की दूरी पर है, 1826 में पुरखों द्वारा तामीर कराई गई थी। मुतवल्ली मोहम्मद आज़म ने बताया कि यह छोटी मस्जिद है, लेकिन अगर सड़क 17.5 मीटर चौड़ी की गई तो केवल 2-3 फीट ही मस्जिद का हिस्सा बचेगा।

मस्जिद अली रज़ा: 550 नमाजियों की इबादतगाह भी जद में

200 साल पुरानी मस्जिद अली रज़ा भी सड़क चौड़ीकरण की योजना में है। मुतवल्ली सेराज अहमद ने बताया कि मस्जिद में हिंदू-मुस्लिम सभी धर्मों के लोग पानी और वॉशरूम का इस्तेमाल करते हैं। अगर चौड़ीकरण हुआ तो केवल 3 फीट का हिस्सा बचेगा, बाकी पूरी मस्जिद टूट जाएगी।

संगमरमर मस्जिद: 1935 में हुआ पुनर्निर्माण, अब फिर खतरे में

घुघरानी गली के पास स्थित संगमरमर मस्जिद भी 200 साल पुरानी है। इसका आगे का हिस्सा 1935 में दोबारा तामीर कराया गया था। मुतवल्ली मोहम्मद साजिद ने बताया कि यह जामा मस्जिद नहीं है, लेकिन 100 लोग एक साथ नमाज पढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि मार्केट पैदल चलने वालों के लिए है, इसलिए चौड़ीकरण की कोई जरूरत नहीं है।

करीमुल्लाह बेग मस्जिद: वक्फ में दर्ज, इबादत और व्यापार दोनों पर असर

1811 में बनी मस्जिद करीमुल्लाह बेग दालमंडी के चौक से शुरू होने वाली गली के किनारे स्थित है। इसमें एक मजार भी है और रमज़ान के दौरान तरावीह की नमाज के लिए भीड़ उमड़ती है। मुतवल्ली मिर्जा सैफ बेग ने बताया कि मस्जिद वक्फ में दर्ज है और इसके टूटने से इबादत के साथ-साथ रोज़ी-रोटी पर भी असर पड़ेगा।

“आस्था सिर्फ एक मज़हब की नहीं, मस्जिदें सभी के लिए हैं”

कई मुतवल्लियों और दुकानदारों ने कहा कि मस्जिदें न सिर्फ नमाज के लिए बल्कि समुदाय के पानी और साफ-सफाई की ज़रूरतों के लिए भी जरूरी हैं। यहां हिंदू और मुस्लिम सभी लोग सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में इन स्थलों का टूटना केवल धार्मिक नुकसान नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक क्षति भी होगी।

 

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