‘दरोगा और सिपाहियों समेत 6 पर हत्या का केस दर्ज करो..’, इतने गुस्से में जज को पहली बार देखा, जानिए मामला..

उत्तराखंड के हरिद्वार जिले से सामने आए एक सनसनीखेज मामले में अदालत ने गोवंश संरक्षण स्क्वाड से जुड़े पुलिसकर्मियों और अन्य लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया है। यह आदेश एक युवक की मौत के मामले में आया है, जिसे गोकशी के संदेह में पुलिस से भागते हुए तालाब में कूदना पड़ा था। युवक का शव अगली सुबह बरामद हुआ, जिससे पूरे क्षेत्र में आक्रोश फैल गया।
गोकशी के शक में पीछा, फिर तालाब में मौत
रुड़की के गंगनहर थाना क्षेत्र के माधोपुर गांव में यह घटना 25 अगस्त 2024 को हुई थी। गोवंश संरक्षण स्क्वाड ने गांव के एक युवक को गोकशी के शक में रोकने की कोशिश की, लेकिन वह स्कूटर छोड़कर एक तालाब में कूद गया। परिजनों के अनुसार, युवक के साथ मारपीट की गई और फिर उसे तालाब में फेंका गया। अगली सुबह युवक का शव उसी तालाब से बरामद हुआ।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का सख्त रुख
हरिद्वार के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) अविनाश श्रीवास्तव ने इस गंभीर मामले को संज्ञान में लेते हुए आदेश दिया कि दरोगा शरद सिंह, कांस्टेबल सुनील सैनी, प्रवीण सैनी और तीन अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या की धारा में एफआईआर दर्ज की जाए। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि इस मामले की जांच सीओ स्तर के अधिकारी से कराई जाए और 24 घंटे के भीतर एफआईआर की प्रति कोर्ट में प्रस्तुत की जाए।
परिजनों ने की थी न्याय की मांग
मृतक के परिजनों ने शुरू से ही आरोप लगाया था कि युवक की मौत पुलिस की ज्यादती और गलत कार्रवाई का नतीजा है। उन्होंने स्थानीय थाने में एफआईआर दर्ज करवाने की कोशिश की, लेकिन कार्रवाई नहीं होने पर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। परिजनों ने सीबीआई या SIT जांच की भी मांग की थी, ताकि निष्पक्ष जांच संभव हो सके।
पुलिस की भूमिका पर उठे सवाल
इस पूरे मामले में गोवंश संरक्षण स्क्वाड और स्थानीय पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। अदालत के हस्तक्षेप के बाद अब जांच की दिशा बदलती दिखाई दे रही है। यदि पुलिसकर्मियों पर हत्या का केस दर्ज होता है, तो यह प्रदेश में पुलिस कार्यप्रणाली पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा कर सकता है।
आगे की कार्रवाई पर नजर
अब पुलिस को अदालत के आदेशों का पालन करते हुए एफआईआर दर्ज करनी होगी और उच्चस्तरीय अधिकारी द्वारा जांच करानी होगी। इस प्रक्रिया में न्यायिक निगरानी होने की संभावना है, जिससे पीड़ित परिवार को न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ गई है।