यादव-ब्राह्मण के बाद यूपी में पाल v/s ब्राह्मण, कौशांबी दलित रेपकांड में बवाल, बाइक को लगाई आग.. BJP – “बड़ी साजिश”

उत्तर प्रदेश में में हत्या व रेप जैसे संवेदनशील मामलों ने न केवल कानून-व-व्यवस्था को चुनौती दी है, बल्कि इन घटनाओं ने राजनीतिक समीकरण भी बदल दिए हैं। विपक्ष ने राज्य की सत्ताधारी सरकार पर अपराध को लेकर नीतियों की चूक का आरोप लगाया है, वहीं राज्य सरकार की नई पहलें भी समर्थन पर तेज़ी से सवाल खड़े कर रही हैं।
‘BJP ने समाज तोड़ा, अपराध को राजनैतिक हथियार बनाया’
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इटावा में कथित उत्पीड़न की घटना को BJP द्वारा जातिगत राजनीति का हिस्सा बताया और कहा यह “बड़ी साजिश का हिस्सा” है जो जातिगत बांट को बढ़ावा देती है । इसके साथ ही, लखनऊ में हाल की हत्या व रेप की कहानियों को लेकर उन्होंने यह भी दावा किया कि यूपी में “अपराध राजधानी” की स्थिति बन चुकी है ।
सरकार की जवाबी कार्रवाई
उधर, यूपी सरकार ने स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक के नेतृत्व में नए ऑटोप्सी निर्देश जारी किए—जिनके तहत सभी हत्या, रेप जैसे मामलों में पोस्टमार्टम 4 घंटे के भीतर पूरा करना अनिवार्य किया गया। इसके अलावा, पुलिस एनकाउंटर्स, संदिग्ध मौत और महिला से जुड़े मामलों में वीडियो रिकॉर्डिंग, DNA टेस्ट और महिला डॉक्टर की मौजूदगी सुनिश्चित करने जैसे कदम शामिल हैं।
AAP की भी चुनावी मुद्दा
पंचायत चुनाव को ध्यान में रखकर AAP नेता संजय सिंह ने कहा कि यूपी का अपराध और महिलाओं की असुरक्षा विकास-विहीन राजनीति का नतीजा है। उन्होंने दरियादिली से सुझाव दिया कि अपराध, रोजगार व महिला संरक्षा जैसे मुद्दों पर जमीनी राजनीति होनी चाहिए, न कि सिर्फ जाति-धर्म पर आधारित माहौल तैयार करना।
कानून प्रणाली पर उठते सवाल
अपराध के बढ़ते स्वरूप के बीच, कई मामलों में Allahabad HC ने भी टिप्पणी की है—जैसे कि मुज़फ्फरनगर में गैंगस्टर एक्ट के इस्तेमाल में मनमानी, जिसके लिए DM व SSP को कोर्ट में तलब किया गया। यह स्पष्ट संकेत है कि सिर्फ नया कानून बनाना काफी नहीं—उनका वजन और निष्पक्षता भी सुनिश्चित करनी होगी।
राजनीतिक-समाजीय असर
स्थिति यह बन गई है कि अपराध अब सिर्फ अपराध नहीं—बल्कि चुनावी हथियार बन गए हैं।
विपक्ष सत्तारूढ़ पार्टी पर आरोप लगा रहा है कि वो अपराधियों को संरक्षण दे रही है।
सरकार कह रही है कि कार्यवाही में तेजी लाई जा रही है—पर जनता को इसका प्रत्यक्ष लाभ कब तक मिलेगा?
कानून व्यवस्था के बदलाव बस कागजों पर नहीं—आदमी की मानसिकता और ढांचे में सचमुच बदलाव आना चाहिए।
हत्या-रेप जैसे गंभीर अपराध तब तक नियंत्रित नहीं होंगे जब तक न्याय त्वरित, निष्पक्ष और विश्वासपूर्ण नहीं होगा। राजनीतिक बयानबाज़ी और बयानों की राजनीति से ज़्यादा, ज़मीनी कार्रवाई, पुलिस सुधार, यातना रहित जांच और संवेदनशील कानूनी व्यवस्था की आवश्यकता है। यूपी में यह लड़ाई अब केवल अपराध के खिलाफ नहीं बल्कि विश्वास और पारदर्शिता के लिए भी है।