BJP विधायक ने SDM को जड़ा थप्पड़.. दीवान को भी नहीं बख्शा, सत्ता के नशे में पहुंचे थे ओवरलोड ट्रक छुड़वाने

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के गिरवां थाना क्षेत्र में रविवार देर रात प्रशासनिक कार्रवाई के दौरान जमकर हंगामा देखने को मिला। एसडीएम नरैनी अमित शुक्ला और सीओ कृष्णकांत त्रिपाठी रात करीब 1 बजे पैगंबरपुर के पास ओवरलोड मौरंग ट्रकों की जांच कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने “जय कामतानाथ” लिखे दो ओवरलोड ट्रकों को पकड़कर सीज कर दिया और थाने ले जाने लगे। यहीं से शुरू हुआ सियासी हस्तक्षेप और टकराव का सिलसिला।

विधायक का फोन कॉल और दबाव

बताया जा रहा है कि जैसे ही ओवरलोड ट्रकों की सूचना फैली, बांदा सदर से बीजेपी विधायक प्रकाश द्विवेदी ने प्रशासनिक अधिकारियों को फोन कर ट्रकों को छोड़ने का दबाव बनाया। लेकिन एसडीएम और सीओ ने नियमों का हवाला देते हुए किसी भी प्रकार की रियायत देने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद मामला और गरमाता चला गया।

मौके पर पहुंचे विधायक, हाथापाई का आरोप

विधायक प्रकाश द्विवेदी देर रात करीब पांच गाड़ियों के काफिले के साथ मौके पर पहुंचे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, मौके पर पहुंचते ही विधायक और एसडीएम के बीच तीखी बहस शुरू हो गई, जो जल्द ही हाथापाई में बदल गई। आरोप है कि विधायक ने एसडीएम अमित शुक्ला को दो थप्पड़ जड़े और बीच-बचाव करने आए दीवान को भी नहीं बख्शा। उसे भी थप्पड़ मारने की बात सामने आई है।

चौकी में भी हंगामा, दीवान पर हमला

घटना यहीं नहीं रुकी। विधायक इसके बाद खुरहंड पुलिस चौकी पहुंचे, जहाँ उन्होंने फिर से एक घंटे तक हाईवोल्टेज ड्रामा किया। यहाँ पर भी उन्होंने दीवान विजय सिंह पर हाथ उठाया। घायल दीवान को तुरंत जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। पूरे घटनाक्रम से पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया।

अंत में माफी और सरेंडर की बात

हंगामे के बाद, विधायक ने खुद को पुलिस के समक्ष प्रस्तुत किया और अधिकारियों से माफी मांगी। हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या जनप्रतिनिधि अब कानून के ऊपर हैं? क्या प्रशासनिक अधिकारियों के साथ इस तरह का व्यवहार स्वीकार्य है?

पहले भी हो चुकी है ऐसी घटना

यह पहली बार नहीं है जब ओवरलोड मौरंग ट्रकों के मुद्दे पर जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के बीच टकराव हुआ हो। अप्रैल महीने में नरैनी विधायक ओममणि वर्मा के पति ने भी इसी तरह की कार्रवाई के दौरान एसडीएम पर हाथ उठाया था, जिसे बाद में दबा दिया गया। लगातार दोहराई जा रही इन घटनाओं ने यूपी की प्रशासनिक साख पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

सत्ता की ठोकर या कानून का सम्मान?

बांदा की यह घटना न केवल सत्ता और प्रशासन के बीच टकराव को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि ओवरलोडिंग जैसे गंभीर मुद्दे पर भी राजनीति किस हद तक जा सकती है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस मामले में कितनी सख्ती दिखाता है या फिर यह घटना भी ‘रफा-दफा’ हो जाती है।

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