हत्या के आरोप में ढाई साल जेल, मृत ने ही दिलाई बेल… जानिए UP का अनोखा मामला

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है। ढाई साल पहले एक चलती ट्रेन से युवक को बाहर फेंकने के आरोप में नरेंद्र कुमार दुबे को जेल भेजा गया था। अब पता चला है कि जिसे मरा समझकर नरेंद्र को जेल भेजा गया था, वह व्यक्ति जिंदा है। हैरान करने वाली बात यह है कि उसी युवक की गवाही के आधार पर अदालत ने नरेंद्र को दोषमुक्त कर दिया है।
घटना की शुरुआत: ट्रेन में मारपीट और फेंकने का आरोप
15-16 दिसंबर 2022 को अयोध्या निवासी आलोक ने सीयूजी नंबर पर सूचना दी थी कि दिल्ली-अयोध्या जनरल कोच डी-2 में एक व्यक्ति ने दूसरे को मारपीट कर तिलहर रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन से बाहर फेंक दिया। आलोक ने घटना का वीडियो भी पुलिस को दिया। जब ट्रेन बरेली रुकी, तो वीडियो के आधार पर नरेंद्र कुमार दुबे को गिरफ्तार कर लिया गया।
प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही ने बढ़ाई मुसीबत
कोच में मौजूद बाराबंकी के अजनी और दिलदार नामक यात्रियों ने नरेंद्र पर मारपीट का आरोप लगाया और गवाही दी कि उसी ने युवक को चलती ट्रेन से फेंका था। इसके बाद पुलिस ने शाहजहांपुर जीआरपी को जानकारी दी। तिलहर क्षेत्र में रेलवे पटरी पर एक शव मिलने की सूचना पर फोटो मंगाकर गवाहों को दिखाए गए, जिन्होंने पहचान की पुष्टि की।
मोबाइल चोरी के शक में पीटा गया था युवक
गवाहों और यात्रियों ने बताया कि एक महिला यात्री का मोबाइल चोरी हुआ था। इसी शक में यात्रियों ने एक युवक को पकड़कर पीटा और उसी दौरान नरेंद्र ने भी उससे मारपीट की। धक्का लगने से युवक चलती ट्रेन से गिर गया। पुलिस ने सोशल मीडिया पर फोटो डालकर शव की पहचान की कोशिश की।
जिंदा निकला ‘मरा हुआ’ व्यक्ति, गुजरात में कर रहा था काम
जिस युवक को मृत समझा गया था, वह असल में मरा नहीं था। वह तिलहर की घटना के बाद गुजरात चला गया था और उसके पास मोबाइल नहीं था, जिस कारण परिजनों से संपर्क नहीं हो सका। अदालत में मुकदमे की सुनवाई के दौरान जब वह युवक सामने आया, तो उसकी गवाही ने पूरे मामले का रुख बदल दिया।
कोर्ट का फैसला: हत्या का आरोप साबित नहीं, दोषमुक्त हुए नरेंद्र
अपर सत्र न्यायाधीश पंकज कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश की गई गवाही के अनुसार, जिस व्यक्ति की हत्या का आरोप नरेंद्र दुबे पर था, वह जीवित है। यह स्पष्ट हुआ कि जिस व्यक्ति को नरेंद्र ने ट्रेन से फेंका था, वह कोई और था। अदालत ने अपने आदेश में लिखा कि यदि उस अज्ञात व्यक्ति के परिवारजन चाहें तो नरेंद्र के खिलाफ अलग से केस दायर कर सकते हैं, लेकिन यह फैसला उस केस को प्रभावित नहीं करेगा।
न्याय मिला, लेकिन ढाई साल की जिंदगी गई जेल में
नरेंद्र कुमार दुबे को अब भले ही दोषमुक्त कर दिया गया हो, लेकिन उन्होंने अपनी जिंदगी के ढाई साल जेल की सलाखों के पीछे गुजारे, जो कभी वापस नहीं आ सकते। यह मामला न केवल पुलिस जांच की सटीकता पर सवाल उठाता है, बल्कि गवाहों की जिम्मेदारी और सामाजिक न्याय प्रणाली की संवेदनशीलता को भी उजागर करता है।