जिस TLP को ISI ने पैदा किया; इमरान ने आशिक-ए-रसूल कहा, वही TLP इमरान की दुश्मन क्यों बनी?

पाकिस्तान ने प्रतिबंधित ‘तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान’ (TLP) सालभर के भीतर तीसरी बार सड़कों पर है। बुधवार से उसका लॉन्ग मार्च चल रहा है। TLP प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश में 6 पुलिसकर्मियों की मौत हो चुकी है। पाक सरकार के मंत्री गुरुवार तक जिस TLP को आतंकी संगठन बता रहे थे, शुक्रवार को वे जेल में बंद TLP चीफ से बातचीत जारी होने की बात कहने लगे।

आखिर ये TLP क्या है? इसके विरोध की वजह क्या है? क्या इन प्रदर्शनों के पीछे सेना और ISI का भी हाथ है? TLP का पाकिस्तान की राजनीति में कितना असर है? क्या पहले भी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर चुकी है TLP? आइये जानते हैं …

मौजूदा विरोध की वजह क्या है?

TLP नेता साद रिजवी इस साल अप्रैल से हिरासत में हैं। TLP समर्थक साद की रिहाई की मांग कर रहे हैं। उनकी रिहाई के लिए शुरू हुआ विरोध प्रर्दशन धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। विरोध बढ़ता देख इमरान खान सरकार ने TLP पर प्रतिबंध लगा दिया।

नेता की रिहाई की मांग पर शुरू हुआ विरोध बढ़ा तो TLP की डिमांड लिस्ट में कुछ और मुद्दे भी जुड़ गए। इनमें पाकिस्तान से फ्रांस के राजदूत को वापस भेजने की मांग है। ये मांग फ्रांसीसी मैग्जीन चार्ली हेब्दो में पैगंबर मोहम्मद के छपे कार्टून की वजह से है। चार्ली हेब्दो वही मैग्जीन है जिसके ऑफिस पर 2015 में आतंकी हमला हुआ था। 2017 के बाद ये तीसरा मौका है जब TLP समर्थक इस तरह का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

इससे पहले इसी साल अप्रैल में भी TLP का विरोध प्रदर्शन हिंसक हुआ था। उस वक्त TLP ने आरोप लगाया था कि सरकार देश में फ्रांसीसी दूतावास बंद करने के अपने वादे से मुकर गई है।

फ्रांस की मैग्जीन के कार्टून पर 6 साल बाद विरोध क्यों हो रहा है?

दरअसल, 16 अक्टूबर 2020 को फ्रांस में एक युवक ने सैम्युअल पैटी नाम के टीचर की गर्दन काटकर हत्या कर दी थी। पैटी पर अपने छात्रों को पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाने का आरोप था। इस हत्या की फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने निंदा की थी। इसके बाद मुस्लिम देशों में फ्रांस के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए। पाकिस्तान में भी TLP ने नवंबर 2020 में इसी तरह का विरोध प्रदर्शन शुरू किया था। उस वक्त पाकिस्तान सरकार ने TLP को आश्वासन देकर मामले को सुलझा लिया था।

इसके लिए पाकिस्तान नेशनल असेंबली में फ्रांसीसी राजदूत के निष्कासन का प्रस्ताव भी लाने का वादा किया। इसके बाद भी सरकार की ओर से कार्रवाई नहीं होने पर अप्रैल 2021 में TLP ने फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू किए। प्रदर्शन पर कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान सरकार ने TLP पर बैन लगा दिया। इसके नेता साद रिजवी की गिफ्तारी के बाद प्रदर्शन बंद हो गए। TLP पर पाकिस्तान के 1997 के आतंकवादी निरोधी कानून के तहत बैन लगाया गया।

साद की रिहाई की मांग समेत अपनी पुरानी मांगों को लेकर इस महीने TLP का प्रदर्शन फिर से शुरू हुआ। पिछले करीब 2 हफ्ते से ये प्रदर्शनकारी इमरान सरकार के गले की हड्डी बने हुए हैं। पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक करीब 5 हजार TLP समर्थक इस्लामाबाद की तरफ बढ़ रहे हैं। कहीं फायरिंग हो रही है तो कही, भीड़ को रोकने के लिए सड़क के बीचों बीच मिट्टी और कंटेनर का ढेर लगा दिया गया है।

TLP नेता साद रिजवी की रिहाई की मांग को लेकर पंजाब प्रांत में सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है।

क्या इन प्रदर्शनों के पीछे सेना और ISI का भी हाथ है?

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सुशांत सरीन कहते हैं कि ऐसा जरूरी नहीं है कि बिना सेना और ISI के समर्थन के पाकिस्तान में इतना बड़ा विरोध प्रदर्शन नहीं हो सकता। हालांकि, मौजूदा विरोध के पीछे ISI का हाथ होने के पीछे भी तर्क दिए जा रहे हैं। दरअसल मौजूदा विरोध प्रदर्शन ठीक उसी वक्त के आसपास शुरू हुआ जब ISI चीफ को बदलने को लेकर विवाद शुरू हुआ।

वहीं, दूसरी तरफ इस मूवमेंट को पहले सेना का काफी समर्थन मिलता रहा है। इसके पीछे वजह ये है कि इस संगठन के लोग बरेलवी मजहब के हैं। लश्करे तैयबा, जैस-ए-मोहम्मद और तालिबान जैसे संगठन वहाबी या देवबंदी हैं। इसे देखते हुए TLP को एक काउंटर फोर्स के रूप में खड़ा किया गया।

बाद में TLP को जिस तरह का समर्थन मिला उससे इसका इम्पैक्ट बढ़ गया। आज ये पंजाब प्रांत की तीसरी और देश की पांचवीं बड़ी पार्टी है। TLP संस्थापक खादिम हुसैन रिजवी के निधन के बाद जिस तरह की भीड़ उनके जनाने में उमड़ी वैसी पाकिस्तान के इतिहास में कभी नहीं देखी गई।

सरकार तो इसे आतंकी संगठन कह रही है उसका क्या?

सुशांत सरीन कहते हैं कि ये कोई अलग गुट नहीं है। ये लोग कहीं बीहड़ में जाकर बागी बने लोग नहीं हैं ना ही अफगानिस्तान जाकर जिहाद करने वाले लोग हैं। ये आम पाकिस्तानी लोग है। ये वहां के समाज के अंदर के लोग हैं। इनका मुद्दा ऐसा है जिसके खिलाफ जाकर सरकार लोगों का विरोध मोल नहीं लेना चाहती, क्योंकि ये लोग कहते हैं कि हम रसूल की इज्जत के लिए लड़ रहे हैं।

पाकिस्तान का एलीट तबका ये कहता है कि रसूल के लिए हमारी जान कुर्बान। ये लोग कहते हैं कि अगर आप रसूल के लिए अपनी जान, अपने खानदान को न्योछावर करने को तैयार हैं तो फिर रसूल की इज्जत के लिए फ्रांस के राजदूत को बाहर नहीं निकालने में क्या परेशानी है। यही सरकार की सबसे बड़ी परेशानी है।

TLP के प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए जगह-जगह इस तरह से बैरिकेड लगे हैं, लेकिन ये बैरिकेड प्रदर्शकारियों को आगे बढ़ने से रोक नहीं पा रहे हैं।

सरकार अपने वादे से क्यों मुकर गई?

इमरान सरकार ने संसद में बहस कराने का वादा जरूर किया, लेकिन वो फ्रांस के खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले सकती। अगर इमरान सरकार ऐसा करती है तो यूरोपियन यूनियन और अमेरिका उसके खिलाफ हो जाएंगे। इधर, सियासी मजबूरियों के चलते TLP पर बैन तो लगा दिया गया, लेकिन सरकार और फौज सख्त कदम उठाने से डर रही हैं।

TLP का पाकिस्तान की राजनीति में कितना असर?

TLP की स्थापना खादिम हुसैन रिजवी ने 2017 में की थी। वे पंजाब के धार्मिक विभाग के कर्मचारी थे और लाहौर की एक मस्जिद के मौलवी थे, लेकिन साल 2011 में जब पंजाब पुलिस के गार्ड मुमताज कादरी ने पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या की तो उन्होंने कादरी का खुलकर समर्थन किया। जिसके बाद उन्हें नौकरी से निष्कासित कर दिया गया। जब 2016 में कादरी को दोषी करार दिया गया तो TLP ने ईश निंदा और पैगंबर के ‘सम्मान’ के मुद्दों पर देशभर में विरोध शुरू किया। कदारी की मौत के बाद हुआ विरोध प्रदर्शन महज चार दिन में खत्म हो गया, लेकिन इसी में TLP की नींव पड़ी।

खादिम रिजवी ने ऐलान किया कि वो ‘तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान या रसूल अल्लाह’ नाम से धार्मिक पार्टी बनाएंगे। खादिम ने फ्रांस को एटम बम से उड़ाने की वकालत की थी। पिछले साल अक्टूबर में खादिम रिजवी की मौत हो गई थी। खादिम रिजवी की फॉलोइंग पाकिस्तान में इतनी ज्यादा थी कि कहते हैं कि लाहौर में उनके जनाजे में लाखों की भीड़ उमड़ी थी। खादिम रिजवी की मौत के बाद उनके बेटे साद रिजवी ने TLP पर कब्जा जमा लिया।

TLP के प्रदर्शनकारियों को पाकिस्तान के आम लोगों का समर्थन मिल रहा है।

TLP की चुनावी राजनीति में कितनी दखल है?

2017 में जब नवाज शरीफ को अयोग्य ठहराया गया तब उनकी रिजवी की पार्टी चुनाव आयोग में रजिस्टर नहीं थी। उस वक्त नवाज सीट पर हुए उपचुनाव में रिजवी ने जिस निर्दलीय उम्मीदवार का समर्थन किया उसे जमाते इस्लामी और बिलावल भुट्टो की पीपुल्स पार्टी से भी ज्यादा वोट मिले। इस सफलता से उत्साहित रिजवी ने 2018 के आम चुनाव में पार्टी ने 559 उम्मीदवार खड़े किए। इनमें से तीन उम्मीदवार विधानसभा सीटों पर भी जीतने में सफल रहे। वहीं, संसदीय चुनाव में उनकी पार्टी को 22 लाख से ज्यादा वोट मिले। वोट के लिहाज से TLP पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी थी।

क्या पहले भी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर चुकी है TLP?

2017 में TLP ने कई हफ्तों तक इस्लामाबाद में चुनावी सुधार बिल के विरोध में प्रदर्शन किया था। उसने बिल को अहमदिया मुसलमानों का समर्थन करने वाला बताया था। इसके बाद से TLP अहमदिया मुसलमानों के खिलाफ लगातार आग उगलती रही है।

2018 में TLP के विरोध के चलते ही फेमस अहमदिया अर्थशास्त्री आतिफ रहमान मियां इकोनॉमिक एडवाइजरी बोर्ड में शामिल नहीं हो सके। इस कट्टरपंथी ग्रुप ने 2018 में ईसाई महिला आसिया बीबी की रिहाई के खिलाफ भी प्रदर्शन किया था, जिसे 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक हाई-प्रोफाइल ईश निंदा के मामले में निर्दोष घोषित किया था। पिछले साल TLP ने अवॉर्ड विनिंग पाकिस्तानी फिल्म ‘जिंदगी तमाशा’ को रिलीज होने से रोक दिया था।

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