सुनील बंसल के यूपी से जाने के बाद अब धर्मपाल सिंह के सामने होंगी ये चुनौतियां

सुनील बंसल के यूपी से जाने के बाद अब धर्मपाल सिंह के सामने होंगी ये चुनौतियां

सुनील बंसल के यूपी से जाने के बाद अब धर्मपाल सिंह के सामने होंगी ये चुनौतियां

News Nशा

यूपी में जब भी सुनील बंसल की चर्चा होगी तब वर्ष 2014 से 2022 तक का संगठन महासचिव होने के नाते एक सफल कार्यकाल की चर्चा जरूर होगी कि कैसे कुशल संगठन के बूते अमित शाह के फार्मूले को सुनील बंसल ने एक जीत की मशीन में बदल दिया. वहीं इसके साथ यह चर्चा भी जरूर रहेगी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दबंग और सफल कार्यकाल में भी संगठन ने अपना न सिर्फ वजूद सरकार से अलग बनाये रखा बल्कि पार्टी और सरकार के समन्वय में “बीजेपी फर्स्ट” का मंत्र कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा टॉप पर रहा.

 

सियासी बैरी सपा-बसपा और सपा-कांग्रेस के गठबंधन जैसे दांव को भी विफल कर सफलता की जो लंबी लकीर बंसल ने खींची है। यहां की 80 लोकसभा सीटों की रणनीति बनाते रहे बंसल के ऊपर अब तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और ओडिशा की कुल 80 सीटों की जिम्मेदारी होगी।

 

वहीं उनके स्थान पर यूपी जैसे बड़े राज्य की जिम्मेदारी धर्मपाल को सौंपी गई है। उनके सामने 2024 के लोकसभा चुनाव की चुनौती तो है ही, लेकिन मजबूत पक्ष यह भी है कि वह इस प्रदेश को अच्छी तरह से जानते-समझते भी हैं। मूल रूप से बिजनौर निवासी धर्मपाल यहां संगठन के कई दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं।

 

आपको बताते चलें कि 8 सालों के कार्यकाल में योगी और बंसल, सरकार और संगठन के दो अलग-अलग ध्रुव रहे, लेकिन समन्वय में कोई कमी नजर नहीं आई. फैसले हमेशा सर्वसम्मति से लिये गए. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संगठन में कभी हस्तक्षेप नहीं किया और सुनील बंसल ने भी सरकार में कोई हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन दोनों के बीच एक अनकहे रस्साकशी की चर्चा हमेशा रही.

 

कहीं न कहीं ये चर्चा भी रही कि सुनील बंसल सरकार को भी संगठन के हितों के मुताबिक चलाना चाहते थे और सीएम योगी, सरकार चलाने के अपने सख्त मॉडल में किसी भी हस्तक्षेप के खिलाफ थे, जबकि सुनील बंसल सरकार में भी संगठन की भूमिका एक हद तक चाहते थे. ऐसे में दोनों में एक अनकहा टकराव जरूर रहा. इसमें कुछ सच्चाई होते हुए भी दोनों ने अपने समन्वय को कायम रखा और मर्यादा की सीमारेखा हमेशा बनी रही.

 

 

दोनों के बीच मतभेद को लेकर चर्चाएं चाहे जितनी भी रहीं हों, लेकिन एक बार विधानसभा के भीतर जब 55 विधायकों का विद्रोह सामने आया, उस समय सुनील बंसल ही संकट मोचक बनकर सामने आए और सभी विधायकों व नेताओं की नाराजगी (जो सरकार के खिलाफ थी) उसे समाप्त किया.

 

ऐसा माना जाता है कि सुनील बंसल के रहते सीएम योगी का दखल संगठन में नहीं था, वह चाहे टिकटों का बंटवारा हो, चाहे उम्मीदवारों का चयन हो या फिर चाहे विधान परिषद का चुनाव ही क्यों न हो. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद को हमेशा संगठन के ऐसे कार्यों से दूर ही रखते रहे, लेकिन सुनील बंसल योगी की इच्छाओं को भी तरजीह देते रहे. वहीं सरकार में अधिकारियों के ट्रान्सफर-पोस्टिंग को लेकर भी रस्साकशी की खबरें सामने आती रहीं.

 

नए संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह के लिए सबसे बड़ी चुनौती सरकार के सामने संगठन की सर्वोच्चता बनाये रखने की होगी, इसमें वह कितना सफल होते हैं यह तो कहना मुश्किल होगा, लेकिन एक बात जो है वो साफ है कि अब सुनील बंसल के उत्तर प्रदेश से चले जाने के बाद प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कद संगठन सरकार और पार्टी सबसे ऊपर रहेगा.

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