नए CJI बीआर गवई की एक और बड़ी टिप्पड़ीं, इस बार वकीलों को लिया आड़े हाथ.. Viral हो रहा बयान

भारत के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी. आर. गवई ने अदालतों में मामलों की बढ़ती पेंडेंसी (बैकलॉग) को लेकर समाज और मीडिया में फैली धारणाओं को चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि अदालतों को बेवजह दोषी ठहराया जा रहा है, जबकि असल में कई वकील अवकाश के दौरान काम करने को तैयार नहीं होते, जिससे न्यायिक प्रक्रिया बाधित होती है।

वकील अवकाश के दौरान तैयार नहीं: CJI गवई

CJI गवई ने दिल्ली में एक सार्वजनिक मंच पर कहा,
“हमेशा कोर्ट को दोष देना ठीक नहीं है। जब हम गर्मी की छुट्टियों में विशेष पीठें बनाते हैं, तब वकील खुद नहीं आना चाहते।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि अदालतों में लंबित मामलों का जिम्मेदार सिर्फ न्यायपालिका को ठहराना एकपक्षीय सोच है। इसके पीछे अनेक व्यवस्थागत कारण होते हैं, जिनमें वकीलों की भागीदारी भी अहम है।

न्यायिक अवकाश प्रणाली पर सवाल, लेकिन ज़िम्मेदारी सभी की

गर्मी की छुट्टियों में उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट दोनों में कुछ हफ्तों का ब्रेक लिया जाता है, जो अक्सर मीडिया में आलोचना का विषय बनता है। CJI गवई ने कहा,
“हम पर ये आरोप लगाया जाता है कि कोर्ट लंबे समय तक बंद रहते हैं, लेकिन जब छुट्टियों में सुनवाई की व्यवस्था की जाती है तो वकील खुद तैयार नहीं होते।”
उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में न्यायपालिका के साथ-साथ बार काउंसिल को भी आत्मचिंतन करना चाहिए।

लंबित मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता और आंकड़े

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में अदालतों में 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट अकेले ही लाखों केसों की सुनवाई कर चुका है, फिर भी नए केसों की बाढ़ इस समस्या को और गंभीर बना रही है।
CJI गवई के मुताबिक, न्यायाधीश लगातार अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं, लेकिन जब सहयोगी संस्थाएं—जैसे कि वकील—पूरा सहयोग नहीं देते, तो प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

मीडिया और समाज से संतुलित नजरिए की अपील

CJI गवई ने मीडिया और नागरिकों से भी आग्रह किया कि वे केवल अदालतों को दोषी न ठहराएं।
“यह ज़रूरी है कि पूरा न्याय तंत्र एकसाथ काम करे। यदि वकील, जज और सरकार मिलकर ज़िम्मेदारी निभाएं, तभी न्याय समय पर मिल सकता है,” उन्होंने कहा।

सुधार सिर्फ अदालतों में नहीं, पूरे सिस्टम में चाहिए

CJI गवई का बयान यह दर्शाता है कि न्यायिक प्रक्रिया को गति देने के लिए केवल अदालतों को कोसना सही नहीं है। जब तक बार और बेंच दोनों में समान प्रतिबद्धता नहीं होगी, तब तक बदलाव अधूरा रहेगा। न्यायपालिका पर एकतरफा आलोचना करने से बेहतर है कि पूरे सिस्टम को सामूहिक रूप से जवाबदेह बनाया जाए।

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