अभिशाप कोरोना सोशल मीडिया के लिए वरदान निकला, सोनिया का आंदोलन भी सोशल मीडिया पर

पत्रकार नवेद शिकोह कि कलम से

  • कोरोना ने सोशल मीडिया को ताक़त दे दी
  • अभिषाप कोरोना सोशल मीडिया के लिए वरदान निकला
  • सोनिया का आंदोलन भी सोशल मीडिया पर

कोरोना काल का सबसे प्रचलित और प्रयोगात्मक जुमला है- ‘सोशल डिस्टेंसिंग’। कोविड 19 के ख़िलाफ यही सबसे बड़ा हथियार है। फिलहाल इस वायरस के मर्ज की यही दवा है। सोशल डिस्टेंसिंग क़ायम रखें। हम भीड़ ना लगायें। घरों में रहें। बहुत अहम जरुरत ना हो तो बाहर ना निकलें। इंसान इंसान से दूरी बनाकर रखे। ऐसे में घर बैठे इंसान से इंसान का रिश्ता क़ायम रखने, घर बैठे फिक्र ज़ाहिर करने, घर बैठे ही बड़ी तादाद को संबोधित करने, बयानबाजी करने यहां तक कि बड़े-बड़े आंदोलनों की रूपरेखा तैयार करने में भी एकमात्र सोशल मीडिया का ही सहारा लिया जा रहा है।
देश के सबसे बड़े विपक्षी दल की सबसे बड़ी नेत्री कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने कोविड 19 के खिलाफ मोदी सरकार की रणनीति की खामियां सोशल मीडिया के जरिये बयां की हैं। साथ ही उन्होंने सरकार से कुछ मांगों को लेकर आंदोलन छेड़ने के लिए सोशल मीडिया की जमीन चुनी है। कांग्रेस अध्यक्षा ने सोशल मीडिया पर जारी अपने संदेश में कहा कि देशभर के कांग्रेस समर्थक, नेता, कार्यकर्ता और पदाधिकारी सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार के समक्ष कोरोना से लड़ने के लिए जनहित की मांगों को दोहरायें।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी का सन्देश कुछ इस प्रकार है-

मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

पिछले 2 महीने से पूरा देश कोरोना महामारी की चुनौती और लॉकडाउन के चलते रोजी-रोटी-रोजगार के गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। देश की आजादी के बाद पहली बार दर्द का वो मंजर सबने देखा कि लाखों मजदूर नंगे पांव, भूखे-प्यासे, बगैर दवाई और साधन के सैकडों-हजारों किलोमीटर पैदल चल कर घर वापस जाने को मजबूर हो गए। उनका दर्द, उनकी पीड़ा, उनकी सिसकी देश में हर दिल ने सुनी, पर शायद सरकार ने नहीं।

करोड़ों रोजगार चले गए, लाखों धंधे चौपट हो गए, कारखानें बंद हो गए, किसान को फसल बेचने के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। यह पीड़ा पूरे देश ने झेली, पर शायद सरकार को इसका अंदाजा ही नहीं हुआ।

पहले दिन से ही, मेरे सभी कांग्रेस के सब साथियों ने, अर्थ-शास्त्रियों ने, समाज-शास्त्रियों ने और समाज के अग्रणी हर व्यक्ति ने बार-बार सरकार को यह कहा कि ये वक्त आगे बढ़ कर घाव पर मरहम लगाने का है, मजदूर हो या किसान, उद्योग हो या छोटा दुकानदार, सरकार द्वारा सबकी मदद करने का है। न जाने क्यों केंद्र सरकार यह बात समझने और लागू करने से लगातार इंकार कर रही है।

इसलिए, कांग्रेस के साथियों ने फैसला लिया है कि भारत की आवाज बुलंद करने का यह सामाजिक अभियान चलाना है। हमारा केंद्र सरकार से फिर आग्रह है कि खज़ाने का ताला खोलिए और ज़रूरत मंदों को राहत दीजिये। हर परिवार को छः महीने के लिए 7,500 रू़ प्रतिमाह सीधे कैश भुगतान करें और उसमें से 10,000 रू़ फौरन दें। मज़दूरों को सुरक्षित और मुफ्त यात्रा का इंतजाम कर घर पहुंचाईये और उनके लिए रोजी रोटी का इंतजाम भी करें और राशन का इंतजाम भी करें। महात्मा गाँधी मनरेगा में 200 दिन का काम सुनिश्चित करें जिससें गांव में ही रोज़गार मिल सके। छोटे और लघु उद्योगों को लोन देने की बजाय आर्थिक मदद दीजिये, ताकि करोड़ों नौकरियां भी बचें और देश की तरक्की भी हो।

आज इसी कड़ी में देशभर से कांग्रेस समर्थक, कांग्रेस नेता, कार्यकर्ता, पदाधिकारी सोशल मीडिया के माघ्यम से एक बार फिर सरकार के सामने यह मांगें दोहरा रहे है । मेरा आपसे निवेदन है कि आप भी इस मुहिम में जुड़िए, अपनी परेशानी साझा कीजिए ताकि हम आपकी आवाज को और बुलंद कर सकें। संकट की इस घड़ी में हम सब हर देशवासी के साथ हैं और मिलकर इन मुश्किल हालातों पर अवश्य जीत हासिल करेंगे।
जय हिंद!

कांग्रेस के ही नहीं अन्य विपक्षियों के भी सरकार के प्रति शिकवे-शिकायतें और मांगे सोशल मीडिया पर ही मंडरा रही हैं। यही नहीं आज सारे अहम काम इंटरनेट के मोहताज हो गये हैं। देश का भविष्य बच्चे-युवा ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ऑनलाइन ही जरुरी चीजों के एप्वाइंटमेंट लिए जा रहे हैं।

पहले लोग लोग ताना देते थे कि जो ज़मीनी हक़ीक़त से दूर होते हैं वो सोशल मीडिया के नज़दीक रहते हैं। देश की तमाम बड़ी राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेताओं पर भी व्यंग्य कसा जाता रहा है कि फलां नेता ग्राउंड पर नजर नहीं आते और ट्वीटर और फेसबुक के जरिए राजनीति करते हैं। आम लोगों के बारे में उपहास किया जाता है कि जिसे पड़ोसी ना पहचानता हो उसके फेसबुक पर पांच हजार मित्र होते हैं। जो मदर डे पर मां का हाल चाल नहीं लेते.. उसे एक गिलास पानी नहीं देते वही लोग सोशल मीडिया पर मदर डे पर मां के गुणगान करते हैं।

व्यापारी नेता, मजदूर नेता, ट्रेड यूनियन नेता, पत्रकार नेता और विभिन्न क्षेत्रों के सेलीब्रिटी भी बयान बहादुर के तौर पर बदनाम हैं। कहा जाता है कि ये करते-धरते कुछ नहीं लेकिन समय-समय पर सोशल मीडिया पर केवल बड़े-बड़े कोरे बयान दिया करते हैं। कोरोना काल में कोविड 19 के अभिषाप ने सोशल डिस्टेंसिंग को जन्म दिया, और सोशल डिस्टेंसिंग ने सोशल मीडिया को सबसे बड़ा वरदान बना दिया।

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