तो इससे सबक लेकर BJP कर रही विधानसभा चुनावों की प्‍लानिंग? जानिए

रांची. भारतीय जनता पार्टी (BJP) विधानसभा चुनावों से पहले दो राज्‍यों के मुख्‍यमंत्रियों को हटा कर दूसरे वरिष्‍ठ नेता को प्रदेश की कमान सौंप चुकी है. राजनीति में आमतौर पर चुनाव से कुछ महीने पहले मुख्‍यमंत्री को बदलने से संबंधित पार्टी का शीर्ष नेतृत्‍व कतराता है, लेकिन हाल के दिनों में भजपा के लिए यह कदम खास रणनीति बन गई है. बीजेपी आलाकमान ने उत्‍तराखंड के बाद अब विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले गुजरात के मुख्‍यमंत्री को भी बदल दिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी ऐसा क्‍यों कर रही है? इसका जवाब झारखंड विधानसभा चुनाव में मिला सबक तो नहीं है? तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा को यहां हार मिली थी.

झारखंड विधानसभा चुनाव के करीब आते-आते रघुबर दास मुख्‍यमंत्री के तौर पर बेहद ही अलोकप्रिय हो चुके थे. चुनाव से पहले उन्‍हें पद से हटाने की भी मांग उठी थी, लेकिन उसे तवज्‍जो नहीं दी गई थी. परिणामस्‍वरूप पार्टी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और हेमंत सोरेन की अगुआई वाला गठबंधन सत्‍ता में वापसी करने में सफल रहा. भाजपा के वरिष्‍ठ नेता बताते हैं कि झारखंड से मिले इस चुनावी सबक से सीख लेते हुए पार्टी इस साल 5 मुख्‍यमंत्री को बदल चुकी है. गुजरात के पूर्व मुख्‍यमंत्री विजय रुपाणी का पद से हटना भी इसी रणनीति का हिस्‍सा बताया जा रहा है. झारखंड चुनाव के बाद पार्टी आलाकमान की सोच है कि नुकसान से पहले ही डैमेज कंट्रोल कर लिया जाए.

हरियाणा बीजेपी का कामकाज देखने वाले एक नेता ने मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का उदाहरण भी दिया. उन्‍होंने बताया कि अक्‍टूबर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को हरियाणा में पूर्ण बहुमत नहीं मिला और गठबंधन करके सरकार बनानी पड़ी. इस नेता ने बताया कि मनोहर लाल खट्टर की छवि से पार्टी को नुकसान होने की संभावना थी, इसके बावजूद उनके चेहरे पर ही चुनाव लड़ा गया. बता दें कि खट्टर देशभर में भाजपा के सबसे बुजुर्ग मुख्‍यमंत्री हैं.

झारखंड-हरियाणा से सबक
सूत्र बताते हैं कि झारखंड विधानसभा चुनाव में हार और हरियाणा की स्थिति को देखते हुए भाजपा आलाकमान य‍ह सोचने पर मजबूर हुआ कि अलोकप्रिय और नॉन-परफॉर्मिंग (ठीक से कामकाज करने में असफल) मुख्‍यमंत्रियों को पद से हटना होगा. बीजेपी के एक मुख्‍यमंत्रियों को ताबड़तोड़ बदलने के कारण होने वाली आलोचना को झेलने के लिए पार्टी तैयार है, लेकिन चुनाव हारना मंजूर नहीं.

हरियाणा, एमपी और हिमाचल को लेकर भी चर्चाएं
अब सवाल उठता है कि क्‍या भाजपा इस ट्रेंड को जारी रखेगी? दरअसल, हरियाणा, मध्‍य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश को लेकर भी राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. बता दें कि हिमाचल में गुजरात के साथ ही वर्ष 2022 के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. वहीं, मध्‍य प्रदेश में वर्ष 2023 के अंत में इलेक्‍शन होंगे. बता दें कि उत्‍तराखंड में त्रिवेंद्र रावत और असम में सर्बानंद सोनोवाल को भी इसी रणनीति के तहत किनारे किया गया.

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