UP पुलिस को SC की कड़ी फटकार! 5 लाख का जुर्माना भी.. जेल अधीक्षक तलब, DIG की भी पेशी, कैदी से जुड़ा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की उस लापरवाही को कड़ी फटकार लगाई है, जिसमें एक आरोपी को सुप्रीम कोर्ट से बेल मिलते हुए भी 28 दिन तक गाजियाबाद जेल में रखा गया। न्यायालय ने इसे तकनीकी भूल का गलत इस्तेमाल बताते हुए, राज्य सरकार को ₹5 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया है।

बेल के बाद भी 28 दिन जेल में

आरोपी को सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल को बेल दी थी।

इसके बाद 27 मई को अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायाधीश ने रिहाई आदेश जारी किया।

फिर भी आरोपी को अंततः 24 जून को ही जेल से छोड़ा गया। यानी 28 दिनों तक जेल में रखने के पीछे कोई ठोस कारण नहीं था ।

क्या थी देरी की वजह?

सुप्रीम कोर्ट ने जेल अधिकारियों को फटकार लगाई कि बेल ऑर्डर में एक उपधारा का जिक्र कम था—लेकिन तब भी आरोपी की पहचान, अपराध और धाराएं स्पष्ट थीं।
न्यायाधीशों ने कहा: “व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बेकार की तकनीकी त्रुटियों और अप्रासंगिक भूलों की वजह से नहीं छीना जा सकता।”
यह स्पष्ट संकेत है कि इससे आरोपी की मौलिक अधिकार—आर्टिकल 21—का उल्लंघन हुआ।

SC का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सीधे DG (Prisons) को वर्चुअल माध्यम से उपस्थित रहने के लिए बुलाया।

जेल अधीक्षक से कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने की मांग की गई।

कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को Article 21 के महत्व और बेल आदेशों के प्रति संवेदनशील बनाना होगा ।

दोषियों पर होगी व्यक्तिगत कार्रवाई

सुप्रीम कोर्ट ने घोर लापरवाही के संकेत देखते हुए गैजियाबाद के प्रिंसिपल जिला एवं सत्र न्यायाधीश को इस देरी की जांच सौंप दी।

यदि व्यक्तिगत जिम्मेदारी पाई गई, तो मुआवजा उस अधिकारी से पर्सनल वसूलने का भी आदेश दिया गया ।

अगली सुनवाई 18 अगस्त को तय की गई है।
इस आदेश से सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि बेल नागरिक का मौलिक हक है, और उसकी इज़ाजत किसी तकनीकी भूल के बहाने रोकी नहीं जा सकती।
यह घटना न केवल यूपी सरकार की प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि जेल अधिकारियों के जिम्मेदारी और अनुशासन की अहमियत पर भी सवाल उठाती है। अब जिम्मेदारी तय होगी और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी कदम सख्ती से उठाए जाएंगे।

 

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