अनेकता में एकता का समागम है संगम : राजेन्द्र पालीवाल

प्रयागराज, पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित हो रही सरस्वती के संगम को अनेकता में एकता का समागम कहना अतिशियोक्त नहीं होगा।


संगम के माघ मेला में विभिन्न भाषा,वेश भूषा एवं आचार व्यवहार के बावजूद बड़े प्रेम से के साथ एक दूसरे के साथ अलग अलग तीर्थपुरोहितों के शिविर में निवास करते हैं। संगम की वीस्तीर्ण रेती पर अनोखी दुनियां बसी हुई हो। यहाँ भले ही कोई किसी को नहीं भी जानता और न ही किसी का कोई पहनावा मिलता है, फिर भी सभी एक.दूसरे के साथ मिलजुलकर रहते हैं। इसे लघु भारत भी कह सकते हैं।

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माघ मेला क्षेत्र में भारतीय संस्कृति का आदर्श-वाक्य अनेकता में एकता एवं एकता में अनेकता दोनों है। भारत एवं भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम का भाव रखने वाली संस्कृति है। भारतीय संस्कृति ने न केवल भारत को अपितु समूची धरा को सदैव एक कुटुंब माना है जबकि अन्य देशों ने भारत को केवल बाज़ार माना है।


माघ मेला बसाने वाला प्रयागवाल सभा के महामंत्री एंव तीर्थ पुराेहित राजेन्द्र पालीवाल ने बताया कि भारतीय संस्कृति के उपासकों की महान यात्रा अनादि काल से आरम्भ हुई है। इस संस्कृति में व्यास, वाल्मीकि बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य,रामानुज, ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नानक, कबीर एवं महर्षि अरविन्द जैसी महान विभूतियां हुई जिन्होंने इस संस्कृति को आगे बढ़ाया और समृद्ध बनाया।

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