नेताजी , टूटी टांग और समाजवादी पार्टी की नींव

संतोष पाठक, वरिष्ठ पत्रकार  

बुरी तरह चुनाव हार गए थे , टांग टूट गई थी और अचानक तय कर लिया कि अब दिल्ली से आने वाले फरमानों को नहीं मानेंगे । किसी आलाकमान की नहीं सुनेंगे बल्कि खुद आलाकमान बनेंगे और बना डाली अपनी पार्टी । खड़ी कर ली खुद की पार्टी जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अब वो स्वंय थे। हम बात कर रहे हैं यूपी के ऐसे पूर्व मुख्यमंत्री के बारे में जिन्होने शायद ही कोई राजनीतिक दल छोड़ा हो । हम बात कर रहे हैं ऐसे पूर्व मुख्यमंत्री के बारे में जिनकी शुरूआत राम मनोहर लोहिया के साथ हुई , बाद में चौधरी चरण सिंह को गुरू माना। वक्त बदला तो वी.पी.सिंह के साथ चले गए । राजा मांडा की कुर्सी छिनी तो चंद्रशेखर के साथ हो लिए और फिर भी मन नहीं भरा तो अपनी खुद की पार्टी बना कर उसके सर्वे-सर्वा बन गए।  एक ऐसा नेता जिसने कुश्ती तो सीखी थी अखाड़े के लिए लेकिन दांव-पेंच आजमाने लगे राजनीति के मैदान में …हम बात कर रहे हैं मुलायम सिह यादव की ।

समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव को देश के उन नेताओं में गिना जाता है, जिनकी तरकीब कब पासा पलट दे, कोई अनुमान नहीं लगा पाता. 80 साल के मुलायम सिंह 52 साल से चुनावी राजनीति में हैं।

टूटी टांग के साथ बनाई समाजवादी पार्टी

आज हम आपको बताएंगे वो किस्सा कि कैसे टूटी टांग के साथ मुलायम सिंह यादव ने खड़ी कर दी समाजवादी पार्टी। राम लहर में 1991 में विधानसभा चुनाव हुए और चंद्रशेखर के साथ होने की वजह से मुलायम सिंह यादव को भी करारी हार का सामना करना पड़ा। लोहिया , चरण सिंह , वी.पी. सिंह के साथ रह चुके मुलायम अब तक चंद्रशेखर का साथ छोड़ने का भी मन बना चुके थे लेकिन जाए तो जाए कहां।

उसी दौरान मुलायम सिंह यादव का दाहिना पैर टूट गया था। मुलायम लखनऊ के दारुलशफा के एक कमरे में लेटे हुए थे। दिग्गज समाजवादी नेता मधु लिमये मिलने आए , जाते –जाते नई राजनीतिक पार्टी खुद की राजनीतिक पार्टी की सलाह दे गए । मौके पर मौजूद शिवपाल सिंह यादव और सैफई के प्रधान दर्शन सिंह ने भी मधु लिमये के सुझाव का समर्थन कर दिया। मुलायम समझ नहीं पा रहे थे क्या करे । दो दिन बाद जनेश्वर मिश्र मिलने आये। मुलायम ने पूछा यार जनेश्वर पार्टी बनाने का मन है क्या कहते हो । जनेश्वर ने कहा देरी क्यों कर रहे हैं। उसके बाद बिस्तर पर लेटे लेटे मुलायम ने ऐसा राजनीतिक अभियान चलाया कि विधानसभा और विधानपरिषद को मिलाकर 39 विधायक चंद्रशेखर की पार्टी को छोड़कर उनके साथ आ गए। 4 अक्टूबर 1992 को मुलायम ने अपनी नई पार्टी का गठन कर लिया । ठीक एक महीने बाद लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में नई पार्टी समाजवादी पार्टी का स्थापना दिवस मनाया गया जिसमें मुलायम सिंह यादव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने , जनेश्वर मिश्र को उपाध्यक्ष , आजम खान को महासचिव और मोहन सिंह को प्रवक्ता बनाया गया। बाद का इतिहास हम सब जानते हैं कि कैसे टूटी टांग के साथ राजनीतिक पार्टी बनाने वाले मुलायम सिंह यादव ने इस देश की राजनीति की धारा को बदल दिया।

नेता और दल बदलते रहे मुलायम – क्या कहता है नेताजी का इतिहास ?

पहलवानी का शौक रखने वाले मुलायम सिंह यादव ने 1954 में ही 15 साल की छोटी उम्र में राजनीतिक अखाड़े में कदम रख दिया था। हालांकि औपचारिक तौर पर मुलायम सिंह यादव 1960 में राजनीति का हिस्सा बने। राम मनोहर लोहिया की शागिर्दी में मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक करियर चुनावी जीत की तरफ बढ़ा और 1967 में पहली बार मुलायम सिंह अपने जिले इटावा की जसवंतनगर सीट से जीतकर विधायक बने। राम मनोहर लोहिया की मृत्यु के बाद मुलायम सिंह यादव ने चौ चरण सिंह को अपना नेता मान लिया।

आपातकाल के दौरान जेल में रहे मुलायम इमरजेंसी खत्म होने के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने। मंत्रालय मिला सहकारिता और पशुपालन । अब तक मुलायम सिंह यादव चौं चरण सिंह के काफी नजदीक आ चुके थे । समय तेजी से भागता जा रहा था । बोफोर्स की आंच ने देशभर में कांग्रेस के खिलाफ एक माहौल बना दिया था । 1989 में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा । केन्द्र में भी और उत्तर प्रदेश में भी । दिल्ली में वी पी सिंह भाजपा के समर्थन से प्रधानमंत्री बने तो उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने भाजपा के ही सहयोग से मुख्यमंत्री की गद्दी संभाली । बिहार में लालू ने आडवाणी को गिरफ्तार किया तो मुसलमानों का मसीहा बनने के लिए मुलायम ने कार सेवकों पर चला दी। भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया। तो चतुर मुलायम चंद्रशेखर के साथ आ गए और कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने रहे। आगे चलकर कांग्रेस ने भी समर्थन वापस लेने का मन बना लिया लेकिन कांग्रेस नेता समर्थन वापसी का पत्र लेकर राजभवन पहुंचते इससे पहले मुलायम ने राज्यपाल को सेट कर विधानसभा भंग करवा दी ।

चुनाव हारे तो आया नई पार्टी का ख्याल

विधानसभा भंग करवा कर मुलायम यह सोच रहे थे कि मुसलमानों के सहयोग से एक बार फिर वो मुख्यमंत्री बन जाएंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं । पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा ने पहली बार प्रदेश में सरकार बनाई और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। यही वो दौर था जब मुलायम हैरान- परेशान थे। चुनावी हार से दुखी मुलायम को लग रहा था कि उनके नेता चंद्रशेखर कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं । इसी बीच मुलायम की टांग भी टूट गई और बिस्तर पर लेटे-लेटे ही मुलायम ने यह सोच लिया , फैसला कर लिया कि वो नई पार्टी बनाएंगे। उसके बाद क्या हुआ यह तो सब जानते हैं।

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