असंतुष्टों को क्यों भाव नहीं दे रही कांग्रेस? जी-23 नेताओं को लेकर यह है पार्टी का स्टैंड

 

पंजाब कांग्रेस के घमासान ने पार्टी के अंसतुष्ट नेताओं को निशाना साधने का एक और मौका दे दिया है। जी-23 के नेता जहां कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाने की मांग कर रहे हैं, वहीं पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता खुद अपने नेताओं की नीयत पर सवाल उठाने लगे हैं। इनका कहना है कि जी-23 को प्रवचन देने के बजाए संकट के वक्त पार्टी का साथ देना चाहिए।

फिलहाल, कांग्रेस जी-23 को लेकर बहुत परेशान नहीं है। पार्टी मानती है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की जाती है, तो इससे उन्हें और अहमियत मिलेगी। पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का मुद्दा उठेगा। ऐसे में वक्त के साथ वह खुद अप्रासंगिक हो जाएगें। क्योंकि, भूपेंद्र सिंह हुड्डा के अलावा जी-23 में ऐसा कोई नेता नहीं है, जो अपने बूते पर चुनाव जीत सके। इसलिए, इन नेताओं के विरोध के बहुत मायने नहीं है।

वहीं, कुछ नेता मानते हैं कि जी-23 के नेता जो मुद्दे उठा रहे हैं, उन पर बात होनी चाहिए। सभी चाहते हैं कि कांग्रेस मजबूत हो, पर सार्वजनिक तौर पर पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बयानबाजी असंतुष्ट नेताओं की मंशा पर संदेह पैदा करती है। जी-23 के ज्यादातर नेता यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे हैं, लेकिन पिछले सात साल में केंद्र सरकार के खिलाफ बहुत मुखर नहीं दिखते। यह भी सवाल पैदा करता है।

 

कांग्रेस के अंसतुष्ट नेताओं को पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखे एक साल से ज्यादा वक्त हो गया है। शुरुआत में पार्टी अध्यक्ष ने उनकी शिकायतों को दूर करने का प्रयास किया, पर जब केरल, असम और पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले असंतुष्ट नेताओं ने कहा कि कांग्रेस कमजोर है, यह सिलसिला भी थम गया। जहां तक अध्यक्ष पद के लिए चुनाव का सवाल है, पार्टी में हमेशा चुनाव होता है। ऐसे में अध्यक्ष पद पर चुनाव की असंतुष्ट नेताओं की मांग बेमानी है।

पार्टी को असंतुष्ट नेताओं से यह भी शिकायत है कि उन्होंने मुश्किल वक्त में साथ देने के बजाए कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ाई हैं। कांग्रेस जी-23 नेताओं के बयानों को लेकर बहुत ज्यादा गंभीर नहीं है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि असंतुष्ट नेताओं को सिर्फ विरोध करने के पार्टी को मजबूत करने की कोशिश करनी चाहिए।

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