अब महिलाएं अदालतों में भी सेफ नहीं..

गंदी नजरों से देखते हैं , फिगर नापते हैं यहां भी सेफ नहीं औरतें

मैं यह लेटर बहुत दुख और निराशा के साथ लिख रही हो इसका मकसद मेरी कहानी बताने के अलावा कुछ नहीं है | मैं अपने गार्जियन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से विनती करती हूं कि मुझे अपनी जिंदगी खत्म करने की अनुमति दे मुझे कोर्ट में अपमानित किया गया बार-बार सेक्सुअल हैरेसमेंट किया गया | ऐसा बर्ताव किया जैसे मैं एक कूड़ा कचरा हूं| मैं दूसरों को इंसाफ दिलाता हूं मगर मेरे बारे में कौन सोचेगा|’

 

यह लाइन अप के बंदगी एक सिविल जज महिला की है| उन्होंने यह लेटर 15 दिसंबर 2023 को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के नाम लिखा था| 31 साल की इस महिला जज ने जिस घटना का इस पत्र में जिक्र किया है वह 7 अक्टूबर 2022 को उनके साथ हुई थी| उसे समय वह बाराबंकी में पोस्टेड थी|

उसे दिन वकीलों की हड़ताल थी, लेकिन सिर्फ महिला जज कम कर रही थी तभी वहां कुछ वकील आए और महिला जज के साथ बदसलूकी करने लगे फिर उन्होंने उसे कमरे की बिजली बंद कर दी और महिला को धमकियां देने लगे| फिर म‌ई 2023 में जज का ट्रांसफर बांदा में कर दिया गया|

यह सिर्फ एक केस नहीं है इसकी तरह न जाने कितनी महिलाएं जज और वकील वह भी इस दौर से गुजर चुकी है पर समाज के डर के कारण वह खुलकर सामने नहीं कह पाती|

जब महिलाएं न्यायालय में ही सुरक्षित नहीं है तो भला महिलाएं खुद को देश के किस कोने में खुद को सुरक्षित समझ सकती है|

हम सिर्फ हमेशा महिलाओं के अधिकारों के बारे में बात करते हैं लेकिन कभी भी यह सुनिश्चित करने की बात नहीं करते कि वह अधिकार उनको मिल भी रहे या नहीं क्या महिलाएं अभी भी सुरक्षित है क्या महिलाएं आज भी खुद को भारत के किसी भी कोने में सुरक्षित महसूस कर करपाती है और इसका सीधा जवाब है नहीं क्योंकि महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं है बच्ची से लेकर बूढ़े तक और अब तो न्याय देने और दिलाने वाली महिलाएं भी सुरक्षित नहीं है|

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