200 साल से ताजिया करता है इस मंदिर को प्रणाम! इसके पीछे का रहस्य आपको कर देगा हैरान..

मध्य प्रदेश के भांडेर (Bhander) कस्बे में हर मुहर्रम के जुलूस में एक अनोखा दृश्य देखने को मिलता है—ताजिये कृष्ण मंदिर के सामने रुककर सलामी देते हैं, और मंदिर पुजारी उन्हें आशीर्वाद देता है। यह वही गंगा-जमुनी तहज़ीब का बेमिसाल नमूना है, जो धर्मों के बीच की दीवारों को मिटा देता है।
करीब दो सदी पुरानी कविता
इस वंदना की शुरुआत 200 साल पहले हुई थी, जब भांडेर के हजारी नामक मुस्लिम परिवार ने चतुभुज कृष्ण मंदिर का निर्माण कराया। तालाब में मिली मूर्ति को फिर से स्थापित करने के लिए उन्होने पांच बीघे जमीन चढ़ाया। तब से शुरू हुई यह सद्भावना, और आज यह परंपरा विश्वास और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन चुकी है।
ताजियाओं की सलामी: एकता का प्रतीक
मुहर्रम की सुबह, जब ताजियेदार कर्बला की ओर बढ़ते हैं, तो भांडेर में सबसे पहले वे कृष्ण मंदिर के गर्भगृह के सामने रुककर सर झुकाते हैं। मंदिर का पुजारी भी उन्हें आशीर्वाद और प्रसाद देता है। कुछ सेकंड का यह अनूठा दृश्य—जैसे सारे मत एक सुर में मिल रहे हों।
मंदिर-मस्जिद में साझेदारी: रक्षा और सौहार्द
यह सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि इस भाव की परंपरा का उदाहरण है जहां मंदिर की देखभाल और सुरक्षा में भी मुस्लिम समुदाय ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। यहां का गंगा-जमुनी तहज़ीब सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं, बल्कि कर्मों में बसी हुई है।
भारतीय विविधता की जीवंततम झलक
भांडेर की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि भारत की सांस्कृतिक विविधता कितनी समृद्ध है। जब तक वे परंपराएँ—जैसे ताजिया-सलामी और मंदिर में आशीर्वाद—ज़िंदा रहेंगी, तब तक हमारे देश की आत्मा में सौहार्द और मानवता भी जिंदा रहेगी।