तिरंगे के खिलाफ बोले महामण्डलेश्वर नरसिंहानंद, कहा- हर घर तिरंगा नहीं भगवा फहराना चाहिए

तिरंगे के खिलाफ बोले महामण्डलेश्वर नरसिंहानंद, कहा- हर घर तिरंगा नहीं भगवा फहराना चाहिए

तिरंगे के खिलाफ बोले महामण्डलेश्वर नरसिंहानंद, कहा- हर घर तिरंगा नहीं भगवा फहराना चाहिए

महाकवि तुलसीदास जी ने कहा है- “निज परिताप द्रवई नवीनता, पर दुख द्रवई संत सुपुनीता” यानी संत का ह्रदय नवनीत (मक्खन) के समान होता है, जिस तरह ताप पाकर मक्खन पिघलता है, वैसे ही दूसरों का दुख देखकर संत का पवित्र मन भी पिघल जाता है।

आज-कल एक गुस्सैल संत बहुत चर्चा में हैं। ये हैं जूना अखाड़ा के महामण्डलेश्वर यति नरसिंहानंद, जो कि मूल रूप से मेरठ के रहने वाले हैं। पढ़े-लिखे भी हैं। मॉस्को से इंजीनियरिंग की। लंदन में कार्य किया। 1997 में भारत लौटे। यहां आकर समाजवादी पार्टी से जुड़ गए, उसकी यूथ लॉबी को ट्रेनिंग दी… और फिर कुछ हिंदू संगठनों से जुड़कर संत हो गए।

फिलहाल वे जूना अखाड़ा से जुड़े होने के साथ गाजियाबाद में दसना देवी मंदिर के महंत भी हैं। अपने केस लड़ने के लिए बड़े वकीलों की भारी-भरकम टीम भी जुटा रखी है। वैसे तो पिछले कुछ सालों में उन्होंने कई विवादित बयान दिए हैं, लेकिन शुक्रवार को हद तो तब हो गई, जब उन्होंने तिरंगे पर भी धावा बोल दिया।

 

नरसिंहानंद का कहना है कि घर-घर तिरंगा नहीं भगवा फहराना चाहिए। केंद्र सरकार जो तिरंगा अभियान चला रही है, इसका लोगों को बहिष्कार करना चाहिए। क्यों? इसके जवाब में कहा कि ये जो तिरंगे बांटे जा रहे हैं, इन्हें बनाने का ठेका बंगाल की एक कंपनी को दिया गया है और इस कंपनी का मालिक मुस्लिम है।

वे यहीं नहीं रुके, उनका कहना है कि मुस्लिमों को इस तरह पैसा देंगे तो वो हिंदुओं के खिलाफ ही इस्तेमाल होगा। इसलिए सरकार गलत कर रही है। भड़काऊ बयान देने को लेकर उनके खिलाफ कई मामले दर्ज हैं। पूर्व में एक बार दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ FIR दर्ज की, तो उन्होंने कहा- दिल्ली पुलिस मुस्लिमों के साथ है।

तिरंगे के लिए ऐसे बोल कोई बोले और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई न हो, ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन फिलहाल तो ऐसा ही हो रहा है। ऐसा लग रहा है, जैसे नरसिंहानंद पूरी तरह से आजाद हैं और जो मन में आ रहा है, बोलते ही जा रहे हैं। नरसिंहानंद पहली बार तब चर्चा में आए थे, जब दसना देवी मंदिर में पानी पी रहे एक मुस्लिम युवक को बुरी तरह से पीटा गया था।

 

आए दिनों नरसिंहानंद टीवी चैनलों में छाए रहते हैं। उनको सब सुनते हैं, कोई कुछ कहता नहीं। इस तरह भड़काऊ भाषण देना, किसी के भी खिलाफ बोलना, संतों को शोभा नहीं देता। संत तो सरल और सहज होते हैं। नरसिंहानंद की ये कैसी सरलता है?

वे भविष्यवाणी भी करते हैं। कहते हैं- हिंदुओं मर्द बनो, वर्ना मारे जाओगे। सवाल हिंदू या मुस्लिम का नहीं है। संत तो प्राणी मात्र के लिए सह्रदय होता है, जो होना भी चाहिए। यही सब करना था, आप संत ही क्यों बने? कट्टरवादी हो जाते, जो कि आप असल में हैं।

खैर विचार किसी के भी हो सकते हैं, लेकिन अतिवाद ठीक नहीं है। अगर आपको एक व्यवस्था के साथ रहना है तो आप लोगों में वैमनस्यता फैलाने के ठेकेदार नहीं बन सकते।

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