मोदी के मुसलमान वोटर तैयार, लो हो गया चमत्कार!

वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह

पांच साल पहले तक कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि मायावती की दलित जाति के लोग उनके खिलाफ जा सकते हैं और बीजेपी को वोट दे सकते हैं .लेकिन 2019 के चुनावों में उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में छिटपुट ही सही लेकिन जाटव जाति के दलितों ने नरेंद्र मोदी की पार्टी को वोट दिया . दलितों समेत बाकी जातियों को अपनी तरफ खींचने का काम नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद ही शुरू कर दिया था .लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसा हो पायेगा लेकिन इज्ज़त घर, रसोई गैस की योजना उज्ज्वला, प्रधानमंत्री आवास ,ज्योति आदि योजनाओं के कारण गरीब आदमियों के वोट 2019 में नरेंद्र मोदी को मिले हैं ,यह बात अब सभी मान रहे हैं . अब मुसलमानों की बारी है. 2019 में दोबारा प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों को अपनी तरफ करने की कोशिश के मंसूबे का ऐलान कर दिया है . उन्होंने घोषित किया है कि मुसलमानों के बच्चों के लिए पांच करोड़ वजीफे दिए जायेंगे . इस खबर को बहुत ही प्रमुखता से अखबारों ने छापा और टीवी चैनलों ने इस विषय पर बाकायदा बहस का आयोजन किया . नतीजा साफ़ है . यह कार्यक्रम भी अब नरेंद्र मोदी का प्रोजेक्ट माना जाएगा . एक सांस में तीन बार ‘ तलाक़’ लफ्ज बोलकर तलाक़ देने के रिवाज़ को सरकार पहले ही विवाद का मुद्दा बना चुकी है . जिसके कारण कुछ इलाकों में मुस्लिम महिलाओं ने नरेंद्र मोदी को 2019 में वोट दिया . अब गरीब मुसलमानों के बच्चों को वजीफा देकर परिवारों को भी अपनी तरफ खींचने की योजना शुरू कर दी गयी है . जिस तरह से रसोई गैस की उज्ज्वला योजना को लागू करने के लिए पेट्रोलियम मंत्री ,धर्मेन्द्र प्रधान को आगे किया गया था, उसी तरह से मुसलमानों को बीजेपी की तरफ खींचने के लिए अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री , मुख्तार अब्बास नकवी को आगे किया गया है . मुख्तार अब्बास नकवी बीजेपी के पुराने नेता हैं, और प्रधानमंत्री के विश्वासपात्र माने जाते हैं .उन्होंने इस काम को पूरी गंभीरता से करना शुरू कर दिया है . सरकार के पक्षधर अखबार और चैनलों से हटकर निष्पक्ष अखबारों और पत्रकारों से बात कर रहे हैं और मुसलमानों और बीजेपी के बीच की खाईं को पाटने की कोशिश कर रहे हैं .

मुसलमानों को अपने साथ लेने के इरादे से ही प्रधानमंत्री ने अपने पुराने नारे , ” सबका साथ सबका विकास ” में अब ” सबका विश्वास ” भी जोड़ दिया है . मुसलमानों के प्रति सकारात्मकता की यह मुहिम इसी सिलसिले की कड़ी के रूप में देखी जानी चाहिए .मुसलमानों के बच्च्चों को छात्रवृत्ति देने की योजना मूल रूप से तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने बनाई थी . सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद इस मुद्दे पर बड़े पैमाने पर काम शुरू हुआ था लेकिन केंद्र सरकार के अफसर इस मामले में बिलकुल गंभीर नहीं थे . के रहमान खान विभागीय मंत्री थे . उन्होंने इस दिशा में गंभीर काम किया लेकिन पार्टी और नौकरशाही का सहयोग नहीं मिला. राज्य सरकारों ने भी मुसलिम छात्रों के वजीफे को कामचलाऊ तरीके से लिया और योजना लगभग फेल हो गयी . इस मामले में पार्लियामेंट की एक कमेटी की रिपोर्ट भी आई थी जिसमें सारी कमियों को रेखांकित किया गया था . इस रिपोर्ट में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के काम काज की धज्ज़ियाँ उडाई गयी थीं . सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता से सम्बंधित संसदीय कमेटी ने अल्पसंख्यकों के लिए किये जा रहे काम में सम्बंधित मंत्रालय को गाफिल पाया था. संसदीय समिति की बीसवीं रिपोर्ट में लिखा है कि सरकार ने मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के लिए बजट में मिली हुई रक़म का सही इस्तेमाल नहीं किया और पैसे वापस भी करने पड़े. कमेटी की रिपोर्ट में लिखा गया है कि कमेटी इस बात से बहुत नाराज़ है कि 2010-11 साल में अल्पसंख्यक मंत्रालय ने 587.70 करोड़ की वह रक़म लौटा दी जो घनी अल्पसंख्यक आबादी के विकास के लिए मिले थे. हद तो तब हो गयी जब मुस्लिम बच्चों के वजीफे के लिए मिली हुई रक़म वापस कर दी गयी. यह रक़म संसद ने दी थी और सरकार ने इसे इसलिए वापस कर दिया कि वह इन स्कीमों के लिए ज़रूरी लाभार्थी नहीं तलाश पायी. यह सरकारी बाबूतंत्र की असफलता थी. प्री मैट्रिक वजीफों के मद में मिले हुए धन में से 33 करोड़ रूपये वापस कर दिए गए , मेरिट वजीफों के लिए मिली हुई रक़म में से २४ करोड़ रूपये वापस कर दिए गए और पोस्ट मैट्रिक वजीफों के लिए मिली हुई रक़म में से 24 करोड़ रूपये वापस कर दिए गए .जब यह बात सरकार के सामने रखी गयी तो सरकारी अफसरों का कहना था कि उनके पास अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों से प्रस्ताव नहीं आये इसलिए उन्होंने संसद से मिली रक़म का सही इस्तेमाल नहीं किया . संसद की स्थायी समिति ने इस बात पर सख्त नाराज़गी जताई और कहा है कि वजीफों वाली गलती बहुत बड़ी है और उसको दुरुस्त करने के लिए सरकार को काम करना चाहिए . बजट में वजीफों की घोषणा हो जाने के बाद सरकार को चाहिए था कि उसके लिए ज़रूरी प्रचार प्रसार आदि करे जिससे जनता भी अपने जिले या राज्य के अधिकारियों पर दबाव बना सके और अल्पसंख्यकों के विकास के लिए मिली हुई रक़म सही तरीके से इस्तेमाल हो सके. सरकार की तरफ से एक तर्क यह भी दिया गया कि स्टाफ की कमी की वजह से काम नहीं हो पाया था .कमेटी के सदस्य इस बात पर विश्वास करने को तैयार नहीं थे कि अल्पसंख्यक मंत्रालय में काम करने के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं . खाली पड़े पदों के बारे में सरकार के जवाब से कमेटी को सख्त नाराज़गी है .जहाँ उर्दू पढ़े लोगों को कहीं नौकरियाँ नहीं मिल रही हैं , वहीं केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने कमेटी को बताया है कि सहायक निदेशक ( उर्दू ) ,अनुवादक ( उर्दू) और टाइपिस्ट ( उर्दू ) की खाली जगहें नहीं भरी जा सकीं थीं . सरकार की तरफ से बताया गया था कि वे पूरी कोशिश कर रहे हैं कि यह खाली जगह भर दिए जाएँ लेकिन सफल नहीं हो रहे हैं . यह बात कमेटी के सदस्यों के गले नहीं उतरी , सही बात यह है कि सरकार के इस तर्क पर कोई भी विश्वास नहीं करेगा. कमेटी ने सख्ती से कहा है कि जो पद खाली पड़े हैं उनको मीडिया के ज़रिये प्रचारित किया जाए तो देश में उर्दू जानने वालों की इतनी कमी नहीं है कि लोग केंद्र सरकार में नौकरी के लिए मना कर देगें.

कमेटी की रिपोर्ट में लिखा है कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने का फैसला तो सरकार ने कर लिया था लेकिन उसको लागू करने की दिशा में गंभीरता से काम नहीं हुआ .वजीफों के बारे में तो कुछ काम हुआ भी लेकिन सच्चर कमेटी की बाकी सिफारिशों को पूरी तरह टाला गया .सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को अगर सही तरीके से लागू कर दिया गया होता तो अल्पसंख्यक समुदाय का बहुत फायदा हुआ होता . मुसलमानों के कल्याण के लिए तत्कालीन प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन ने 15 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी. इसको लागू करने में भी सरकार का रवैया गैरजिम्मेदार था. . 15 सूत्री कार्यक्रम पर नज़र रखने के लिए कुछ कमेटियां भी बनाई गयी थीं जिनकी बैठक ही नहीं होती थी . संसद की स्थायी समिति ने पाया कि 27 जनवरी 2010 के दिन एक योजना शुरू की गयी थी जिसके तहत अल्पसंख्यक महिलाओं में नेतृत्व क्षमता का विकास किया जाना था . जिस से उन महिलाओं का आत्मविश्वास बढे और वे सरकार के विभागों , बैंकों आदि में जाकर बात चीत कर सकें.यह काम गैरसरकारी संगठनों के ज़रिये होना था .इस मद में 2009-10 में 8 करोड़ और 2010-11में 15 करोड़ रूपये का प्रावधान भी किया गया था .इस परर भी कुछ नहीं हुआ. कमेटी ने इस बात पर भी नाराजगी जताई . जब सरकार से जवाब माँगा गया तो उनका जवाब बिलकुल टालू था . उनका कहना था कि उनको ऐसे संगठन ही नहीं मिले जिनके ज़रिये यह काम करवाया जा सके. कमेटी के सदस्यों

ने अफ़सोस ज़ाहिर किया कि अल्पसंख्यक मंत्रालय काम काम एक बहुत ही काबिल मंत्री , के रहमान खान को को दिया गया था लेकिन फिर भी नौकरशाही ने अपना काम सही ढंग से नहीं किया .

गौर करने की बात यह है कि अगर यू पी ए सरकार ने डॉ मनमोहन सिंह की योजनाओं को लागू किया होता तो मुसलमानों की हालत में कुछ बदलाव नज़र आने लगे होते और कांग्रेस पार्टी की वह दुर्दशा न हुई होती जो 2014 और 2019 में हुई है . डॉ मनमोहन सिंह की योजनाओं में से पांच करोड़ वजीफे वाली बात केवल एक योजना है .नरेंद्र मोदी और उनके मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी इसको गंभीरता से लागू करने की कोशिश कर रहे हैं . इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि मुसलमानों के मन में इन योजनाओं के लागू होने के बाद बीजेपी और नरेंद्र मोदी के प्रति नरमी आयेगी .

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