शर्मनाक! 13 साल की मासूम चलती ट्रेन में बनी माँ, जब बाप का नाम खुला तो कांप उठी रूह.. यकीन करना मुश्किल

मुरादाबाद की समर स्पेशल ट्रेन के कोच में एक बैग से अचानक मिले नवजात के रोने की आवाज़ ने जो सनसनी मचाई, वह पर्दे के पीछे छुपे मानवता विहीन अपराध की एक और दास्तान है।

दुखद घटनाक्रम का खुलासा – ट्रेन में मिली मासूम की चिल्लाहट

22 जून की रात बरेली स्टेशन पास ट्रेन के एक कोच में रखा बैग अचानक हिलने लगा और उस अंदर से एक नवजात की चिल्लाहट सुनाई दी। टीटीई ने तुरंत रेलवे पुलिस को सूचित किया और मुरादाबाद पहुंचते ही बच्ची को चाइल्डलाइन के हवाले कर दिया गया। वहीं, नवजात को जिला अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया था ।

पिता की हवस नहीं छोड़ी मौका – 13‑साल की बेटी से किया दुष्कर्म

जांच में सामने आया कि मां खुद एक नाबालिग है, और जिसने उस नाबालिग को गर्भवती किया, वह उसका खुद का पिता है। एसएनसीयू में भर्ती लड़की महज 13 वर्ष की है, जिसे पिता लगातार शारीरिक शोषण का शिकार बनाता रहा ।

दिल्ली लाने की थी योजना, पर ट्रेन में ही घर हुआ बच्चों जैसा आगमन

परिवार ने नाबालिग को दिल्ली लेकर जाने और सुरक्षित अस्पताल में प्रसव कराने की योजना बनाई थी, पर निराशाजनक रूप से ट्रेन के शौचालय में ही दर्दनाक प्रसव हो गया। इसके बाद, पिता और अन्य परिजन ने नवजात को बैग में बंद कर ट्रेन में छोड़ दिया।

नाबालिग की ममता मौत के कगार पर: “मैं उसे नहीं रख सकती”

बाल कल्याण समिति की बैठक में नाबालिग ने स्पष्ट रूप से लिखित रूप से कहा कि वह बच्चे को स्वीकार नहीं कर सकती। समिति अध्यक्ष अमित कौशल ने बताया कि यह त्याग-पत्र लिखित रूप में प्राप्त हुआ है ।

समिति अगले दो महीने तक बच्चे का स्वास्थ्य व मूल्यांकन करेगी, उसके बाद उसे लीगल फ्री घोषित कर गोद लेने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

पुलिस का सामना: दुष्कर्मी पिता अभी फरार

रेलवे पुलिस की जांच में खुलासा हुआ है कि पिता बिहार के छपरा जिले से है, जहाँ वह एक दिहाड़ी मजदूर है और शराब का आदि भी बताया गया है। उसकी लोकेशन ट्रैक करने के लिए मोबाइल सिम-कार्ड की सहायता ली गई, पर अब तक वह फरार है।

पुलिस गांव में सन्नाटा देख रही है और आधिकारिक रूप से दर्ज की गई जानकारी में कई हिस्से गोपनीय रखे गए हैं क्योंकि मामला नाबालिग यौन शोषण का है।

सामाजिक और कानूनी विमर्श

इस घटना से समाज में विकसित ममता-भेद की दुर्गति सामने आती है: एक मासूम बच्ची, खुद शोषण की शिकार बनकर माँ बनी, पर अब बच्चे को रखने लायक न बची ताकत।

इसके अलावा, कानून द्वारा POCSO एक्ट और बाल कल्याण नियमों की समयबद्ध कार्यवाही की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही भारतीय रेलवे और चाइल्डलाइन जैसी संस्थाओं की सतर्कता और जिम्मेदारी पर भी सवाल उठते हैं।

मानवता की शर्मनाक विफलता और जरूरी कदम

यह दर्दनाक मामला निर्देशित करता है कि कैसे लापरवाहता, सामाजिक लाज और कानूनी प्रक्रिया की धीमी गति से एक मासूम जीवन किस प्रकार बर्बाद हो सकता है। आवश्यक है कि संबंधित अधिकारी तीव्रता से आरोपी को पकड़ें, पीड़ित को सुरक्षा प्रदान करें, और बच्चे को जल्द से जल्द स्थायी संरक्षण स्थल तक पहुंचाया जाए – ताकि भविष्य में मानव मनुष्यता की ऐसे मामलों पर रोक लगाई जा सके।

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