पहली बार बादलों में मिला माइक्रोप्लास्टिक, शोधकर्ताओं ने बजाई चेतावनी की घंटी।

जापानी शोधकर्ताओं ने एक शोध में बड़ा खुलासा करते हुए बताया है कि माइक्रोप्लास्टिक्स ने अंततः बादलों  तक अपना रास्ता खोज लिया है। शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि इसका समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु परिवर्तन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

उन्‍होंने कहा है कि ये बड़ी चेतावनी है और तुरंत प्‍लास्टिक को लेकर कड़े कदम उठाने होंगे वरना आने वाले समय में इसे रोका नहीं जा सकेगा। ये मानव शरीर और वातावरण के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं।

वासेदा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हिरोशी ओकोची और अन्य के नेतृत्व में रिसर्च टीम ने बादलों से एकत्र किए गए पानी के  नमूनों की जांच की। विश्लेषकों ने पाया कि पानी में माइक्रोप्लास्टिक के कम से कम 70 कण थे इसे कानागावा प्रान्त में योकोहामा के पश्चिम में माउंट फ़ूजी के शिखर और तलहटी और माउंट तंजावा-ओयामा के शिखर पर पहाड़ों से जमा किया गया था। इस टीम ने अपने शोध पत्र में लिखा है कि हमारी सर्वोत्तम जानकारी के अनुसार, यह बादल के पानी में वायुजनित माइक्रोप्लास्टिक्स पर पहली रिपोर्ट है।

माइक्रोप्लास्टिक क्या हैं?माइक्रोप्लास्टिक्स,दरअसल प्लास्टिक के ऐसे कण होते हैं जिनका आकार 5 मिलीमीटर से कम होता है।वे विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न होते हैं, जिनमें औद्योगिक अपशिष्ट, कपड़ा, सिंथेटिक कार टायर समेत बहुत कुछ शामिल हैं। ये सूक्ष्म कण समुद्र के सबसे गहरे हिस्सों में मछलियों के अंदर पाए गए हैं, जो पूरे आर्कटिक समुद्री बर्फ में बिखरे हुए हैं. वहीं, फ्रांस और स्पेन के बीच फैले पायरेनीज़ पहाड़ों में बर्फ को ढकते हैं। हालाँकि, माइक्रोप्लास्टिक को लेकर बहुत कम रिसर्च हुई हैं और इसके बारे में कम जानकारी है कि आखिर ये बादलों तक कैसे पहुंच गई?

बादलों से मिले नमूनों में कार्बोनिल और हाइड्रॉक्सिल जैसे माइक्रोप्लास्टिक्स बेहद आम थे जो पानी को आकर्षित करने की विशेषता रखते हैं। इसका मतलब है कि उन्होंने बादल, बर्फ और पानी की बूंदों के निर्माण में भूमिका निभाई होगी। रिसर्च से पता चलता है कि बहुत ज्यादा ऊंचाई पर मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स न केवल बादलों के निर्माण को प्रभावित कर सकते हैं, बल्कि साथ ही यह जलवायु पर भी असर डाल सकते हैं।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि एक बार प्लास्टिक के महीन कण जब ऊपरी वायुमंडल में पहुंचते हैं, तो सूर्य के पराबैंगनी विकिरण के संपर्क में आने से टूटने लगते हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न होती हैं, जो जलवायु में आते बदलावों को तेज कर सकती हैं।

ऐसे में इस बढ़ते खतरे के बारे में वासेदा विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता हिरोशी ओकोची का कहना है कि, “अगर ‘प्लास्टिक प्रदूषण’ के इस मुद्दे को सही तरीके से न निपटा गया, तो वो पारिस्थितिकी के साथ-साथ जलवायु संबंधी खतरों को जन्म दे सकते हैं।“उनके मुताबिक इस भविष्य में पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो सकता है, जिसे किसी भी तरह पलटा नहीं जा सकेगा।

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