ममता के नंदीग्राम से चुनाव लड़ने के क्या हैं मायने, चार प्वाइंट्स में समझें

नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को नंदीग्राम में एक चुनावी रैली के दौरान नंदीग्राम से अगला चुनाव लड़ने का ऐलान कर अपने विरोधियों को हैरान कर दिया। यह वही नंदीग्राम है जहां खड़े हुए आंदोलन ने तृणमूल को पश्चिम बंगाल से वामपंथी सरकार को उखाड़ फेंकने की ताकत दी थी।

यहां से पार्टी के कद्दावर नेता सुवेंदु अधिकारी कुछ दिन पहले ही तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। भाजपा के इस दांव को सीधी चुनौती देने के लिए ममता बनर्जी खुद इस बार नंदीग्राम से चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है। इस फैसले के पीछे चार महत्वपूर्ण कारण माने जा रहे हैं। के पीछे ममता बनर्जी की काफी सोची समझी रणनीति मानी जा रही है।

सुवेंदु अधिकारी को नंदीग्राम तक सीमित रखना

यद्यपि भाजपा ने अभी तक पश्चिम बंगाल में अपने मुख्यमंत्री पद के दावेदार के नाम की घोषणा नहीं की है और न ही इसकी संभावना है। इसका एक प्रमुख कारण है कि भाजपा के पास ममता बनर्जी जैसा कोई कद्दावर चेहरा नहीं है। दक्षिण बंगाल में भाजपा तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक अपनी जड़े नहीं जमा पाई थी अब सुवेंदु अधिकारी को पार्टी में शामिल कर वह यहां अपना आधार बढ़ाना चाहती है।

सुवेंदु का इस क्षेत्र में काफी प्रभाव माना जाता है। नंदीग्राम से ममता के चुनाव लडऩे की घोषणा के पीछे तृणमूल का मकसद है कि सुवेंदु को खुद अपनी सीट बचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा कोशिश करनी पड़े। इस तरह वे अन्य सीटों पर ज्यादा समय न दे सकेंगे और तृणमूल खुद को नुकसान से बचा पाएगी।

हिंदुओं का ध्रुवीकरण से रोकना

ममता बनर्जी के इस क्षेत्र में चुनाव लड़ने का एक असर यह भी होगा कि भाजपा हिंदू वोटरों को अपने पक्ष में एकतरफा ध्रुवीकरण नहीं करा पाएगी। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 27 फीसद है जबकि पूर्वा जिला जहां नंदीग्राम विधानसभा है में केवल 14 फीसद मुस्लिम मतदाता है।

नंदीग्राम के ग्रामीण इलाके की तुलना में शहर में मुस्लिमों की आबादी अधिक है। अभी तक तृणमूल कांग्रेस इस सीट से मुस्लिम प्रत्याशी खड़े करती रही है। लेकिन इस बार खुद उनके खड़े होने से भाजपा को केवल नंदीग्राम ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र हिंदू मुस्लिम कार्ड खेलने का अवसर नहीं मिलेगा।

भाबनीपुर में ममता को मिल सकती है कड़ी चुनौती

यह भी माना जा रहा है कि भाबनीपुर विधानसभा जहां से ममता बनर्जी चुनाव जीती है। इस बार यह सीट ममता बनर्जी के लिए सुरक्षित सीट नहीं मानी जा रही है। उन्हें वहां कड़ी टक्कर मिलने की संभावना है। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा भले ही तीसरे स्थान पर रही थी लेकिन उसने इस अंतराल में अपनी पकड़ मजबूत की है।

वाम दलों पर रहेगा दबाव

नंदीग्राम में जनसंहार व आंदोलन के पीछे छिपी वामपंथी दलों की हार एक बार फिर से इस क्षेत्र के चुनावी चर्चा में आने से उन्हें दबाव में ला सकती है। वर्ष 2014 में पुलिस फायरिंग में यहां 14 लोग मारे गये थे जिसके बाद ममता बनर्जी ने विपक्षी दल के रूप में ऐसा आंदोलन खड़ा कर दिया था कि पश्चिम बंगाल में दशकों से राज कर रही वामपंथियों की सरकार को जाना पड़ा तथा अभी तक उन्हें फिर से सत्ता में लौटने का अवसर नहीं मिला। एक बार फिर से चुनावी मुद्दे के रूप में नंदीग्राम की चर्चा से तृणमूल कांग्रेस को अपने वोट आधार को मजबूती मिल सकती है।

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