आप भी उड़ा सकेंगे 250 ग्राम से हल्का ड्रोन, रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं;

ड्रोन आने वाले हैं। दवाओं और सामान की डिलीवरी से लेकर हाईवे बनाने, रेलवे लाइन बिछाने के सर्वे में मदद करेंगे। यह बात हम कितने ही साल से सुन रहे थे। पर अब यह हकीकत बनने वाली है। पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने ड्रोन रूल्स 2021 जारी किए हैं। इन पर 5 अगस्त तक सुझाव मांगे हैं। नए रूल्स में 250 ग्राम तक के नैनो ड्रोन्स को रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे बड़े ड्रोन्स के लिए आसमान में तीन जोन बनेंगे।

केंद्रीय सिविल एविएशन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने नई पॉलिसी की विशेषताओं को सोशल मीडिया पर शेयर किया है। दावा किया है कि दुनियाभर में ड्रोन की वजह से अगली बिग टेक क्रांति आने वाली है। भारत में भी स्टार्टअप्स इस नई लहर पर सवार हो सकेंगे और कम लागत, संसाधनों और समय में ऑपरेशन पूरा कर सकेंगे।

ड्रोन पॉलिसी क्या है? ड्रोन से क्या होगा? कहां उड़ेंगे और कैसे? यह सब जानने के लिए हमने पॉलिसी स्टडी की। आसान शब्दों में इस पॉलिसी से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों को पेश करने के लिए अल्टरनेट ग्लोबल इंडिया (AGI) के मैनेजिंग पार्टनर अंकित कुमार से बात की। आइए उनके शब्दों में समझते हैं कि ड्राफ्ट ड्रोन रूल्स 2021 आने वाले समय में क्या और कैसे बदलने वाले हैं…

नई ड्रोन पॉलिसी में इतनी देर कैसे हो गई?

27 जून को जम्मू एयरबेस पर ड्रोन से हमला हुआ। इस तरह के हमले का डर ही था, जो हमारे यहां ड्रोन पॉलिसी अटकी पड़ी थी। 2014 में तो दुरुपयोग के डर से रेगुलेशन लाने के बजाय ड्रोन पर पॉलिसी लेवल का बैन लग गया था। पर ड्रोन का अवैध प्राइवेट इम्पोर्ट और दुरुपयोग बढ़ा और 2018 तक 5-6 लाख ड्रोन गैरकानूनी तरीके से भारत आ गए।2018 में सरकार ने ड्रोन के लिए पहली बार रेगुलेशन की कोशिश की। ड्रोन को रजिस्टर किया जाने लगा। पर पॉलिसी लेवल पर ठोस उपाय नहीं थे। इस वजह से 12 मार्च 2021 को ड्रोन रूल्स 2021 जारी हुए। यह नियम इंडस्ट्री और अन्य स्टेकहोल्डर्स को पसंद नहीं आए। इस वजह से बात बनी नहीं। इस बीच तेलंगाना और कर्नाटक में ड्रोन से दवाओं और अन्य सामान की डिलीवरी के लिए अलग-अलग ट्रायल्स भी शुरू हो गए।इस देरी की वजह से ग्लोबल ड्रोन मार्केट में भारत काफी पीछे छूट गया है। अब इसने रफ्तार पकड़ी तो 2025-26 तक यह 13 हजार करोड़ रुपए (1.8 बिलियन डॉलर) तक पहुंच जाएगा। यानी 14.61% की सालाना रफ्तार पकड़ेगा। पर वर्ल्ड मार्केट में सिर्फ 3% ही रहेगा, जो 4.75 लाख करोड़ रुपए (63.6 बिलियन डॉलर) तक पहुंच चुका होगा। अर्नेस्ट एंड यंग के एक आकलन के मुताबिक 2030 तक भारत का ड्रोन बाजार 3 लाख करोड़ रुपए का हो जाएगा।

नई पॉलिसी में ड्रोन के लिए क्या है व्यवस्था?

नई पॉलिसी में ड्रोन भी किसी गाड़ी की ही तरह है। डिजिटल स्काय प्लेटफॉर्म बन रहा है, जो ड्रोन के रजिस्ट्रेशन, यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर (UIN) जारी करने और रुट तय करने का काम करेगा। यह व्यवस्था बिल्कुल RTO जैसी है, जो आपकी गाड़ी का नंबर जारी करता है। उसको परमिट जारी करता है। साथ ही सड़कों का रुट भी जारी करता है।डिजिटल स्काय प्लेटफॉर्म ही ड्रोन टेक्नोलॉजी फ्रेमवर्क, जैसे कि NPNT (नो परमिशन, नो टेक-ऑफ), फ्लाइट परमिशन डिजिटल देगा और ड्रोन के ऑपरेशन व ट्रैफिक को प्रभावी तरीके से मैनेज करेगा। RTO के साथ-साथ इस प्लेटफॉर्म की जिम्मेदारी ट्रैफिक पुलिस की भी होगी।कई अप्रूवल्स खत्म कर दिए गए हैं। फॉर्म भी 25 से घटाकर 5 कर दिए गए हैं। ड्रोन के कवरेज को 300 किलो से बढ़ाकर 500 किलो किया गया है। फी कई स्तरों पर घटाई गई है। बुनियादी नियमों के उल्लंघन पर 1 लाख रुपए तक दंड रखा गया है। रजिस्ट्रेशन या लाइसेंस जारी करने से पहले किसी तरह का सिक्योरिटी क्लियरेंस भी नहीं लगेगा।इंडियन रेलवे, नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया समेत कई अन्य प्राइवेट कंपनियां भी ड्रोन के कॉमर्शियल इस्तेमाल पर पायलट प्रोजेक्ट चला रही हैं। ड्रोन पॉलिसी लागू करने के लिए सरकार को जो डेटा चाहिए, उसके लिए ये प्रोजेक्ट उसकी मदद करेंगे।

डिजिटल स्काय प्लेटफॉर्म कैसे काम करेगा?

यह प्लेटफॉर्म यूजर्स के लिए एविएशन रेगुलेटर DGCA के यूनिफाइड प्लेटफॉर्म के तौर पर काम करेगा। अनिवार्य रजिस्ट्रेशन नंबर और रिमोट पायलट लाइसेंस यहीं से जारी होंगे। मैन्युफैक्चरर्स और इम्पोर्टर्स को ड्रोन का यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर हासिल करना होगा।नई पॉलिसी में ड्रोन का ट्रांसफर और डी-रजिस्ट्रेशन आसान हो गया है। यानी किसी को अपना पुराना ड्रोन बेचना है तो ट्रांसफर आसानी से हो जाएगा। इसी तरह अगर ड्रोन बेकार हो चुका है तो उसे डी-रजिस्टर किया जा सकेगा।माइक्रो ड्रोन (गैर-व्यापारिक कार्यों के लिए) चलाने के लिए पायलट लाइसेंस नहीं लगेगा। इसी तरह नैनो ड्रोन और रिसर्च व डेवलपमेंट के लिए भी पायलट लाइसेंस नहीं लगेगा। इसकी निगरानी भी डिजिटल स्काय प्लेटफॉर्म से ही होगी।

ड्रोन का रूट कैसे तय होगा?

डिजिटल स्काय प्लेटफॉर्म पर ग्रीन, यलो और रेड जोन के साथ इंटरेक्टिव एयरस्पेस मैप बनेगा। यानी भारत का आसमान तीन जोन में बंटेगा। ग्रीन जोन जमीन से 400 फीट ऊपर होगा, यलो जोन 200 फीट ऊपर और इसके साथ-साथ रेड (नो-गो एरिया) जोन भी बनेंगे।यलो और रेड जोन में ड्रोन उड़ाने के लिए पायलट को एयर ट्रैफिक कंट्रोल अथॉरिटी और अन्य संस्थाओं से परमिशन की जरूरत पड़ सकती है। यलो जोन का दायरा एयरपोर्ट से 45 किमी दूर तक रखा था, जिसे घटाकर 12 किमी किया गया है। ग्रीन जोन में फ्लाइट के लिए परमिशन नहीं लगेगी।

ड्रोन रूल्स को लेकर बाजार इतना उत्साहित क्यों है?

नए रूल्स सेल्फ-सर्टिफिकेशन पर आधारित हैं। यानी ड्रोन से जुड़ी हर तरह की जिम्मेदारी उसके मालिकों की रहेगी। सरकार का हस्तक्षेप कम से कम रहेगा। प्रक्रिया आसान है ताकि कारोबार करना आसान हो सके। फॉर्म्स की संख्या और जुर्माने को घटाना इसी कड़ी में अहम पहल है।इन रूल्स से कंपनियों, स्टार्टअप्स और लोगों के लिए ड्रोन खरीदना और ऑपरेट करना आसान होगा। ड्रोन मेकर्स, ड्रोन इम्पोर्टर्स, यूजर्स और ऑपरेटर्स के लिए सर्टिफिकेशन आसान है। रूल्स में सेल्फ-रेगुलेशन पर जोर दिया गया है और भरोसे का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है। नई पॉलिसी ड्रोन टैक्सी की राह भी खोलेगी। कार्गो सर्विस डिलीवरी के लिए डेडिकेटेड कॉरिडोर बनाएगी।केंद्र सरकार को उम्मीद है कि नए नियम ड्रोन की बिक्री बढ़ाएंगे। भारत ड्रोन का एक बड़ा मार्केट बनकर उभरेगा। ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया ने भी कहा है कि ड्रोन रूल्स आने वाले वर्षों में देश के ड्रोन मार्केट को तेजी से आगे बढ़ने में मदद करेंगे।

ड्रोन पॉलिसी लागू कब होगी?

फिलहाल कहना मुश्किल है। केंद्र सरकार ने मार्च में ड्रोन रूल्स 2021 जारी किए थे, जो 12 मार्च को आए। पर इंडस्ट्री समेत स्टेकहोल्डर्स की आपत्तियों के बाद इसमें बड़े स्तर पर बदलाव किए गए हैं। केंद्र ने एयरक्राफ्ट एक्ट 1934 के तहत ड्रोन पॉलिसी को दोबारा ड्राफ्ट किया है। इस ड्राफ्ट पर 5 अगस्त तक सुझाव और आपत्तियां मांगी गई हैं।आपके पास कोई सुझाव और आपत्तियां हैं तो आप उन्हें कामेश्वर मिश्रा, सिविल एविएशन मिनिस्ट्री, बी ब्लॉक, राजीव गांधी भवन, नई दिल्ली 110003 या [email protected] पर भेज सकते हैं। सब्जेक्ट लाइन में लिखना होगा- “Suggestions for draft Drone Rules, 2021” और यह 5 अगस्त से पहले करना होगा।

ड्रोन रूल्स में किस तरह की चुनौतियां सामने आएंगी?

भारत ड्रोन का ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनना चाहता है तो कॉमर्शियल ड्रोन ऑपरेट करने की अनुमति की टाइमलाइन पर और स्पष्टता चाहिए होगी। नए ड्रोन कॉरिडोर से लेकर ड्रोन प्रमोशन काउंसिल को बनाने की टाइमलाइन नहीं दी गई है।ड्रोन पर टैक्सेशन क्या होगा, इस पर नीतिगत स्पष्टता के लिए इंतजार करना होगा। इंडस्ट्री ने सरकार से कहा है कि विदेशी निवेश को आकर्षित करने और बढ़ावा देने के लिए घरेलू पूंजी, टेक्नोलॉजी और स्किल की जरूरत है ताकि इस क्षेत्र में प्रगति को रफ्तार मिल सके।भारतीय ड्रोन मार्केट के लिए एक और बड़ा मुद्दा है- ड्रोन कम्पोनेंट्स के इम्पोर्ट से जुड़ा हुआ। इस समय कई ड्रोन भारत में इम्पोर्ट या असेंबल हो रहे हैं। उनमें विदेशी कम्पोनेंट्स का इस्तेमाल हो रहा है। ऑटोमोटिव या कंज्यूमर ड्यूरेबल्स की तरह ड्रोन की डोमेस्टिक सप्लाई चेन बनानी होगी।

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