प्रयागराज में मौनी अमावस्या पर “महाेदय योग” में लाखों श्रद्धालुओं ने लगायी आस्था की डुबकी

प्रयागराज , मोक्ष की कामना के साथ श्रद्धालुओं ने पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृष्य सरस्वती के संगम में माघ मेला के तीसरे स्नान पर्व मौनी अमावस्या के अवसर पर 12 बजे तक करीब चार लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में लगाई आस्था की डुबकी।


साधु-महात्मा, संत, कल्पवासी और गृहस्थ, बच्चे, बूढ़े एवं दूर दराज से त्रिवेणी में महादेय योग में श्रद्धालुओं ने तड़के चार बजे से ही डुबकी लगानी शुरू कर दी थी । कई वर्षों के बाद मकर राशि में चंद्रमा, सूर्य, बुध, गुरू, शुक्र एवं शनि छह ग्रहाें के संचरण करने से महोदय नामक योग बना है।


प्राचीन काल से संगम तट पर जुटने वाले माघ मेले में वैश्विक महामारी के बाद भी जीवंतता में कोई कमी नहीं आयी है। मेले में आस्था और श्रद्धा से सराबोर पुरानी परम्पराओं के साथ आधुनिकता के रंगबिरंगे नजारे दिखायी पड रहे हैं। भारतीय संस्कृति और आध्यात्म से प्रभावित कई विदेशी भी इस दौरान पुण्य लाभ के लिए संगम स्नान करते दिखायी पड़े।

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मौनी अमावस्या पर मौन रहकर स्नान करना पुण्यदायी माना गया है। साधु.महात्मा एवं संतों को मौन रहकर स्नान करते देखा गया जबकि गृहस्थ श्रद्धालु एवं कल्पवासी, तीर्थयात्री और सांधु.संतों ने “हर हर गंगे, ऊं नम: शिवाय, श्री राम जयराम जय जय श्रीराम का उद्घोष करते हुए उच्चारण करते हुए डुबकी लगाई।


मेले में विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और विविधताओं का संगम दिखायी पड रहा है। घने कोहरे पर आस्था का विश्वास भारी पड़ रहा है। आठ बजे के बाद मौसम सुहावना होने से श्रद्धालुओं की भीड में इजाफा होता गया। काली सड़क, त्रिवेणी मार्ग आदि पर श्रद्धालुओं का रेला संगम की तरफ बढ़ता जा रहा है।


श्रद्धालु संगम में स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्ध्य दिया। महिलाओं ने गंगा किनारे फूल धूप और दीप से मां गंगा से परिवार के लोगों की मंगल कामना के साथ कोरोना से मुक्ति की प्रार्थना किया। कुछ श्रद्धालुओं ने गंगा मां को दूध भी अर्पण किया। पूजन अर्चन कर गृहस्थों ने स्नान कर घाट पर बैठे पण्डे और पुरोहितों को चावल, आटा, नमक दाल, तिल,चावल और तिल से बने लड्डू आदि का दान किया।

 

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