अब हिजाब नहीं चलेगा! कज़ाखिस्तान समेत इन 3 इस्लामिक देशों ने लगाया चेहरा ढकने पर बैन, जानिए वजह

केंद्रीय एशियाई इस्लामिक-बहुल देश कज़ाखस्तान में हाल ही में स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर चेहरे को ढकने वाले वस्त्रों जैसे हिजाब, निकाब, और बुर्का पर प्रतिबंध लगाने वाला नया कानून लागू किया गया है। यह निर्णय धार्मिक स्वतंत्रता और तात्कालिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की कज़ाख नीति की झलक देता है।

स्कूलों में हिजाब पर बैन – शिक्षा मंत्रालय का आदेश

28 अक्टूबर 2023 को शिक्षा मंत्रालय ने घोषणा की कि स्कूलों में छात्राएं और अध्यापिकाएं अब हिजाब पहनने की अनुमति नहीं रखेंगी  ।
सरकार का तर्क यह है कि हिजाब स्कूल यूनिफॉर्म के अनुकूल नहीं है और इससे धर्म विशेष को बढ़ावा मिलेगा – इसलिए इसे प्रतिबंधित किया गया है ।

कज़ाखिस्तान का धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण और राष्ट्रपति का रुख

राष्ट्रपति कासिम-जॉमार्ट ने जोर देकर कहा है कि कज़ाखिस्तान धर्मनिरपेक्ष देश है और धार्मिक मान्यताएँ निजी स्तर पर आनी चाहिए ।
उन्होंने यह भी कहा कि स्कूल शिक्षा का क्षेत्र है, जहाँ धार्मिक प्रतीकियों का प्रचार-प्रसार डॉक्‍टिना प्रणाली नहीं होना चाहिए ।

विरोधी प्रतिक्रियाएँ – नफरत या असहमति?

अत्रो क्षेत्र में कम से कम 150 छात्राओं ने स्कूल छोड़ दिया क्योंकि वे हिजाब नहीं पहन सकीं ।

अज़ियाई और सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। कुछ ने इसे धर्मनिरपेक्षता का सम्मान बताया, तो कई विरोधियों ने इसे धार्मिक अभिव्यक्ति का हनन करार दिया ।

अल्माटी सामाजिक परिषद सदस्य तोगजान कोजाली ने कहा: “हिजाब अक केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है।” उन्होंने इसे शैक्षिक अवसरों का विनाशकारी अवरोध बताया ।

निकाब और बुर्का सहित चेहरे ढकने वाली पोशाकों पर व्यापक प्रतिबंध

नया अपराध निवारण अधिनियम (25 जून 2025) राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्थलों पर मुख ढंकने वाले वस्त्रों, जैसे निकाब और बुर्का पर प्रतिबंध लगाता है ।
इसमें चिकित्सकीय मुखावरण, मौसम परिधान या सांस्कृतिक आयोजन परधारण की छूट रखी गई है ।

केंद्रीय एशिया और यूरोप में समान प्रवृत्ति – क्यों बना बैन आम?

किर्गिस्तान (जनवरी 2025) ने निकाब पर प्रतिबंध लगाया ।

उज़्बेकिस्तान (2023) ने सार्वजनिक रूप से बुर्का पहनने पर रोक लगाई।

ताजिकिस्तान ने ‘परम्परागत संस्कृति’ के नाम पर चेहरा ढंकने वाली पोशाकों पर प्रतिबंध लगाया ।

यूरोप में फ़्रांस, नीदरलैंड्स, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया और स्विट्ज़रलैंड सहित कई देश पहले से ही सार्वजनिक स्थलों पर फुल फेस कवरिंग पर रोक लगा चुके हैं, अपनी “सुरक्षा” और “सांस्कृतिक एकरूपता” के हवाले से ।

धार्मिक स्वतंत्रता बनाम सार्वजनिक नीति

यह प्रतिबंध सुरक्षा और धर्मनिरपेक्ष तटस्थता की दिशा में उठाया गया कदम माना गया, लेकिन साथ ही इससे धार्मिक स्वतंत्रता की सीमाओं पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस कदम का असर कज़ाख समाज और अन्य लोकतांत्रिक समुदायों पर क्या होगा।

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